बुधवार, 23 नवंबर 2016
कविताएँ - डाँ. मधु प्रधान
आओ बैठें नदी किनारे... कविता का अंश...
आओ बैठें नदी किनारे,
गीत पुराने फिर दोहराएँ।
कैसे किरनों ने पर खोले,
कैसे सूरज तपा गगन में,
कैसे बादल ने छाया दी,
कैसे सपने जगे नयन में,
सुधियाँ उन स्वर्णिम दिवसों की,
मन के सोये तार जगाएँ।
जल में झुके सूर्य की आभा,
और सलोने चाँद का खिलना,
सिन्दूरी बादल के रथ का,
लहरों पर इठला कर चलना,
बिम्ब पकड़ने दौड़ें लहरें,
खुद में उलझ उलझ रह जाएँ ।
श्वेत पांखियों की कतार ने,
नभ में वन्दनवार सजाये,
प्रकृति नटी के इन्द्रजाल में,
ये मन ठगा-ठगा रह जाये,
धीरे-धीरे संध्या उतरी,
लेकर अनगिन परी कथाएँ।
आओ बैठे नदी किनारे...
ऐसी ही अन्य कविता का आनंद ऑडियो की मदद से लीजिए...
संपर्क - ईमेल- madhu.pradhan.kanpur@gmail.com
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