गुरुवार, 10 नवंबर 2016
कविताएँ - आशुतोष दुबे
कविता का अंश...
दो दिनों के बीच है,
एक थरथराता पुल,
रात का।
दो रातो के दरमियाँ है,
एक धड़धड़ाता पुल,
दिन का।
हम बहते हैं रात भर,
और तब कहीं आ लगते हैं,
दिन के पुल पर।
चलते रहते हैं दिन भर,
और तब कहीं सुस्ताते हैं,
रात के पुल पर।
वैसे देखें तो,
हम भी एक झूलता हुआ पुल ही हैं।
दिन और रात जिस पर,
दबे पाँव चलते हैं।
ऐसी ही अन्य भावपूर्ण कविताओं का आनंद ऑडियो की मदद से लीजिए...
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कविता,
दिव्य दृष्टि

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