शुक्रवार, 11 नवंबर 2016
कविता - तीनों बंदर बापू के - नागार्जुन
कविता का अंश....
बापू के भी ताऊ निकले तीनों बंदर बापू के,
सरल सूत्र उलझाऊ निकले तीनों बंदर बापू के,
सचमुच जीवनदानी निकले तीनों बंदर बापू के,
ज्ञानी निकले, ध्यानी निकले तीनों बंदर बापू के,
जल-थल-गगन-बिहारी निकले तीनों बंदर बापू के,
लीला के गिरधारी निकले तीनों बंदर बापू के!
सर्वोदय के नटवर लाल,
फैला दुनिया भर में जाल,
अभी जिएंगे ये सौ साल,
ढाई घर घोड़े की चाल,
मत पूछो तुम इनका हाल,
सर्वोदय के नटवर लाल!
लंबी उमर मिली है, खुश हैं तीनों बंदर बापू के,
दिल की कली खिली है, खुश हैं तीनों बंदर बापू के,
बूढ़े हैं, फिर भी जवान हैं तीनों बंदर बापू के,
परम चतुर हैं, अति सुजान हैं तीनों बंदर बापू के,
सौवीं बरसी मना रहे हैं तीनों बंदर बापू के,
बापू को ही बना रहे हैं तीनों बंदर बापू के!
खूब होंगे मालामाल,
खूब गलेगी उनकी दाल,
औरों की टपकेगी राल,
इनकी मगर तनेगी पाल,
मत पूछो तुम इनका हाल,
सर्वोदय के नटवर लाल!
सेठों क हित साध रहे हैं तीनों बंदर बापू के,
युग पर प्रवचन लाद रहे हैं तीनों बंदर बापू के,
सत्य-अहिंसा फाँक रहे हैं तीनों बंदर बापू के,
पूँछों से छवि आँक रहे हैं तीनों बंदर बापू के,
दल से ऊपर, दल के नीचे तीनों बंदर बापू के,
मुस्काते हैं आंखें मीचे तीनों बंदर बापू के!
छील रहे गीता की खाल,
उपनिषदें हैं इनकी ढाल,
उधर सजे मोती के थाल,
इधर जमे सतजुगी दलाल,
मत पूछो तुम इनका हाल,
सर्वोदय के नटवर लाल!
मड़ रहे दुनिया-जहान को तीनों बंदर बापू के,
चिढ़ा रहे हैं आसमान को तीनों बंदर बापू के,
करें रात-दिन टूर हवाई तीनों बंदर बापू के,
बदल-बदल कर चखें मलाई तीनों बंदर बापू के,
गांधी-छाप झूल डाले हैं तीनों बंदर बापू के,
असली हैं, सर्कस वाले हैं तीनों बंदर बापू के!
दिल चटकीला, उजले बाल,
नाप चुके हैं गगन विशाल,
फूल गए हैं कैसे गाल,
मत पूछो तुम इनका हाल,
सर्वोदय के नटवर लाल!
हमें अँगूठा दिखा रहे हैं तीनों बंदर बापू के,
कैसी हिकमत सिखा रहे हैं तीनों बंदर बापू के,
प्रेम-पगे हैं, शहद-सने हैं तीनों बंदर बापू के,
गुरुओं के भी गुरू बने हैं तीनों बंदर बापू के,
सौवीं बरसी मना रहे हैं तीनों बंदर बापू के,
बापू को ही बना रहे हैं तीनों बंदर बापू के।
साभार- नागार्जुन रचनावली
इस कविता का आनंद ऑडियो की मदद से लीजिए...
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कविता,
दिव्य दृष्टि
जीवन यात्रा जून 1957 से. भोपाल में रहने वाला, छत्तीसगढ़िया गुजराती. हिन्दी में एमए और भाषा विज्ञान में पीएच.डी. 1980 से पत्रकारिता और साहित्य से जुड़ाव. अब तक देश भर के समाचार पत्रों में करीब 2000 समसामयिक आलेखों व ललित निबंधों का प्रकाशन. आकाशवाणी से 50 फ़ीचर का प्रसारण जिसमें कुछ पुरस्कृत भी. शालेय और विश्वविद्यालय स्तर पर लेखन और अध्यापन. धारावाहिक ‘चाचा चौधरी’ के लिए अंशकालीन पटकथा लेखन. हिन्दी गुजराती के अलावा छत्तीसगढ़ी, उड़िया, बँगला और पंजाबी भाषा का ज्ञान. संप्रति स्वतंत्र पत्रकार।
संपर्क:
डॉ. महेश परिमल, टी-3, 204 सागर लेक व्यू होम्स, वृंदावन नगर, अयोघ्या बायपास, भोपाल. 462022.
ईमेल -
parimalmahesh@gmail.com
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