शुक्रवार, 11 नवंबर 2016
कविता - एकला चालो रे... - रवीन्द्रनाथ टैगोर
कविवर रवीन्द्रनाथ टैगारे की बाँगला कविता ‘एकला चालो रे...’ का हिंदी अनुवाद यहाँ प्रस्तुत किया जा रहा है।
कविता का अंश...
अनसुनी करके तेरी बात,
न दे जो कोई तेरा साथ,
तो तुही कसकर अपनी कमर,
अकेला बढ़ चल आगे रे--
अरे ओ पथिक अभागे रे ।
देखकर तुझे मिलन की बेर
सभी जो लें अपने मुख फेर,
न दो बातें भी कोई क रे,
सभय हो तेरे आगे रे--
अरे ओ पथिक अभागे रे ।
तो अकेला ही तू जी खोल,
सुरीले मन मुरली के बोल,
अकेला गा, अकेला सुन ।
अरे ओ पथिक अभागे रे,
अकेला ही चल आगे रे ।
जायँ जो तुझे अकेला छोड़,
न देखें मुड़कर तेरी ओर,
बोझ ले अपना जब बढ़ चले,
गहन पथ में तू आगे रे--
अरे ओ पथिक अभागे रे ।
तो तुही पथ के कण्टक क्रूर,
अकेला कर भय-संशय दूर,
पैर के छालों से कर चूर ।
अरे ओ पथिक अभागे रे,
अकेला ही चल आगे रे ।
और सुन तेरी करुण पुकार,
अंधेरी पावस-निशि में द्वार,
न खोलें ही न दिखावें दीप,
न कोई भी जो जागे रे-
अरे ओ पथिक अभागे रे ।
तो तुही वज्रानल में हाल,
जलाकर अपना उर-कंकाल,
अकेला जलता रह चिर काल,।
अरे ओ पथिक अभागे रे,
अकेला बढ़ चल आगे रे ।
इस कविता का आनंद ऑडियो की मदद से लीजिए...
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