शनिवार, 19 नवंबर 2016
कविता - 2 - क्रूरता - कुमार अंबुज
कविता का अंश...
धीरे धीरे क्षमाभाव समाप्त हो जाएगा,
प्रेम की आकांक्षा तो होगी मगर जरूरत न रह जाएगी,
झर जाएगी पाने की बेचैनी और खो देने की पीड़ा,
क्रोध अकेला न होगा वह संगठित हो जाएगा,
एक अनंत प्रतियोगिता होगी जिसमें लोग,
पराजित न होने के लिए नहीं,
अपनी श्रेष्ठता के लिए युद्धरत होंगे,
तब आएगी क्रूरता।
पहले हृदय में आएगी और चेहरे पर न दीखेगी,
फिर घटित होगी धर्मग्रंथों की व्याख्या में,
फिर इतिहास में और फिर भविष्यवाणियों में,
फिर वह जनता का आदर्श हो जाएगी,
निरर्थक हो जाएगा विलाप,
दूसरी मृत्यु थाम लेगी पहली मृत्यु से उपजे आँसू,
पड़ोसी सांत्वना नहीं एक हथियार देगा,
तब आएगी क्रूरता और आहत नहीं करेगी हमारी आत्मा को,
फिर वह चेहरे पर भी दिखेगी,
लेकिन अलग से पहचानी न जाएगी,
सब तरफ होंगे एक जैसे चेहरे,
सब अपनी-अपनी तरह से कर रहे होंगे क्रूरता,
और सभी में गौरव भाव होगा,
वह संस्कृति की तरह आएगी,
उसका कोई विरोधी न होगा,
कोशिश सिर्फ यह होगी कि किस तरह वह अधिक सभ्य,
और अधिक ऐतिहासिक हो,
वह भावी इतिहास की लज्जा की तरह आएगी,
और सोख लेगी हमारी सारी करुणा,
हमारा सारा श्रृंगार,
यही ज्यादा संभव है कि वह आए,
और लंबे समय तक हमें पता ही न चले उसका आना।
इस कविता का आनंद ऑडियो की मदद से लीजिए...
लेबल:
कविता,
दिव्य दृष्टि
जीवन यात्रा जून 1957 से. भोपाल में रहने वाला, छत्तीसगढ़िया गुजराती. हिन्दी में एमए और भाषा विज्ञान में पीएच.डी. 1980 से पत्रकारिता और साहित्य से जुड़ाव. अब तक देश भर के समाचार पत्रों में करीब 2000 समसामयिक आलेखों व ललित निबंधों का प्रकाशन. आकाशवाणी से 50 फ़ीचर का प्रसारण जिसमें कुछ पुरस्कृत भी. शालेय और विश्वविद्यालय स्तर पर लेखन और अध्यापन. धारावाहिक ‘चाचा चौधरी’ के लिए अंशकालीन पटकथा लेखन. हिन्दी गुजराती के अलावा छत्तीसगढ़ी, उड़िया, बँगला और पंजाबी भाषा का ज्ञान. संप्रति स्वतंत्र पत्रकार।
संपर्क:
डॉ. महेश परिमल, टी-3, 204 सागर लेक व्यू होम्स, वृंदावन नगर, अयोघ्या बायपास, भोपाल. 462022.
ईमेल -
parimalmahesh@gmail.com
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