शुक्रवार, 18 नवंबर 2016
बाल कविताएँ - हरीश परमार
बाल कविताएँ – हरीश परमार
मेरी प्यारी गुडिया… कविता का अंश….
ठुमक-ठुमक कर आँगन में,
चल रही है मेरी बिटिया।
रूनझुन-रूनझुन बाजत है,
उसके पैरों की पायलिया।
एक कदम फिर दो कदम,
धीरे-धीरे आगे बढ़ती,।
अब गिरी कि तब गिरी,
लेकिन सँभल-सँभल जाती।
हाथ उठाकर दूर भगाए,
जब आँगन में उतरे चिडिया।
कभी मम्मी, कभी पापा के,
पीछे-पीछे चलती है।
थक जाती पर नहीं बैठती,
हर दम चलना चाहती है।
सबके मन को भली लगे,
उसकी तुतली-तुतली बतियाँ।
मेरा तो है एक ही सपना,
बड़ी हो जाए मेरी बिटिया।
पढ़े-लिखे और नाम कमाए,
देश का गौरव बन जाए,
मेरी प्यारी-प्यारी बिटिया।
ऐसी ही अन्य मनभावन बालकविताओं का आनंद ऑडियो की मदद से लीजिए…
लेबल:
दिव्य दृष्टि,
बाल कविताएँ
जीवन यात्रा जून 1957 से. भोपाल में रहने वाला, छत्तीसगढ़िया गुजराती. हिन्दी में एमए और भाषा विज्ञान में पीएच.डी. 1980 से पत्रकारिता और साहित्य से जुड़ाव. अब तक देश भर के समाचार पत्रों में करीब 2000 समसामयिक आलेखों व ललित निबंधों का प्रकाशन. आकाशवाणी से 50 फ़ीचर का प्रसारण जिसमें कुछ पुरस्कृत भी. शालेय और विश्वविद्यालय स्तर पर लेखन और अध्यापन. धारावाहिक ‘चाचा चौधरी’ के लिए अंशकालीन पटकथा लेखन. हिन्दी गुजराती के अलावा छत्तीसगढ़ी, उड़िया, बँगला और पंजाबी भाषा का ज्ञान. संप्रति स्वतंत्र पत्रकार।
संपर्क:
डॉ. महेश परिमल, टी-3, 204 सागर लेक व्यू होम्स, वृंदावन नगर, अयोघ्या बायपास, भोपाल. 462022.
ईमेल -
parimalmahesh@gmail.com
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