शनिवार, 12 नवंबर 2016
बाल कहानी - मुर्गे का सुरीला गाना - उपासना बेहार
कहानी का अंश...
राधेश्याम किसान गाँव से दूर अपने खेत में घर बना कर रहते थे, उनके पास एक मुर्गा था, कई साल पहले जब मुर्गा छोटा चूजा था, तब राधेश्याम बाबा उसे बाजार से खरीद कर लाये थे, तभी से वह उनके साथ रहता आ रहा था. राधेश्याम मुर्गे को अपने बच्चे जैसा प्यार करते थे और हमेशा उसकी रखवाली करते थे. पास में ही जंगल होने के कारण मुर्गे की सुरक्षा के लिए घर के चारों ओर कँटीले तार से घेरा बना दिया था ताकि कोई भी जानवर अंदर आ कर उसे खा न सके. उस जंगल में एक लोमड़ी रहती थी. एक दिन उसने इस मोटे मुर्गे को देख लिया. उसका जी मुर्गे को खाने को ललचाने लगा लेकिन कँटीले तारों की वजह से वो मुर्गे के पास पहुँच नहीं सकती थी. उसने एक प्लान बनाया, दूसरे दिन सुबह-सुबह जब मुर्गा बाँग देने लगा और जोर-जोर से “कुकड़ू कू” की आवाज निकालने लगा, तभी लोमड़ी वहाँ पहुँची. उसे देख कर मुर्गा डर गया, लोमड़ी ने मीठी आवाज में कहा “दोस्त डरो मत. मैं तुम्हें नहीं खाऊंगी, तुम्हारी आवाज कितनी सुरीली है, मैंने आजतक इतनी मीठी आवाज नहीं सुनी.” यह कह कर लोमड़ी चली गई. रात भर मुर्गा सोचता रहा ‘क्या मेरी आवाज वाकई में सुरीली है?’.
अब लोमड़ी रोज मुर्गे के बाँग देने के समय आती और उसके आवाज की बहुत तारीफ करती. धीरे-धीरे मुर्गे को भी लगने लगा कि उसकी आवाज सुरीली है और वो बहुत अच्छा गाता है. जब लोमड़ी ने देखा कि मुर्गा उसके झाँसे में आ गया है, तब एक दिन उसने कहा “दोस्त मुर्गे क्या तुम पूरी जिन्दगी इसी जगह गुजार दोगे, अपनी मधुर आवाज को दुनिया के सामने नहीं लाओगे. यहाँ तुम्हारी कद्र करने वाला कोई नहीं है, मेरे साथ चलो मैं तुम्हें बड़ा गायक बना दूँगी, खूब पैसे मिलेंगे और तुम मालामाल हो जाओगे.” मुर्गे ने कहा “मैं तुम्हारे साथ नहीं जा सकता. राधेश्याम बाबा ने बताया है कि लोमड़ी हमारी दुश्मन होती हैं. तुम मुझे मार कर खा जाओगे”. लोमड़ी को लगा शिकार हाथ से निकल जाएगा, उसने मुर्गे से प्यार से कहा “दोस्त मैं चाहती तो तुम्हें कब का खा गई होती लेकिन मैं चाहती हूँ कि जैसे तुमने मुझे अपनी आवाज का दीवाना बना दिया है वैसे ही पूरी दुनिया को बना दो”. मुर्गा घमंड से चूर हो गया, उसने कहा “कल सुबह राधेश्याम बाबा शहर जाने वाले हैं, उनके जाने के बाद हम चलेगें.” लोमड़ी खुश हो गई. उसे रात भर नींद नहीं आई, इतना मोटा मुर्गा कल उसे खाने को मिलेगा, ये सोच के ही उसके मुँह में पानी आने लगा. उधर मुर्गे को भी नींद नहीं आ रही थी, वो सोच रहा था कि कल वो दुनिया को अपना गाना सुनाएगा और सब उसके दीवाने हो जाएँगे.
सुबह राधेश्याम बाबा शहर के लिए निकल गए, थोड़ी देर में लोमड़ी मुर्गे को लेने आ गई. मुर्गा लोमड़ी के साथ चल पड़ा. जब वो दोनों बीच जंगल में पहुँचे तो मुर्गे ने कहा “तुम तो मुझे शहर ले जाने वाले थे, वहाँ लोगों को मेरा गाना सुनाना था पर तुम बीच जंगल क्यों ले आई?.” लोमड़ी ने हँसते हुए मुर्गे से कहा “हम शहर नहीं जा रहे हैं. पता है मुर्गे तुम बहुत बेसुरा गाते हो, वो तो मैंने झूठ बोला था ताकि तुम मेरे बहकावे में आ जाओ और उस कटीले तारों से बाहर निकलो, अगर मैं उन मजबूत तारों को पार करती तो मुझे चोट लग जाती जिससे मैं मर जाती. अब मैं तुम्हें मारूंगी और मजे से तुम्हें खाऊंगी.” मुर्गे को अपनी मूर्खता पर बहुत पछतावा हुआ. उसे राधेश्याम बाबा की चेतावनी याद आई. पर मुर्गे ने हार नहीं मानी और सोचा ‘मौत तो सामने है, कम से कम एक बार बचने की कोशिश जरुर करनी चाहिए.’ उसने अपने डर को दूर कर आसपास नजर घुमाई तो देखा कि सामने ही एक बड़ा पेड़ है. उसे पता था कि लोमड़ी पेड़ में चढ़ नहीं पाएगी. मुर्गा तेजी से उड़ कर पेड़ की डंगाल पर चढ़ गया. लोमड़ी को समझ नहीं आया वो क्या करे. लोमड़ी पेड़ के नीचे बैठ गई. देर तक मुर्गे के पेड़ से नीचे उतरने का इंतजार करती रही और थक कर सो गई. मुर्गे को इसी पल का इंतजार था वो धीरे से पेड़ से उतरा और घर की ओर दौड़ लगा दी, सीधे अपने घर आ कर ही दम लिया. मुर्गे ने सोचा अब वो किसी की झूठी बातों में नहीं फँसेगा और राधेश्याम बाबा की बात को ध्यान से सुनेगा. इस बाल कहानी का आनंद ऑडियो की मदद से लीजिए...
ई मेल-upasana2006@gmail.com
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दिव्य दृष्टि,
बाल कहानी
जीवन यात्रा जून 1957 से. भोपाल में रहने वाला, छत्तीसगढ़िया गुजराती. हिन्दी में एमए और भाषा विज्ञान में पीएच.डी. 1980 से पत्रकारिता और साहित्य से जुड़ाव. अब तक देश भर के समाचार पत्रों में करीब 2000 समसामयिक आलेखों व ललित निबंधों का प्रकाशन. आकाशवाणी से 50 फ़ीचर का प्रसारण जिसमें कुछ पुरस्कृत भी. शालेय और विश्वविद्यालय स्तर पर लेखन और अध्यापन. धारावाहिक ‘चाचा चौधरी’ के लिए अंशकालीन पटकथा लेखन. हिन्दी गुजराती के अलावा छत्तीसगढ़ी, उड़िया, बँगला और पंजाबी भाषा का ज्ञान. संप्रति स्वतंत्र पत्रकार।
संपर्क:
डॉ. महेश परिमल, टी-3, 204 सागर लेक व्यू होम्स, वृंदावन नगर, अयोघ्या बायपास, भोपाल. 462022.
ईमेल -
parimalmahesh@gmail.com
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