बुधवार, 23 नवंबर 2016
कविताएँ - डाँ. सरस्वती माथुर
गुलाबी, अल्हड़ बचपन... कविता का अंश...
मैंने बचपन के सामान को,
अपनी स्मृति के कोटर में डाल दिया है।
ताला लगा कर समय का,
चाबी को सँभाल लिया है ।
बचपन के घर आँगन की,
हवाओं में बिखरी किलकारियों,
गुलाबी रिश्तों की बिखरी बातों,
दीवारों पर टँगी,
बुज़ुर्गों की,
तस्वीरों को ,
सतरंगी बीते दिनों को,
बिखरी यादों के मौसम को,
बचपन की धुरी के चारों ओर,
चक्कर काटते माँ बाबूजी,
भाई भावज और उपहार से मिले,
अल्हड मीठे दिनों को,
अमूल्य पुस्तक-सा सहेज लिया है।
और संचित कर जीवन कोश में,
इंद्रधनुषी सतरंगी चूनर में,
बाँध दिया है।
अब यह पोटली मेरी धरोहर है,
जिसे मैं किसी से बाँट नही सकती।
कभी भी बचपन की चीज़ों को,
कबाड़ की चीज़ों की तरह,
छाँट नहीं सकती, क्योंकि
यह पूँजी है,
मैरे विश्वास की,
कृति है श्रम की,
जहाँ सें मैं,
आरंभ कर सकती हूँ,
यात्रा मन की,
गुलाबी बचपन की।
एेसी ही अन्य कविताओं का आनंद ऑडियो की मदद से लीजिए...
लेबल:
कविता,
दिव्य दृष्टि
जीवन यात्रा जून 1957 से. भोपाल में रहने वाला, छत्तीसगढ़िया गुजराती. हिन्दी में एमए और भाषा विज्ञान में पीएच.डी. 1980 से पत्रकारिता और साहित्य से जुड़ाव. अब तक देश भर के समाचार पत्रों में करीब 2000 समसामयिक आलेखों व ललित निबंधों का प्रकाशन. आकाशवाणी से 50 फ़ीचर का प्रसारण जिसमें कुछ पुरस्कृत भी. शालेय और विश्वविद्यालय स्तर पर लेखन और अध्यापन. धारावाहिक ‘चाचा चौधरी’ के लिए अंशकालीन पटकथा लेखन. हिन्दी गुजराती के अलावा छत्तीसगढ़ी, उड़िया, बँगला और पंजाबी भाषा का ज्ञान. संप्रति स्वतंत्र पत्रकार।
संपर्क:
डॉ. महेश परिमल, टी-3, 204 सागर लेक व्यू होम्स, वृंदावन नगर, अयोघ्या बायपास, भोपाल. 462022.
ईमेल -
parimalmahesh@gmail.com
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