शुक्रवार, 18 नवंबर 2016
बाल कविताएँ - हरीश परमार
एक सुबह…. कविता का अंश…
पहाड़ों के पीछे से एक बालक,
लाल रंग उड़ाता लाया।
काली चादर लपेट कर,
उजली चादर बिछा गया।
सुबह-सुबह मन कहे,
मीठी-मीठी धूप लगे।
चीं-चीं-चीं-चीं चिड़िया चहके,
जाने क्या-क्या बात कहे।
शीतल-शीतल चली हवा,
मन पावन होने लगा।
सुमन सारे लगे महकने,
मन भावन होने लगा।
सूरज के उगते ही देखो,
माँ की ममता जागी।
बछिया को दूध पिलाने,
गाय भी रँभाने लगी।
पूजा की थाली लेकर,
माँ मंदिर जाने लगी।
राम-नाम गुनगुना रही,
मेरे मन की गली-गली।
डाली झूमे धीमे-धीमे,
मंद-मंद फूल मुस्काए।
रंगबिरंगी तितली आई,
काला भौंरा गुनगुनाए।
नई सुबह, नई उमंग,
पंछियों ने खोले पर।
दाना चुगने, तिनका चुनने,
पंछियों ने छोड़ा घर।
ऐसी ही अन्य मनभावन कविताओं का आनंद ऑडियो की मदद से लीजिए…
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