डा. महेश परिमल
çßश्व का सबसे पहला अपराध क्या है? आज यदि इस पर शोध किया जाए, तो एक ही बात सामने आएगी, वह है लाचारी या विवशता में एक नारी द्वारा अपने शरीर का विक्रय करना. आज इसे सभी लोग वेश्यावृ?ाि के धंधे के रूप में जानते हैं. नारी शरीर ने पुरुषों को सदैव आकर्षित किया है. इसी कारण एक ओर नारी के रूप के जाल में फँसकर कई अपना जीवन होम कर देते हैं, वहीं नारी के इसी सौंदर्य का सहारा लेकर कई उसे बेचने के काम में लग जाते हैं. इस तरह से लाचारी, मंजबूरी, विवशता, पापी पेट, बच्चों की परवरिश या फिर घर की आर्थिक स्थिति को सँवारने के नाम पर आज यह व्यवसाय समाज में बेखौफ चल रहा है. चूँकि इस कार्य में हमेशा कुछ सफेदपोशों का वरदहस्त होता है, इसलिए इस व्यवसाय पर पूरी तरह से अंकुश नहीं लग पाया. आज वेश्यावृ?ाि के व्यवसाय में भारत का नाम काफी ऊपर है.
हाल ही में पाकिस्तान में आए भूकंप के बाद कई हालात ऐसे आए, जिसमें भूकंप से प्रभावित होकर असहाय युवतियों या महिलाओं को विविध प्रलोभन देकर उन्हें वेश्यावृ?ाि के व्यवसाय में धकेल दिया गया. इस तरह की खबरें छन-छनकर मीडिया के माध्यम से बाहर आई. उधर संयुक्त राष्ट्रसंघ ने इस व्यवसाय में होने वाले इजाफे पर ंचिंता जाहिर की है. वेश्यावृ?ाि कराने वाले देशों के नाम हाल ही में जारी किए गए हैं. इसमें भारत का नाम सर्वोपरि है. जानकारी के अनुसार भारत में वेश्यावृ?ाि के लिए बड़ी संख्या में युवतियों और महिलाओं धकेला जा रहा है. ऑंकड़ों के अनुसार प्रतिवर्ष लगभग 20 हजार युवतियों को इस धंधे में धकेल दिया जाता है, जिनमें से 61 प्रतिशत युवतियाँ 16 से 20 वर्ष की होती हैं और 45 प्रतिशत 16 वर्ष से कम आयु की होती हैं.
आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि इस धंधे के मुखिया या डॉन की आय प्रति वर्ष डेढ़ करोड़ रुपए से अधिक होती है. यह आय मादक द्रव्यों की तस्करी और शस्त्रों की हेराफेरी से होने वाली आय के बराबर है. बांगलादेश और नेपाल की युवतियों को भारत के वेश्यागृहों में 25 से 30 हजार रुपयों में बेच दिया जाता है. उसी तरह तमिलनाड़, आंध्रप्रदेश, आसाम, उ?ारप्रदेश और राजस्थान की युवतियों को दिल्ली, मुम्बई और बेंगलोर के बाजारों में बेच दिया जाता है. इस धंधे में वे युवतियाँ या महिलाएँ शामिल होती हैं, जो अपने जेबखर्च के लिए या फिर घर से दु:खी होकर बाहर निकल जाती हैं. अपनी चौकस निगाहों के कारण इस व्यवसाय में लगे लोग उन युवतियों और महिलाओं को आसानी से पहचान जाते हैं. पहले तो ये उन्हें अपने अच्छे व्यवहार से आश्वस्त करते हैं कि वे अब अकेली नहीं है. उन्हें अच्छी सी नौकरी दिला दी जाएगी. मुसीबत के इन लम्हों में उन भटकी हुई युवतियों और महिलाओं को यह सहारा भी बहुत बड़ा लगता है. वे इस भुलावे में आ जाती हैं. पर उन्हें नहीं मालूम होता कि ये एक मृग-मरीचिका है. कई मामलों में इस व्यवसाय में फँसने वाली युवतियाँ गलत तरीके से आ जाती हैं, इसलिए पकड़े जाने के डर से फरियाद भी नहीं कर पातीं. उन्हें इस व्यवसाय में लाने वाले कथित असामाजिक तत्व भी उन्हें ?लेकमेल करते हैं. इस धंधे पर रोक लगाने के लिए पुलिस महकमा इतना निरीह है कि यह विभाग चाहकर भी कुछ कर नहीं पाता, क्योंकि हमारे देश में एक हजार लोगों के लिए मात्र 120 पुलिसकर्मी हैं. जो नाकाफी हैं. इसके कारण ये दलालों को इनका भय नहीं होता और वे गाँवों में जाकर अपना शिकार तलाश लेते हैं. फिर पुलिस विभाग में वेतन इतना कम होता है कि उन्हें अतिरिक्त आय के लिए कुछ और संसाधन अपनाने होते हैं. इसलिए कई बार वे भी इसमें शामिल हो जाते हैं या फिर इनकी शह पर यह धंधा बेखौफ चलता रहता है.
युवतियों को वेश्यावृ?ाि में फँसाने वाला यह धंधा पूरे विश्व में बेखौफ चल रहा है. शर्म की बात यह है कि इस कार्य में अब भारत का नाम काफी ऊपर चल रहा है. इस व्यवसाय में एक बात सामान्य रूप से सामने आती है कि बड़े ग्राहकों को अपने ही देश की युवतियाँ अमूमन पसंद नहीं आती, इसलिए बहुत सी जगहों पर एशिया की युवतियों की माँग होती है, तो कई स्थानों पर यूरोप की युवतियों की बोली लगाई जाती है. इसमें मेट्रो सिटी में बड़ी होटलों में चलने वाली वेश्यावृ?ाि को शामिल नहीं किया गया है. इन होटलों में यदा-कदा मारे जाने वाले छापों मेें जो युवतियाँ पकड़ी जाती हैं, वे अच्छे घरों की होती हैं या फिर मध्यम घरों की. जो शौक और धन के कारण इस व्यवसाय से जुड़ जाती हैं. अधिकांश मामलों में यह देखा गया है कि इसमें युवतियाँ शौक से नहीं, अपितु हालात उन्हें इस व्यवसाय में शामिल होने के लिए मंजबूर करते हैं. होटलों या गेस्ट हाउसों में चलने वाली इस वेश्यावृ?ाि का कोई ऑंकड़ा बाहर नहीं आता. यहाँ यह काम इतनी साफगोई से होता है कि समाज में इसकी भनक तक नहीं लगती. इन स्थानों पर सब काम समय के अनुसार इतने व्यवस्थित तरीके से चलता है कि किसी को पता ही नहीं चलता.
आजकल ?यूटी पॉर्लर इस व्यवसाय में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है. यह एक ऐसी जगह है, जहाँ हर तरह की युवतियाँ आती हैं. यहाँ काम करने वाली युवतियाँ बातों ही बातों में अपने ग्राहक की सामाजिक और आर्थिक स्थिति का पता लगा लेती हैं, फिर उन्हें कई तरह का प्रलोभन देती हैं और पैसा कमाने का आसान रास्ता बताती हैं. जरुरतमंद युवतियाँ इनके बहकावे में आ जाती हैं. फिर शुरू होता है, नौकरी देने के नाम पर इन्हें बरबाद करने का सिलसिला. फिर तो ऑफिसों, क्लबों और अन्यत्र युवतियों की आपूर्ति का यह एक मुख्य केंंद्र बन जाता है. बंगलादेश की जब एक साथ सौ युवतियों को नौकरी या विवाह का लालच देकर मुम्बई जैसे सपनों की नगरी में लाया जाता है, तब वहाँ पहले से ही तैनात इस व्यवसाय के जानकार कथित असामाजिक तत्व इनकी पहचान कर लेते हैं और इन्हें अपने जाल में फँसा लेते हैं. यहीं से शुरू होता है इनका नारकीय जीवन. ये युवतियाँ 40-45 साल तक तो इस व्यवसाय में आराम से अपने दिन काट लेती हैं, लेकिन बाद में ये एड्स और विभिन्न खतरनाक संक्रामक रोगों से ग्रस्त हो जाती हैं. उम्र के साथ-साथ यह रोग बढ़ता जाता है और आर्थिक स्थिति अच्छी न होने के कारण सही इलाज भी नहीं हो पाता, फलस्वरूप ये सभी अकाल मौत का शिकार होती हैं. कई स्वैच्छिक संस्थाएँ इनकी मदद के लिए आगे आई हैं, इनके बच्चों के स्वास्थ्य और शिक्षा की ओर कदम बढ़ाए गए हैं. पर ये कार्य ऊँट के मुँह में जीरे के समान हैं. आज भी कई युवतियाँ और महिलाएँ इस दुष्चक्र में इस कदर फँस गई हैं कि सामाजिक संस्थाओं के प्रयास से वे वेश्यावृत्ति का धंधा छोड़ तो देती हैं, लेकिन इनकी पूरी देखभाल न होने के कारण ये फिर इस व्यवसाय से जुड़ जाती हैं.
इस व्यवसाय पर लगाम तभी लग सकती है, जब समाज में युवतियों और महिलाओं की स्थिति को सुधारा जाए. उन्हें केवल उपभोग की वस्तु न माना जाए. इसके लिए समाज को संकीर्णता के दायरे से निकलना होगा. नारी केवल आवश्यकता के लिए ही है, यह विचार त्यागना होगा. नारी माँ है, नारी पूजनीय है, नारी शक्ति है, नारी में संपूर्ण विश्व है, इन विचारों के साथ यदि नारी को सम्मान से देखना का एक छोटा सा प्रयास किया जाए और इन्हें वेश्यावृ?ाि के दलदल में घकेलने वालों को कड़ा से कड़ा दंड मिले, तभी इस पर रोक लगाई जा सकती है.