कहा जाता है कि कल और आज के बीच की ंजिदगी को जो अच्छी तरह से जी गया, वही असली इंसान है. ऐसे क्षणों में वह ऐसा यादगार काम कर जाता है कि एकांत के पलों में उसे खुद को ही अपने इस काम पर आश्चर्य होता है. बस ंजरूरत है, समय के उस पल के महत्व को समझने की. जिसने उस पल का मूल्य जान लिया, वह समय के सागर से सफलता के मोती चुन लाया और जिसने इसका महत्व नहीं समझा, वह सागर के किनारे की रेत को पैरों तले सरकता हुआ महसूस करता रहा या मुट्ठी में बंद रेत की तरह समय को सरकता हुआ देखता रहा. समय बीत जाने के बाद किया गया पछतावा भविष्य में कुछ कर दिखाने का सबक ंजरूर देता है, किंतु उस वक्त ऑंखों से छलके पश्चाताप के ऑंसुओं का खारापन सागर के खारेपन से भी कहीं अधिक होता है.
यहाँ प्रश्न यह उठता है कि हम पश्चाताप के ऑंसुओं का या उसके खारेपन का स्वाद चखें ही क्यों? क्यों न हम समय को एक चुनौती के रूप में स्वीकारें और सफलता के पथ पर आगे बढ़ें! सफलता के मूल मंत्रों में अनेक बिंदु ह,ैं किंतु यहाँ हम सबसे पहले मुख्य दो बिंदुओ की चर्चा करेंगे, जो कि सफलता की शुरुआत में अपनी मुख्य भूमिका निभाते हैं. ज्ञान और व्यवहार कुशलता का मेल सफलता के मार्ग में व्यक्ति को आगे ले जाता है.
जीवन की तंग और छोटी गलियों में कई उलझनों में से होकर गुजरने के बाद भी ज्ञानी कई बार वहीं के वहीं खड़े रह जाते हैं, जबकि व्यवहार कुशल अपनी चालाकी और चपलता की छड़ी थामे, कूदते-फाँदते कुछ ही समय में बहुत आगे निकल जाते हैं.
अनुभव यह दर्शाता है कि ज्ञानवान व्यक्ति की अपेक्षा व्यवहार कुशल व्यक्ति जीवन में अधिक सफल होते हैं, क्योंकि वे इस बात को अच्छी तरह जानते हैं कि सामने वाले से अपना काम किस तरह निकलवाना है. जबकि ज्ञानवान व्यक्ति तो इस संबंध में केवल सोचता ही रह जाता है. इसे इस तरह समझा जा सकता है - एक बार एक प्रतियोगिता हुई, जिसमें एक अंडे को खड़ा रखना था. वह भी बिना किसी सहारे. कई लोग आए और उसे विभिन्न तरीके से खउा करने की कोशिश करने लगे. पर अंडे को खड़ा नहीं होना था सो वह नहीं हुआ. अब क्या किया जाए? सभी ऐसा सोच ही रहे थे, कि एक व्यक्ति आया और उसने अंडे को फोड़कर खड़ा कर दिया. उसने प्रतियोगिता जीत ली. लोगों ने कहा- ऐसा तो हम भी कर सकते थे. ये सभी ज्ञानवान थे, जो अंडे को विभिन्न तरीके से अपना ज्ञान लगाकर खड़ा करने की कोशिश कर रहे थे. पर जिसने अंडे को फोड़कर खड़ा किया, वह व्यवहार कुशल था. उसने अंडे को खड़ा करने में अपने ज्ञान का प्रदर्शन नहीं किया, बल्कि उसने व्यावहारिकता बताई और प्रतियोगिता जीत ली. वहाँ जितने भी लोग से वे अंडे को खड़ा करने में अपना ज्ञान लगा रहे थे, पर इस व्यवहार कुशल व्यक्ति ने अपनी बुद्धि का परिचय दिया.
इसका अर्थ यह हुआ कि जो व्यक्ति ज्ञानवान है, किंतु व्यवहार कुशल नहीं, वह अपनी इस कमी के कारण जीवन में पीछे रह सकता है. उसी प्रकार व्यवहार कुशल व्यक्ति भी अपने ज्ञान क्षेत्र की कमी के कारण पीछे रह सकता है, लेकिन इसके अवसर बहुत ही कम होते हैं, क्योंकि व्यवहार कुशल व्यक्ति यदि थोड़ा सा भी सजग हो, तो अपनी बुध्दि और चतुरता से ज्ञान प्राप्त कर दोनों को अपना सकता है. दूसरी ओर ज्ञानवान व्यक्ति में इस तरह के चातुर्य का अभाव होता है, क्योंकि उसका अहम् इसमें आड़े आता है. इसी अहं भाव के कारण वह व्यवहार में पिछड़ जाता है. यह सच है कि ज्ञान की दूरदर्शिता की जहाँ-जहाँ ंजरूरत होती है, वहाँ-वहाँ उस व्यक्ति को याद अवश्य किया जाता है, किंतु व्यवहार कुशलता के अभाव में एवं अपने अहं के कारण वह अपनी उपस्थिति दर्ज नहीं करा पाता. तब बीता हुआ समय फिर उसे देता है - पश्चाताप के ऑंसुओं का खारापन.
जो व्यक्ति सफल हैं, निश्चित ही वह असफलता का सामना कर चुका है. तभी वह सफलता के मुकाम तक पहँच पाया है. वह जब-जब अपनी असफलता को भुलता है, तब-तब सफलता के मार्ग पर आगे बढ़ते हुए वह क्षण भर के लिए अटक जाता है. इसीलिए किसी को अपने असफलता के दिन और उन दिनों में किए गए प्रयत्नों को भुलना नहीं चाहिए. यदि असफलता के दिनों में किए गए प्रयत्न उसके दिलो-दिमाग में छाए होंगे, तो वह निश्चित ही सफलता के मार्ग पर अटकेगा नहीं. उसका यह लगातार प्रयास उसे एक ऐसे शिखर पर पहँचाएगा, जहाँ उसकी एक अलग पहचान होगी.
आज का युवाजोश से भरा हुआ है. उनमें उमंग और उल्लास भरा हुआ है. वे हर पल कुछ नया कर गुजरने की तमन्ना रखते हैं और जीवन में आई हर चुनौती को एक टाइम-पास के रूप में स्वीकारते हैं. यही कारण है कि हर परेशानियों से वे अपनी व्यवहार कुशलता से बाहर निकल आते हैं. जब वे व्यवहार कुशलता में थोड़े से भी पीछे रह जाते हैं, तो प्रतिस्पर्धा में से ही बाहर हो जाते हैं. आज के दौर में समय बेलगाम घोड़े की तरह सरपट नहीं भागता, बल्कि चीते की तरह बियाबान पार करता है, या बाज की तरह आकाश चूमता है. यह मशीनी युग है और इस युग में जिसने भी समय के साथ चलने में थोड़ी सी भी लापरवाही या आलस किया, वह समय के हाथों इतनी दूर पछाड़ खा कर गिरता है कि यदि वह प्रतिस्पर्धा के मैदान से ही पूरी तरह आऊट हो जाए, या कर दिया जाए, तो इसमें कोई आश्चर्य नहीं.
बुध्दिमता और व्यवहार कुशलता यह दोनों एक दूसरे के पूरक हैं. इन दोनों की समानता ही व्यक्ति को सफलता के मार्ग पर आगे ले जाती है. जिस प्रकार ईश्वर द्वारा रचित प्रकृति और पुरुष एक नई रचना के द्वारा इस संसार को आगे बढ़ाते हैं, उसी प्रकार मनुष्य के स्वप्रयत्नों के द्वारा रचित बुध्दिमता और व्यवहार कुशलता सफलता को जन्म देती है और जीवन को आगे बढ़ाती है.
डा. महेश परिमल