शुक्रवार, 26 अक्तूबर 2007

सरेआम नग्नता का प्रदर्शन: एक चिंतन

डा. महेश परिमल
कुछ दिनों पहले अखबारों में एक साथ हजारों लोगों की नग्न तस्वीर देखने को मिली थी. इससे लोगों को कतई आश्चर्य नहीं हुआ. आजकल नग्नता हमारे समाज में इस कदर बिखरी पड़ी है कि काई भी अश्लील दृश्य अब अश्लील नहीं लगता. आजकल कला और विरोध के नाम पर नग्नता का ही बिंदास प्रदर्शन हो रहा है. सात हजार लोगों को निर्वस्त्र कर उनकी तस्वीर लेने वाले अमेरिकन फोटोग्राफर स्पेंसर टयूनिक की आजकल खूब चर्चा है. दूसरी ओर युध्द और प्राणियों पर होने वाली क्रूरता के विरोध में भी लोग नग्न होकर सड़कों पर उतरने लगे हैं. ये सभी नग्नता को कुदरत की देन मानते हैं, नग्नता को लेकर हर किसी के अपने-अपने विचार हैं. एक समय वह था, जब किसी फिल्म में सुरैया का ऑंचल ढलक गया था, तो मामला काफी विवादास्पद हो गया था. लेकिन आज ऑंचल ढलकने की बात ही नहीं होती. अब तो ईश्वर प्रद?ा सब कुछ सामने है. शरीर का कोई भी अंग छिपा नहीं है.
कला और नग्नता का हमेशा से ही करीब का संबंध रहा है. खजुराहो के शिल्प में कहीं कोई आवरण नहीं है. विश्व के अनेक बड़े कलाकारों ने कभी न कभी, कहीं न कहीं नग्नता का चित्रण किया ही है. इन कलाकारों का मानना है कि दुनिया में कहीं कोई सहज सहज है, तो वह नग्नता है. इंसान ने कपड़े का आविष्कार किया, लेकिन अपने पर उसके अलावा दंभ का आवरण भी ओढ़ लिया. इनका मानना है कि पशु-पक्षी भी तो नग्न होते हैं,जब इन्हेें देखकर किसी को वीभत्स नहीं लगता, तो फिर मानव को नग्न देखकर क्यों वीभत्सता का अहसास होता है? नग्नता को लेकर आज पूरे विश्व में मत-मतांतर हैं और उनके मत कैसे भी हों, विवादास्पद हो ही जाते हैं.
भारत समेत विश्व के अनेक देशों के विश्वविद्यालयों में स्थापित फाइन आट्र्स फैकल्टी में 'क्ले मॉडलिंग' के आधार पर कला का अभ्यास कराया जा रहा है. कहीं-कहीं तो कलाकारों के झुंड के बीच युवती अथवा युवा संपूर्ण निर्वस्त्र हालत में बैठते हैं. फाइन आट्र्स के विद्यार्थी उन्हें इस हालत में देखकर कोई शिल्प अथवा चित्र बनाते हैं. दिल्ली के एक विद्यार्थी ने इस संबंध में बताया कि यदि आपकी दृष्टि में सच्चाई है, तो ये एक सामान्य प्रक्रिया है, पर दृष्टि खराब है, तो कुछ नहीं कहा जा सकता. नग्नता का विरोध करने वाले यह कहते हैं कि ये सब कलाकार ही नहीं हैं.
कुछ समय पहले ही हमारे देश में असम में सैनिकों द्वारा किए गए दाुचा की खबर सुर्खियाँ बनी थी. इसके विरोध में कई महिलाओं ने पूरी तरह से निर्वस्त्र होकर सड़कों पर उतर आई थीं. इनके हाथ में बैनर थे, जिन पर लिखा था 'कम आन सोल्जर, रेप अस'. महिलाओं द्वारा किया गया इस तरह का विरोध लोगों को खलबला गया. दूसरी ओर जर्मनी के विएना शहर के एक म्युजियम के संचालक ने घोषणा की कि उनके म्युजियम में जो दर्शक पूरी तरह से निर्वस्त्र होकर आएँगे, उनसे प्रवेश शुल्क नहीं लिया जाएगा. लोगों ने इसके भी मजे उठाए और निर्वस्त्र होकर म्युजियम का अवलोकन किया.
इस म्युजियम में आई एक निर्वस्त्र युवती ने कहा कि प्रवेश शुल्क माफ हो जाए, इसलिए मैंने कपड़े नहीं उतारे हैं, बल्कि मैं ऐसा मानती हूँ कि निर्वस्त्र होने के बाद इंसान दंभी नहीं रहता. नग्नता विश्व का शाश्वत सत्य है. मानव वस्त्रों, अलंकारों और विभिन्न साधनों के माध्यम से दंभ और अहंकार के पैबंद लगा लेता है. जब मानव इस संसार में नग्न ही आया है और नग्न ही जाएगा, तो फिर नग्नता को लेकर इतनी हाय-तौबा क्यों?
अपने कैमरे के सामने कई लोगों को निर्वस्त्र करने का माद्दा रखने वाले स्पेंसर टयुनिक की आजकल बड़ी चर्चा है. अपने वेबसाइट पर वे लोगों से एक अपील ही करते हैं कि उनके सामने हजारों लोग अपने कपड़े उतारने के लिए विवश हो जाते हैं. अभी सितम्बर में ही फ्रांस के लियो शहर में सुबह चार बजे स्पेंसर टयूनिक के आग्रह पर कपड़े उतारकर तस्वीर खिंचाने के लिए लोगों ने लम्बी कतार लगाई. सुबह की पहली किरण के साथ स्पेंसर ने हजारों निर्वस्त्र लोगों की तस्वीर ली. लोगों ने भी शौक से अपनी तस्वीरें खिंचवाई. लोगों को निर्वस्त्र कर तस्वीर लेने के लिए स्पेंसर टयूनिक को महारत हासिल है.
नग्न लोगों की तस्वीर खींचने की भी स्पेंसर के पास अनोखी ट्रिक है. वे एक के्रन मँगाते हैं और उस पर चढ़कर माइक से लोगों को संबोधित करते हुए बताते हैं कि उन्हें किस तरह का पोज देना है. लियो शहर में स्पेंसर की एक सूचना पर करीब डेढ़ हजार लोगों ने अपने कपड़े उतार दिए थे. निर्वस्त्र होने वालों में दस वर्ष से लेकर 80 वर्ष तक के लोग थे. इसमें युवतियाँ भी शामिल थी. स्पेंसर ने इस तरह के कारनामे न्यूयार्क, बेल्जियम, वार्सीलोना, ब्राजील, लंदन, साओ पोलो और मेलबोर्न समेत विश्व के अनेक देशों के बड़े शहरों में किए हैं. अपनी इस करतूत के कारण स्पेंसर को कई बार लोगों के विरोध का सामना भी करना पड़ा है. यही नहीं इस कारण उसे ंजेल भी जाना पड़ा है.
अमेरिका के न्यूयार्क शहर में एक बार एक रोड पर स्पेंसर सैकड़ों लोगों की नग्न तस्वीर खींच रहे थे, तब पुलिस ने उसे गिरफ्तार कर लिया था. उस पर यातायात अवरुध्द करने और वीभत्स हरकत करने का आरोप लगाया गया. बाद में कला के नाम पर उसे रिहा भी कर दिया गया. अमेरिका में इस तरह से खुलेआम नग्न लोगों की तस्वीर खींचने पर स्पेंसर पर प्रतिबंध भी लगाया गया है. दूसरी ओर स्पेंसर इस तरह की खींची गई अपनी तस्वीरों की प्रदर्शनी भी लगाते रहे हैं, इस प्रदर्शनी का भी कहीं-कहीं जोरदार विरोध होता है, तो कहीं उसे कला के नाम पर स्वीकार भी किया जाता है. कई बार प्रदर्शनी बंद करने की भी नौबत आई है.
जून 2003 में स्पेंसर टयूनिक ने वार्सीलोना के लोगों को बुलाया तो सबसे अधिक सात हजार लोग इकट्ठे हो गए. यहाँ निर्वस्त्र होने वाले लोगों ने बड़ी ही सहजता से कहा कि एक अलग ही अनुभव को बटोरने के लिए वे निर्वस्त्र होने को तैयार हुए. जब ब्रिटेन में स्पेंसर टयूनिक ने नग्न लोगों की तस्वीर खींचने की घोषणा की, तब सुबह चार बजे कड़कड़ाती ठंड में करीब 1700 लोगों ने अपने कपड़े उतारे और तस्वीर खिंचवाई. ये तस्वीर उसने रोड पर स्थित एक मोल में खींची थी. बाद में इन तस्वीरों का प्रदर्शन 'नेकेड सिटी' के नाम से किया गया. इस संबंध में फोटोग्राफर स्पेंसर कहते हैं कि मेरा यह काम पारम्परिक, राजनैतिक और सामाजिक परंपराओं के सामने एक चुनौती है. मेरी तस्वीरों के माध्यम से मैं लोगों को हलका होने और दंभ त्यागने का संदेश देता हूँ. तस्वीर के इस कार्यक्रम में शामिल होने आई एक 30 वर्षीय कैली डेनियल ने कहा कि नग्नता और सेक्स में बहुत अंतर है, नग्न युवती से कहीं अधिक वीभत्स तो कम कपड़े पहनने वाली युवती लगती है. कोई इंसान अपने कमरे में रोज ही निर्वस्त्र होता है, तब तो उसे वीभत्स नहीं लगता, तब फिर सरेआम यदि वह निर्वस्त्र होता है, तो इसे किस तरह से वीभत्स कहा जाए?सबसे बड़ी आश्चर्य की बात यह है कि स्पेंसर टयूनिक ने जब भी फोटो सेशन किया, तब कहीं से भी कोई छेड़छाड़ की घटना नहीं हुई. इसके बाद भी जब कभी फोटोग्राफर स्पेंसर का नाम आता है, तो कई लोग आज भी नाक-भौं सिकोड़ लेते हैं.
वैसे तो धर्म के नाम पर भी हमारे देश में सरेआम नग्नता का प्रदर्शन होता है. इस वर्ष पहले ही जूते के एक विज्ञापन में मधु सप्रे और मिलिंद सोमण ने निर्वस्त्र होकर पोज दिया था. उनके शरीर को एक अजगर ने ढाँक रखा था. यह विज्ञापन काफी विवादास्पद हुआ था. आजकल फिल्मों में भी जो कुछ परोसा जा रहा है, उससे तो यही लगता है कि देश में सेंसर नाम की कोई चीज है ही नहीं. नग्नता बताने के लिए ये फिल्म वाले न जाने कैसी-कैसी हरकतें करते रहते हैं. कई धार्मिक क्रियाएँ भी नग्नता से जुड़ी हुई है. जूनागढ़ के पास गिरनार की तराई में आयोजित शिवरात्रि के मेले में आधी रात को नागा बाबाओं का जुलूस सदियों से निकल रहा है. इस जुलूस में बहुत ही कम वस्त्रों में साध्वियाँ भी शामिल होती हैं. इस जुलूस के बारे में यह मान्यता है कि इसमें स्वयं शिव भगवान भी शामिल होते हैं. किंतु यह केवल एक मान्यता ही है. हमारे देश के कर्नाटक राज्य में बेंगलोर से 280 किलोमीटर दूर स्थित एक गाँव मेें नग्न पूजा की परंपरा थी. हजारों की संख्या में स्त्री-पुरुष एक नदी में स्नान करके नग्नावस्था में स्थानीय देवी रेणुका की पूजा करते थे. पिछले कई वर्षों से सरकार ने इस पूजा पर प्रतिबंध लगा दिया है, फिर भी यह छुटपुट रूप से आज भी जारी है.
कुछ समय पहले स्पेन में सांडों की दौड़ पर प्रतिबंध लगाने की माँग 'द पीपुल फार द एथिकल ट्रीटमेंट ऑफ एनिमल' द्वारा की गई थी. इसमें सैकड़ों लोगों ने निर्वस्त्र होकर स्पेन की सड़कों पर दौड़ लगाई थी. ईराक में अमेरिकी हमले का साथ देने के लिए जब ऑस्ट्रेलिया ने अपनी तैयारी दिखाई, तो इसका विरोध करने के लिए वहाँ 700 महिलाओं ने खुले आम निर्वस्त्र होकर अपना विरोध जताया था. सिडनी से 700 किलोमीटर दूर न्यू साउथ वेल्स में इन निर्वस्त्र महिलाओं ने दिल आकार बनाया था, जिसके बीच में लिखा था 'नो वार'.
कला के नाम से होने वाली इन विकृतियों से समाजशास्त्री भी चिंतित हैं. उनके लिए यह एक पेचीदा प्रश्न है कि कला के नाम पर लोग किस तरह से निर्वस्त्र हो जाते हैं. कलाकारों का इस संबंध में मानना है कि नग्नता एक प्राकृतिक सौंदर्य है, किंतु इसे देखने के लिए एक उदार दृष्टि की आवश्यकता है. इसका विरोध करने वाले कहते हैं कि यदि सबके पास ऐसी उदार दृष्टि हो जाए, तो कपड़े पहनने की ही क्या आवश्यकता है? नग्नता को लेकर हर किसी के अपने-अपने तर्क हैं, अपनी-अपनी मान्यता है, यह विवाद तो बरसों तक चलता ही रहेगा. पर इसके लिए सभी को उनके विचारों के लिए मुबारकबाद दी जाए, तो ही बेहतर है.
डा. महेश परिमल

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