डा. महेश परिमल
आजकल सरकारी माध्यमों द्वारा उपभोक्ताओं को जाग्रत करने के कई उपाय किए जा रहे हैं. प्रसार माध्यमों में यह कहा जा रहा है कि उपभोक्ता जागो, तुम्हें ठगा जा रहा है. तुम सचेत हो जाओ. तुम्हें सचेत होना ही होगा. उपभोक्ताओं को तो ऐसे कहा जा रहा है मानों वे सचेत हैं ही नहीं. पर एक सचेत उपभोक्ता यदि इस दिशा में कुछ करना चाहे, तो सरकारी तंत्र इतना सबल हैं कि उसकी पुकार अनसुनी ही रह जाती है.
अब आप ही बताएँ कि जब आप कोई वस्तु खरीदना चाहें, तो वह आपके सामने होती है, आप उसे छूकर उसकी गुणव?ाा पर विश्वास कर लेंगे, उसके रंग से भी अच्छी तरह वाकिफ हो जाएँगे. सचेत उपभोक्ता का प्रदर्शन करते हुए आप ने व्यापारी से खरीदी हुई वस्तु का बिल भी माँग लिया. ताकि वस्तु यदि खराब निकले तो बिल दिखाकर उसे वापस किया जा सके. यह सब तो बिल के कारण हो सकता है. पर आज भी हमारे सामने कई सवाल हैं, जिसका जवाब हमें नहीं मिलता. हमारी पूरी जागरुकता के बाद भी. क्या आप भी जानना चाहेंगे कि हम रोज ही किसी न किसी तरह से ठगे जा रहे हैं. हमारी जागरुकता भी हमारे काम नहीं आ रही है. हमारी कहीं सुनवाई नहीं है. हमारे सवालों का जवाब सरकार के पास भी नहीं है. कहीं-कहीं तो सरकार भी लाचार है. उपभोक्ताओं को जगाकर वह स्वयं भी परेशान होगी, यह तय है.
आइए कुछ ऐसे बिंदुओं की ओर ध्यान दें, जिसके कारण हम ठगे जा रहे हैं-
· आप जो पेट्रोल खरीद रहे हैं, वह किस रंग का है?
· क्या आप विश्वासपूर्वक कह सकते हैं कि जो पेट्रोल आपने खरीदा, उसका माप सही है?
· क्या आपको यह भी विश्वास है कि उसकी गुणव?ाा और मात्रा सही है?
· हर पेट्रोल पंप पर आपको नोजल के पीछे का पाइप काले रंग का ही दिखाई देगा. इससे आपको यह भी पता नहीं होता कि पाइप से किस रंग का पेट्रोल आ रहा है, कहीं घासलेट तो नहीं आ रहा है?
· आप यदि दो लीटर पेट्रोल की माँग करते हैं, तो पम्प में क्या दो लीटर का माप है?
· इलेक्ट्रॉनिक मीटर पर आप कहाँ तक भरोसा कर सकते हैं?
· हमें जिन कर्मचारियों से पेट्रोल प्राप्त होता है, उनका वेतन बहुत ही कम होता है. अनजाने में मालिक द्वारा उन्हें छूट मिल जाती है कि वे हमें पेट्रोल देते हुए अपनी आय बढ़ा सकते हैं.
· पेट्रोल पंप पर जब आप पहुँचे, तब आपके आगे कोई अन्य उपभोक्ता नहीं है, तो कर्मचारी ने नोजल सीधे आपके वाहन के टैंक के मुहाने पर रखा और शुरू कर दिया पेट्रोल देना. आप शायद भूल गए कि शुरू में कुछ देर तक उससे पेट्रोल नहीं, हवा ही निकली है. मीटर ने सही बताया, आपने बिल लिया और आगे बढ़ गए. मतलब आपने पेट्रोल की कीमत पर हवा खरीदी!
· पेट्रोल पंप पर आपके वाहन में भरी जाने वाली हवा मुफ्त में मिलती है, लेकिन हवा भरने वाला आपसे रुपए माँगता है. क्या यह उचित है?
· अगर आपको दिए गए पेट्रोल पर आपको शक है और आप उसकी जाँच करवाना चाहते हैं, तो क्या आपको मालूम है कि वह पेट्रोल कहाँ जाएगा? शायद नहीं. चूँकि सरकार के पास अपनी प्रयोगशाला नहीं है, इसलिए वह पेट्रोल जाँच के लिए उसी कंपनी की प्रयोगशाला में जाएगा, जिस कंपनी का वह पेट्रोल है!
· मानक माप के लिए हर पेट्रोल पंप पर केवल पाँच लीटर का ही माप रखा हुआ है. उससे केवल पाँच लीटर पेट्रोल मापा जा सकता है. अभी तक सरकार ने इससे कम पेट्रोल का माप बनाया ही नहीं. यह परंपरागत माप है, जो हम सब बरसों से देखते आ रहे हैं. इन मापों के तलों में फेरफार करके काफी पेट्रोल बचाया जा रहा है.
· सरकार के इस संबंध में नियम कायदे इतने पेचीदा हैं कि साधारण उपभोक्ता उसे समझ नहीं सकता. उसके बाद उसकी कार्यप्रणाली भी इतनी ही पेचीदा है कि उसे पूरी करने में उपभोक्ता का समय और श्रम ही बरबाद होगा.
· अभी तक किसी पेट्रोल पंप मालिक पर ऐसी कोई कड़ी कार्रवाई नहीं हुई, जिससे अन्य पेट्रोल पंप मालिकों पर प्रभाव पड़े.
· अंत में यही बात कि पेट्रोल पंपों की जाँच करने वाले नाप-तौल विभाग के कर्मचारियों को कंप्यूटर का ज्ञान नहीं है, इससे वे इलेक्ट्रॉनिक मीटर में होने वाली गड़बड़ी से अनजान होते हैं.
· पेट्रोल के बाद अब यदि आप बाजार चले जाएँ, तो वहाँ स?जी वालों के तराजुओं पर ंजरा भी विश्वास न किया जाए, तो ही ठीक है. क्योंकि ये तराजू हमेशा से ही त्रुटिपूर्ण होते हैं. इनकीजाँच समय-समय पर होती है, पर केवल उनकी, जिनके पास मानक तराजू हैं. बाकी तो छापे के पहले ही भाग जाते हैं. थोड़ी देर बाद वे फिर आ जाते हैं.
· अंत में एक महत्वपूर्ण बात. अपने घर पर आने वाले बिजली बिल का संपूर्ण अध्ययन कर क्या आप बता सकते हैं कि आप पर किस तरह का चार्ज किस कारण लिया गया?
ये कुछ ऐसी बातें हैं, जो आम उपभोक्ता नहीं जानता. यदि यह सब जान जाएगा, तो सरकार और उसके विभाग को जवाब देना मुश्किल हो जाएगा. इन पंक्तियों के लेखक ने मध्यप्रदेश के नियंत्रक नाप तौल से विस्तार से बात की, उन्होंने एक आम उपभोक्ता की तरह उपभोक्ता के अधिकारों को बताया, पर सच कहा जाए, तो वे अधिकार भी इतने पेचीदा हैं कि उस पर अमल करना भी मुश्किल होगा. एक शिकायत के बाद सारी मशक्कत उपभोक्ता को ही करनी होगी. सच तो यह है कि आज किसी उपभोक्ता के पास इतना समय नहीं है कि अपने सारे काम छोड़कर शिकायत और उसकी तमाम कार्रवाइयों की जानकारी में लगाए. आम उपभोक्ता की इसी कमजोरी का लाभ उठाते हुए आज हर जगह उपभोक्ताओं का शोषण हो रहा है. एक जागरुक उपभोक्ता यह तो देख रहा है कि उसने पेट्रोल लेने के पहले ही 0 देख लिया है, उसके बाद भी यदि उसे पेट्रोल कम मिलता है, तो इसका जिम्मेदार कौन है? एक किलो स?जी के बजाए उसे मात्र 900 ग्राम ही मिलती है. इसका जवाबदार कौन है? जिम्मेदारी कोई नहीं लेना चाहेगा क्योंकि पूरे मध्यप्रदेश में एक ऑंकड़े के अनुसार नाप तौल विभाग के 600 कर्मचारी हैं और उपभोक्ता 6 लाख.
इसके सुझाव के रूप में कुछ बातों का समावेश किया जाए, तो स्थिति काफी हद तक नियंत्रित हो सकती है-
· यदि सभी उपभोक्ता अपने साथ प्लास्टिक या एक्रेलिक का माप रखें और उसी से पेट्रोल प्राप्त करें, तो उन्हें कम से कम पूरी मात्रा में पेट्रोल मिलेगा.
· नोजल के पीछे का पाइप पारदर्शी किया जाए, इससे उपभोक्ता को पता तो चलेगा ही कि वह पेट्रोल ले रहा है या हवा. जब गोली की मार झेलने वाला पारदर्शी कवच बन सकता है, तो पारदर्शी पाइप क्यों नहीं बनाया जा सकता?
· हर पेट्रोल पंप पर पेट्रोल की जाँच करने वाला यंत्र उपल?ध हो, जिससे तुरंत जाँच हो सके.
· सरकार इस काम में वाहन बनाने वाली कंपनियों का सहयोग ले सकती है, जिन्हें हमेशा यह शिकायत मिलती है कि उनका वाहन सही एवरेज नहीं देता. यह सभी जानते हैं कि एवरेज सही इसलिए नहीं मिलता, क्योंकि उन्हें पेट्रोल या डीजल ही सही माप का नहीं मिलता. वाहन कंपनियों के आगे आने से उपभोक्ताओं को इस तरह की परेशानी से मुक्ति मिल जाएगी.
· पेट्रोल पंप पर ऐसी व्यवस्था की जाए, जिसमें उपभोक्ता पहले बिल प्राप्त करे, बाद में उसे पेट्रोल मिले. इससे हर उपभोक्ता को बिल तो मिल ही जाएगा, फिर उसे शिकायत करने में सुविधा होगी. अभी तो माँगने पर ही बिल मिलता है, या फिर 'बाद में ले लेना' कहकर टाल दिया जाता है. इससे पंप मालिक को ही लाभ होता है.
· सारी व्यवस्था उपभोक्ता की परिस्थितियों को देखते हुए की जाए, क्योंकि आज किसी के पास इतना समय नहीं है कि बिल लेने के लिए भी दो मिनट खड़ा रहे. उसे वे दो मिनट भी भारी पड़ते हैं.
· पेट्रोल पंप पर आवश्यक फोन नम्बर की सूची में नियंत्रक नाप तौल का भी नम्बर हो, ताकि शिकायत करनी हो, तो उनसे सम्पर्क किया जा सके.
· जिन पेट्रोल पंपों पर छापे पड़े हों और उन पर कार्रवाई हुई हो, तो उनके नाम शहर के चौराहों पर अंकित किए जाएँ, जिससे उपभोक्ता उन पेट्रोल पंपों पर जाने के पहले सचेत हो जाएँ.
· उपभोक्ता कई बार कम पेट्रोल मिलने की शिकायत इसलिए नहीं कर पाता, क्योंकि जब उसके वाहन में पहले से ही कुछ पेट्रोल था, उस पर पेट्रोल डाला गया, इससे पूरा पेट्रोल नहीं मापा जा सकता. आखिर इसका भी तो कोई उपाय होना चाहिए.
डा. महेश परिमल
आजकल सरकारी माध्यमों द्वारा उपभोक्ताओं को जाग्रत करने के कई उपाय किए जा रहे हैं. प्रसार माध्यमों में यह कहा जा रहा है कि उपभोक्ता जागो, तुम्हें ठगा जा रहा है. तुम सचेत हो जाओ. तुम्हें सचेत होना ही होगा. उपभोक्ताओं को तो ऐसे कहा जा रहा है मानों वे सचेत हैं ही नहीं. पर एक सचेत उपभोक्ता यदि इस दिशा में कुछ करना चाहे, तो सरकारी तंत्र इतना सबल हैं कि उसकी पुकार अनसुनी ही रह जाती है.
अब आप ही बताएँ कि जब आप कोई वस्तु खरीदना चाहें, तो वह आपके सामने होती है, आप उसे छूकर उसकी गुणव?ाा पर विश्वास कर लेंगे, उसके रंग से भी अच्छी तरह वाकिफ हो जाएँगे. सचेत उपभोक्ता का प्रदर्शन करते हुए आप ने व्यापारी से खरीदी हुई वस्तु का बिल भी माँग लिया. ताकि वस्तु यदि खराब निकले तो बिल दिखाकर उसे वापस किया जा सके. यह सब तो बिल के कारण हो सकता है. पर आज भी हमारे सामने कई सवाल हैं, जिसका जवाब हमें नहीं मिलता. हमारी पूरी जागरुकता के बाद भी. क्या आप भी जानना चाहेंगे कि हम रोज ही किसी न किसी तरह से ठगे जा रहे हैं. हमारी जागरुकता भी हमारे काम नहीं आ रही है. हमारी कहीं सुनवाई नहीं है. हमारे सवालों का जवाब सरकार के पास भी नहीं है. कहीं-कहीं तो सरकार भी लाचार है. उपभोक्ताओं को जगाकर वह स्वयं भी परेशान होगी, यह तय है.
आइए कुछ ऐसे बिंदुओं की ओर ध्यान दें, जिसके कारण हम ठगे जा रहे हैं-
· आप जो पेट्रोल खरीद रहे हैं, वह किस रंग का है?
· क्या आप विश्वासपूर्वक कह सकते हैं कि जो पेट्रोल आपने खरीदा, उसका माप सही है?
· क्या आपको यह भी विश्वास है कि उसकी गुणव?ाा और मात्रा सही है?
· हर पेट्रोल पंप पर आपको नोजल के पीछे का पाइप काले रंग का ही दिखाई देगा. इससे आपको यह भी पता नहीं होता कि पाइप से किस रंग का पेट्रोल आ रहा है, कहीं घासलेट तो नहीं आ रहा है?
· आप यदि दो लीटर पेट्रोल की माँग करते हैं, तो पम्प में क्या दो लीटर का माप है?
· इलेक्ट्रॉनिक मीटर पर आप कहाँ तक भरोसा कर सकते हैं?
· हमें जिन कर्मचारियों से पेट्रोल प्राप्त होता है, उनका वेतन बहुत ही कम होता है. अनजाने में मालिक द्वारा उन्हें छूट मिल जाती है कि वे हमें पेट्रोल देते हुए अपनी आय बढ़ा सकते हैं.
· पेट्रोल पंप पर जब आप पहुँचे, तब आपके आगे कोई अन्य उपभोक्ता नहीं है, तो कर्मचारी ने नोजल सीधे आपके वाहन के टैंक के मुहाने पर रखा और शुरू कर दिया पेट्रोल देना. आप शायद भूल गए कि शुरू में कुछ देर तक उससे पेट्रोल नहीं, हवा ही निकली है. मीटर ने सही बताया, आपने बिल लिया और आगे बढ़ गए. मतलब आपने पेट्रोल की कीमत पर हवा खरीदी!
· पेट्रोल पंप पर आपके वाहन में भरी जाने वाली हवा मुफ्त में मिलती है, लेकिन हवा भरने वाला आपसे रुपए माँगता है. क्या यह उचित है?
· अगर आपको दिए गए पेट्रोल पर आपको शक है और आप उसकी जाँच करवाना चाहते हैं, तो क्या आपको मालूम है कि वह पेट्रोल कहाँ जाएगा? शायद नहीं. चूँकि सरकार के पास अपनी प्रयोगशाला नहीं है, इसलिए वह पेट्रोल जाँच के लिए उसी कंपनी की प्रयोगशाला में जाएगा, जिस कंपनी का वह पेट्रोल है!
· मानक माप के लिए हर पेट्रोल पंप पर केवल पाँच लीटर का ही माप रखा हुआ है. उससे केवल पाँच लीटर पेट्रोल मापा जा सकता है. अभी तक सरकार ने इससे कम पेट्रोल का माप बनाया ही नहीं. यह परंपरागत माप है, जो हम सब बरसों से देखते आ रहे हैं. इन मापों के तलों में फेरफार करके काफी पेट्रोल बचाया जा रहा है.
· सरकार के इस संबंध में नियम कायदे इतने पेचीदा हैं कि साधारण उपभोक्ता उसे समझ नहीं सकता. उसके बाद उसकी कार्यप्रणाली भी इतनी ही पेचीदा है कि उसे पूरी करने में उपभोक्ता का समय और श्रम ही बरबाद होगा.
· अभी तक किसी पेट्रोल पंप मालिक पर ऐसी कोई कड़ी कार्रवाई नहीं हुई, जिससे अन्य पेट्रोल पंप मालिकों पर प्रभाव पड़े.
· अंत में यही बात कि पेट्रोल पंपों की जाँच करने वाले नाप-तौल विभाग के कर्मचारियों को कंप्यूटर का ज्ञान नहीं है, इससे वे इलेक्ट्रॉनिक मीटर में होने वाली गड़बड़ी से अनजान होते हैं.
· पेट्रोल के बाद अब यदि आप बाजार चले जाएँ, तो वहाँ स?जी वालों के तराजुओं पर ंजरा भी विश्वास न किया जाए, तो ही ठीक है. क्योंकि ये तराजू हमेशा से ही त्रुटिपूर्ण होते हैं. इनकीजाँच समय-समय पर होती है, पर केवल उनकी, जिनके पास मानक तराजू हैं. बाकी तो छापे के पहले ही भाग जाते हैं. थोड़ी देर बाद वे फिर आ जाते हैं.
· अंत में एक महत्वपूर्ण बात. अपने घर पर आने वाले बिजली बिल का संपूर्ण अध्ययन कर क्या आप बता सकते हैं कि आप पर किस तरह का चार्ज किस कारण लिया गया?
ये कुछ ऐसी बातें हैं, जो आम उपभोक्ता नहीं जानता. यदि यह सब जान जाएगा, तो सरकार और उसके विभाग को जवाब देना मुश्किल हो जाएगा. इन पंक्तियों के लेखक ने मध्यप्रदेश के नियंत्रक नाप तौल से विस्तार से बात की, उन्होंने एक आम उपभोक्ता की तरह उपभोक्ता के अधिकारों को बताया, पर सच कहा जाए, तो वे अधिकार भी इतने पेचीदा हैं कि उस पर अमल करना भी मुश्किल होगा. एक शिकायत के बाद सारी मशक्कत उपभोक्ता को ही करनी होगी. सच तो यह है कि आज किसी उपभोक्ता के पास इतना समय नहीं है कि अपने सारे काम छोड़कर शिकायत और उसकी तमाम कार्रवाइयों की जानकारी में लगाए. आम उपभोक्ता की इसी कमजोरी का लाभ उठाते हुए आज हर जगह उपभोक्ताओं का शोषण हो रहा है. एक जागरुक उपभोक्ता यह तो देख रहा है कि उसने पेट्रोल लेने के पहले ही 0 देख लिया है, उसके बाद भी यदि उसे पेट्रोल कम मिलता है, तो इसका जिम्मेदार कौन है? एक किलो स?जी के बजाए उसे मात्र 900 ग्राम ही मिलती है. इसका जवाबदार कौन है? जिम्मेदारी कोई नहीं लेना चाहेगा क्योंकि पूरे मध्यप्रदेश में एक ऑंकड़े के अनुसार नाप तौल विभाग के 600 कर्मचारी हैं और उपभोक्ता 6 लाख.
इसके सुझाव के रूप में कुछ बातों का समावेश किया जाए, तो स्थिति काफी हद तक नियंत्रित हो सकती है-
· यदि सभी उपभोक्ता अपने साथ प्लास्टिक या एक्रेलिक का माप रखें और उसी से पेट्रोल प्राप्त करें, तो उन्हें कम से कम पूरी मात्रा में पेट्रोल मिलेगा.
· नोजल के पीछे का पाइप पारदर्शी किया जाए, इससे उपभोक्ता को पता तो चलेगा ही कि वह पेट्रोल ले रहा है या हवा. जब गोली की मार झेलने वाला पारदर्शी कवच बन सकता है, तो पारदर्शी पाइप क्यों नहीं बनाया जा सकता?
· हर पेट्रोल पंप पर पेट्रोल की जाँच करने वाला यंत्र उपल?ध हो, जिससे तुरंत जाँच हो सके.
· सरकार इस काम में वाहन बनाने वाली कंपनियों का सहयोग ले सकती है, जिन्हें हमेशा यह शिकायत मिलती है कि उनका वाहन सही एवरेज नहीं देता. यह सभी जानते हैं कि एवरेज सही इसलिए नहीं मिलता, क्योंकि उन्हें पेट्रोल या डीजल ही सही माप का नहीं मिलता. वाहन कंपनियों के आगे आने से उपभोक्ताओं को इस तरह की परेशानी से मुक्ति मिल जाएगी.
· पेट्रोल पंप पर ऐसी व्यवस्था की जाए, जिसमें उपभोक्ता पहले बिल प्राप्त करे, बाद में उसे पेट्रोल मिले. इससे हर उपभोक्ता को बिल तो मिल ही जाएगा, फिर उसे शिकायत करने में सुविधा होगी. अभी तो माँगने पर ही बिल मिलता है, या फिर 'बाद में ले लेना' कहकर टाल दिया जाता है. इससे पंप मालिक को ही लाभ होता है.
· सारी व्यवस्था उपभोक्ता की परिस्थितियों को देखते हुए की जाए, क्योंकि आज किसी के पास इतना समय नहीं है कि बिल लेने के लिए भी दो मिनट खड़ा रहे. उसे वे दो मिनट भी भारी पड़ते हैं.
· पेट्रोल पंप पर आवश्यक फोन नम्बर की सूची में नियंत्रक नाप तौल का भी नम्बर हो, ताकि शिकायत करनी हो, तो उनसे सम्पर्क किया जा सके.
· जिन पेट्रोल पंपों पर छापे पड़े हों और उन पर कार्रवाई हुई हो, तो उनके नाम शहर के चौराहों पर अंकित किए जाएँ, जिससे उपभोक्ता उन पेट्रोल पंपों पर जाने के पहले सचेत हो जाएँ.
· उपभोक्ता कई बार कम पेट्रोल मिलने की शिकायत इसलिए नहीं कर पाता, क्योंकि जब उसके वाहन में पहले से ही कुछ पेट्रोल था, उस पर पेट्रोल डाला गया, इससे पूरा पेट्रोल नहीं मापा जा सकता. आखिर इसका भी तो कोई उपाय होना चाहिए.
डा. महेश परिमल