डा. महेश परिमल
हमारे देश का कानून कितना लचीला है, इसका अंदाजा हम सभी को है. हत्याएँ, डकैतियाँ और चोरियाँ आज भी हो रहीं हैं, शोर पर किसी तरह का प्रतिबंध आज तक नहीं लग पाया है, जंगल के कानून तो जंगल तक ही सीमित होकर रह गए हैं, पर आश्चर्य की बात तो यह है कि आज से 34 साल पहले सरकार ने इंसान के बाद सबसे बुद्धिशाली प्राणी डॉल्फिन के संरक्षण के लिए एक कानून बनाया कि जो भी डॉल्फिन का शिकार करेगा, उसे सजा दी जाएगी. पर आज तक इस कानून के तहत केवल एक व्यक्ति को ही सजा मिल पाई है. अब तक न जाने कितनी डॉल्फिन ों का अवैध शिकार हो चुका है, पर डाल्फि न के शिकार पर प्रतिबंध अभी तक नहीं लग पाया. यहाँ तक आते-आते कानून की सारी सख्ती खत्म हो जाती है. वैसे डॉल्फिन जैसी समझदार मछली इंसान के लिए लाभदायक है. इसकी समझदारी का उपयोग अमेरिका ने वियतनाम और ईराक के खिलाफ युध्द में भी किया था. आइए जाने डॉल्फिन के बारे में....
काफी समय पहले रुस के सहयोग से बनी एक हिंदी फिल्म आई थी 'अजूबा', इस फिल्म में डॉल्फिन मछली को समुद्र से उछलते हुए देखना बहुत ही सुखद लगा था. तब लगा कि यह मछली तो कितनी समझदार है. जिसने भी डॉल्फिन को समुद्र या नदी में अठखेलियाँ करते देखा है, वह उससे प्रभावित हुए बिना नहीं रहा है. डॉल्फिन है ही इतनी प्यारी मछली. उसे प्यार करना सबको अच्छा लगता है. उसकी हरकतें ही ऐसी होती हैं कि हर कोई उसके साथ खेलना चाहता है. उसकी मुलायम त्वचा को छूना चाहता है. विश्व के अधिकांश पर्यटन स्थलों पर डॉल्फिन शो का आयोजन किया जाता है, भारत में गोवा सहित अनेक पर्यटन स्थलों में इसी तरह के शो का आयोजन किया जाता है. शो के दौरान पानी से निकलकर छलांग मारती डॉल्फिन को देखना सुखद लगता है. डॉल्फिन की खासियत यह होती है कि यह पानी में नृत्य कर सकती है, उसे जो भी सिखाया जाए, वह तुरंत ही सीख लेती है. यही कारण है कि उसे मानव के बाद सबसे बुद्धिशाली जीव माना जाता है.
डॉल्फिन के संबंध में पूरे विश्व में शोध किए जा रहे हैें. इन शोधों में एक बात सामने आई है कि डाल्फि न आपस में एक-दूसरे को नाम से पुकारती हैं. अमेरिका की सेंट एंडयूस यूनिवर्सिटी की शोध समूह द्वारा डॉल्फिन के संबंध में लगातार तीन वर्ष तक शोध चलती रही. अमेरिका के फ्लोरिडा के पास समुद्री किनारे से डॉल्फिन पकड़ी गई, इन्हें पानी में रखकर इनका अध्ययन किया गया. इन दौरान पता चला कि डॉल्फिन अपने साथी को बुलाने के लिए एक विशेष प्रकार की सीटी बजाती है. हर मछली के लिए अलग-अलग तरह की सीटी बजाई जाती है. इसके लिए अमेरिकी विशेषज्ञों ने एक प्रयोग भी किया. डॉल्फिन जब दूसरी डॉल्फिन को बुलाने के लिए सीटी बजा रही थी, तब उसकी आवाज को रिकॉर्ड कर लिया गया. इसके पश्चात इस आवाज को कंप्यूटर में दर्ज किया गया,उसके बाद कंप्यूटर की मदद से डॉल्फिन की कृत्रिम आवाज तैयार की गई. जब कंप्यूटराइज्ड आवाज दूसरी डॉल्फिन को सुनाई गई, तब उसके कान सक्रिय हो गए और वह आवाज की दिशा में दौड़ पड़ी. इससे स्पष्ट हो गया कि सभी डॉल्फिनों के नाम होते हैं और वे आपस में परस्पर नाम से बुलाती हैं. अब इस पर शोध शुरू हो गया है कि डॉल्फिन ों में यह विशेषता पहले से ही है, या समय के साथ यह बदलाव आया है.
डॉल्फिन के बारे में विश्व में विभिन्न प्रकार की दंतकथाएँ सुनने को मिलती हैं. ग्रीस में आज भी कोई जहाज जा रहा हो और उसके सामने डॉल्फिन आ जाए, तो इसे शुभ माना जाता है. अनेक देशों में डॉल्फिन जल- देवी के रूप में पूजी जाती है. डॉल्फिन मुख्यत: दो प्रकार की होती है, एक समुद्र की डॉल्फिन और दूसरी नदी की डॉल्फिन. समुद्र और नदी की डॉल्फिन की भी अलग-अलग किस्में होती हैं. भारत के बिहार से गुजरने वाली गंगा नदी में असंख्य डॉल्फिनें हैं. बिहार में इन डॉल्फिनों को सुंस अथवा सोस के नाम से जाना जाता है. यहाँ मैथिली और अंगिकाभाषी लोग डॉल्फिन को पवित्र मानते हैं. डॉल्फिन के शिकार करने वाले भी कम नहीं हैं. डॉल्फिन की चर्बी और तेल की पूरे विश्व में भारी माँग है. डॉल्फिन के शिकार पर प्रतिबंध होने के कारण इसका शिकार अवैध माना जाता है. इनके अवैध शिकार को रोकने के लिए सरकार ने 1972 में कानून बनाकर इसे सुरक्षित जलचर घोषित किया. इसके बाद भी आज तक डॉल्फिनों का अवैध शिकार जारी है. बिहार से बहती गंगा के 50 किलोमीटर के क्षेत्र को 'विक्रशीला गंगा डॉल्फिन अभयारण्य' घोषित किया गया है. डॉल्फिन के लिए यह पूरे एशिया में एकमात्र अभयारण्य है. इसमें चार से पाँच हजार जितनी डॉल्फिनें हैं. गंगा नदी में होने वाले प्रदूषण के कारण इन डॉल्फिनों के जीवन पर खतरा मँडराने लगा है. सरकार की उपेक्षा के कारण यह अभयारण्य सुरक्षित नहीं है, सरकारी उपेक्षा के कारण यहाँ पर्यटक नहीं आते,
नदी की डॉल्फिन समुद्र की डॉल्फिन जितनी बुद्धिशाली नहीं होती. समुद्र की डॉल्फिनों में भी बॉटलनोज डॉल्फिन को सबसे अधिक बुद्धिशाली माना जाता है. विश्व के अलग-अलग समुद्रों में पाई जाने वाली डॉल्फिनों में भी अंतर होता है. डॉल्फिन की कुल 40 मुख्य जातियाँ हैं. विविध प्रकार की इन डॉल्फिनों की लम्बाई चार फीट से लेकर 30 फीअ तक होती है. डॉल्फिन का वजन भी उनकी जातियों के अनुसार अलग-अलग होता है. डॉल्फिन का वजन 40 किलो से लेकर 10 टन तक होता है. उ?ारी अमेरिका में पाई जाने वाली डॉल्फिन की औसत लम्बाई 14 फीट होती है और उसका वजन 50 से 200 किलो होता है. डॉल्फिन का मुख्य भोजन छोटी मछलियाँ होती हैं. समुद्र में डॉल्फिनें समूह में रहती हैं, इनके समूह को स्कूल या पॉड कहा जाता है. सामान्यतौर पर डॉल्फिनें 12 से 20 की संख्या में होती हैं और एक-दूसरे की मदद करती हैं. जब कभी उनके सामने मुसीबत आती है, तब सारे समूह एक होकर उसका सामना करते हैं. इस स्थिति में एक समूह में करीब एक हजार डॉल्फिनें शामिल हो जाती हैं.
डॉल्फिनों की सबसे बड़ी ताकत उनकी ऑंख और कान हैं. इनके देखने की क्षमता काफी तीव्र होती है, पानी के अंदर और बाहर ये काफी दूर तक स्पष्ट देख सकती है. डॉल्फिनों में श्रवण शक्ति तो इंसान से भी अधिक होती है. इनके माथे के बाजू में स्थित एक कान छोटी से छोटी आवाज को भी पकड़ लेता है. डॉल्फिन में सूँघने की शक्ति नहीं है, परंतु वह सभी स्वादों को अच्छे से पहचान जाती है. डॉल्फिन की इन्हीं विशेषताओं को देखते हुए उन्हें सेना में विशेष स्थान प्राप्त है. अमेरिकी सेना में डॉल्फिनों की एक पूरी बटालियन है. तीन वर्ष पहले जब अमेरिका ने ईराक पर हमला किया, तब डॉल्फिनों ने बहुत ही महत्वपूर्ण योगदान दिया था.ईराक ने अपने समुद्र क्षेत्र में बारुदी सुरंग बिछाई थी, इनकी क्षमता इतनी अधिक थी कि जो कोई जहाज उनके समुद्र क्षेत्र में आता, वह नष्ट हो जाता था. इन समुद्रीरुरंगों को खोजने के लिए अमेरिका ने डॉल्फिन की मदद ली थी. इसके लिए खास हेलीकॉप्टर में डॉल्फिनों को अमेरिका से ईराक ले जाया गया.
विशेष रूप से प्रशिक्षित डॉल्फिन समुद्र में 1700 फीट की गहराई में जाकर करीब 75 किलोमीटर प्रतिघंटे की रफ्तार से दौड़कर समुद्री सुरंग का पता लगा लेती है. डॉल्फिन बारुदी सुरंग को छूती नहीं है, पर उसके पास पहुँचकर उसके बारे में संकेत दे देती है. इस संकेत के माध्यम से सेना सुरंग का नाश कर देती है. डॉल्फिनों की मदद से ही अमेरिकी सेना ईराक के उम्रकश बंदरगाह तक पहुँची थी. अमेरिकी सेना तो पिछले 45 वर्षों से डॉल्फिनों का उपयोग कर रही है.
डॉल्फिन की सबसे बड़ी विशेषता यही है कि यह मानव की संवेदनशील मित्र है. इनके साथ यह हिलमिलकर रहती है. आश्चर्य की बात यह है कि उसके 250 दाँत होते हैं, फिर भी आज तक उसने इंसानों को कभी हानि नहीं पहुँचाई. प्राणी शास्त्री तो यहाँ तक कहते हैं कि डॉल्फिन पहली ही नजर में लोगों को भा जाती है. लेकिन आज इस प्यारी सी मददगार मछली को आवश्यकता है मदद की, क्योंकि इसका अवैध शिकार जारी है, कानून भी कुछ नहीं कर पा रहे हैं, इंसान अपने जैसे बुद्धिशाली प्राणी को खत्म कर आखिर क्या साबित करना चाहता है?
डा. महेश परिमल
हमारे देश का कानून कितना लचीला है, इसका अंदाजा हम सभी को है. हत्याएँ, डकैतियाँ और चोरियाँ आज भी हो रहीं हैं, शोर पर किसी तरह का प्रतिबंध आज तक नहीं लग पाया है, जंगल के कानून तो जंगल तक ही सीमित होकर रह गए हैं, पर आश्चर्य की बात तो यह है कि आज से 34 साल पहले सरकार ने इंसान के बाद सबसे बुद्धिशाली प्राणी डॉल्फिन के संरक्षण के लिए एक कानून बनाया कि जो भी डॉल्फिन का शिकार करेगा, उसे सजा दी जाएगी. पर आज तक इस कानून के तहत केवल एक व्यक्ति को ही सजा मिल पाई है. अब तक न जाने कितनी डॉल्फिन ों का अवैध शिकार हो चुका है, पर डाल्फि न के शिकार पर प्रतिबंध अभी तक नहीं लग पाया. यहाँ तक आते-आते कानून की सारी सख्ती खत्म हो जाती है. वैसे डॉल्फिन जैसी समझदार मछली इंसान के लिए लाभदायक है. इसकी समझदारी का उपयोग अमेरिका ने वियतनाम और ईराक के खिलाफ युध्द में भी किया था. आइए जाने डॉल्फिन के बारे में....
काफी समय पहले रुस के सहयोग से बनी एक हिंदी फिल्म आई थी 'अजूबा', इस फिल्म में डॉल्फिन मछली को समुद्र से उछलते हुए देखना बहुत ही सुखद लगा था. तब लगा कि यह मछली तो कितनी समझदार है. जिसने भी डॉल्फिन को समुद्र या नदी में अठखेलियाँ करते देखा है, वह उससे प्रभावित हुए बिना नहीं रहा है. डॉल्फिन है ही इतनी प्यारी मछली. उसे प्यार करना सबको अच्छा लगता है. उसकी हरकतें ही ऐसी होती हैं कि हर कोई उसके साथ खेलना चाहता है. उसकी मुलायम त्वचा को छूना चाहता है. विश्व के अधिकांश पर्यटन स्थलों पर डॉल्फिन शो का आयोजन किया जाता है, भारत में गोवा सहित अनेक पर्यटन स्थलों में इसी तरह के शो का आयोजन किया जाता है. शो के दौरान पानी से निकलकर छलांग मारती डॉल्फिन को देखना सुखद लगता है. डॉल्फिन की खासियत यह होती है कि यह पानी में नृत्य कर सकती है, उसे जो भी सिखाया जाए, वह तुरंत ही सीख लेती है. यही कारण है कि उसे मानव के बाद सबसे बुद्धिशाली जीव माना जाता है.
डॉल्फिन के संबंध में पूरे विश्व में शोध किए जा रहे हैें. इन शोधों में एक बात सामने आई है कि डाल्फि न आपस में एक-दूसरे को नाम से पुकारती हैं. अमेरिका की सेंट एंडयूस यूनिवर्सिटी की शोध समूह द्वारा डॉल्फिन के संबंध में लगातार तीन वर्ष तक शोध चलती रही. अमेरिका के फ्लोरिडा के पास समुद्री किनारे से डॉल्फिन पकड़ी गई, इन्हें पानी में रखकर इनका अध्ययन किया गया. इन दौरान पता चला कि डॉल्फिन अपने साथी को बुलाने के लिए एक विशेष प्रकार की सीटी बजाती है. हर मछली के लिए अलग-अलग तरह की सीटी बजाई जाती है. इसके लिए अमेरिकी विशेषज्ञों ने एक प्रयोग भी किया. डॉल्फिन जब दूसरी डॉल्फिन को बुलाने के लिए सीटी बजा रही थी, तब उसकी आवाज को रिकॉर्ड कर लिया गया. इसके पश्चात इस आवाज को कंप्यूटर में दर्ज किया गया,उसके बाद कंप्यूटर की मदद से डॉल्फिन की कृत्रिम आवाज तैयार की गई. जब कंप्यूटराइज्ड आवाज दूसरी डॉल्फिन को सुनाई गई, तब उसके कान सक्रिय हो गए और वह आवाज की दिशा में दौड़ पड़ी. इससे स्पष्ट हो गया कि सभी डॉल्फिनों के नाम होते हैं और वे आपस में परस्पर नाम से बुलाती हैं. अब इस पर शोध शुरू हो गया है कि डॉल्फिन ों में यह विशेषता पहले से ही है, या समय के साथ यह बदलाव आया है.
डॉल्फिन के बारे में विश्व में विभिन्न प्रकार की दंतकथाएँ सुनने को मिलती हैं. ग्रीस में आज भी कोई जहाज जा रहा हो और उसके सामने डॉल्फिन आ जाए, तो इसे शुभ माना जाता है. अनेक देशों में डॉल्फिन जल- देवी के रूप में पूजी जाती है. डॉल्फिन मुख्यत: दो प्रकार की होती है, एक समुद्र की डॉल्फिन और दूसरी नदी की डॉल्फिन. समुद्र और नदी की डॉल्फिन की भी अलग-अलग किस्में होती हैं. भारत के बिहार से गुजरने वाली गंगा नदी में असंख्य डॉल्फिनें हैं. बिहार में इन डॉल्फिनों को सुंस अथवा सोस के नाम से जाना जाता है. यहाँ मैथिली और अंगिकाभाषी लोग डॉल्फिन को पवित्र मानते हैं. डॉल्फिन के शिकार करने वाले भी कम नहीं हैं. डॉल्फिन की चर्बी और तेल की पूरे विश्व में भारी माँग है. डॉल्फिन के शिकार पर प्रतिबंध होने के कारण इसका शिकार अवैध माना जाता है. इनके अवैध शिकार को रोकने के लिए सरकार ने 1972 में कानून बनाकर इसे सुरक्षित जलचर घोषित किया. इसके बाद भी आज तक डॉल्फिनों का अवैध शिकार जारी है. बिहार से बहती गंगा के 50 किलोमीटर के क्षेत्र को 'विक्रशीला गंगा डॉल्फिन अभयारण्य' घोषित किया गया है. डॉल्फिन के लिए यह पूरे एशिया में एकमात्र अभयारण्य है. इसमें चार से पाँच हजार जितनी डॉल्फिनें हैं. गंगा नदी में होने वाले प्रदूषण के कारण इन डॉल्फिनों के जीवन पर खतरा मँडराने लगा है. सरकार की उपेक्षा के कारण यह अभयारण्य सुरक्षित नहीं है, सरकारी उपेक्षा के कारण यहाँ पर्यटक नहीं आते,
नदी की डॉल्फिन समुद्र की डॉल्फिन जितनी बुद्धिशाली नहीं होती. समुद्र की डॉल्फिनों में भी बॉटलनोज डॉल्फिन को सबसे अधिक बुद्धिशाली माना जाता है. विश्व के अलग-अलग समुद्रों में पाई जाने वाली डॉल्फिनों में भी अंतर होता है. डॉल्फिन की कुल 40 मुख्य जातियाँ हैं. विविध प्रकार की इन डॉल्फिनों की लम्बाई चार फीट से लेकर 30 फीअ तक होती है. डॉल्फिन का वजन भी उनकी जातियों के अनुसार अलग-अलग होता है. डॉल्फिन का वजन 40 किलो से लेकर 10 टन तक होता है. उ?ारी अमेरिका में पाई जाने वाली डॉल्फिन की औसत लम्बाई 14 फीट होती है और उसका वजन 50 से 200 किलो होता है. डॉल्फिन का मुख्य भोजन छोटी मछलियाँ होती हैं. समुद्र में डॉल्फिनें समूह में रहती हैं, इनके समूह को स्कूल या पॉड कहा जाता है. सामान्यतौर पर डॉल्फिनें 12 से 20 की संख्या में होती हैं और एक-दूसरे की मदद करती हैं. जब कभी उनके सामने मुसीबत आती है, तब सारे समूह एक होकर उसका सामना करते हैं. इस स्थिति में एक समूह में करीब एक हजार डॉल्फिनें शामिल हो जाती हैं.
डॉल्फिनों की सबसे बड़ी ताकत उनकी ऑंख और कान हैं. इनके देखने की क्षमता काफी तीव्र होती है, पानी के अंदर और बाहर ये काफी दूर तक स्पष्ट देख सकती है. डॉल्फिनों में श्रवण शक्ति तो इंसान से भी अधिक होती है. इनके माथे के बाजू में स्थित एक कान छोटी से छोटी आवाज को भी पकड़ लेता है. डॉल्फिन में सूँघने की शक्ति नहीं है, परंतु वह सभी स्वादों को अच्छे से पहचान जाती है. डॉल्फिन की इन्हीं विशेषताओं को देखते हुए उन्हें सेना में विशेष स्थान प्राप्त है. अमेरिकी सेना में डॉल्फिनों की एक पूरी बटालियन है. तीन वर्ष पहले जब अमेरिका ने ईराक पर हमला किया, तब डॉल्फिनों ने बहुत ही महत्वपूर्ण योगदान दिया था.ईराक ने अपने समुद्र क्षेत्र में बारुदी सुरंग बिछाई थी, इनकी क्षमता इतनी अधिक थी कि जो कोई जहाज उनके समुद्र क्षेत्र में आता, वह नष्ट हो जाता था. इन समुद्रीरुरंगों को खोजने के लिए अमेरिका ने डॉल्फिन की मदद ली थी. इसके लिए खास हेलीकॉप्टर में डॉल्फिनों को अमेरिका से ईराक ले जाया गया.
विशेष रूप से प्रशिक्षित डॉल्फिन समुद्र में 1700 फीट की गहराई में जाकर करीब 75 किलोमीटर प्रतिघंटे की रफ्तार से दौड़कर समुद्री सुरंग का पता लगा लेती है. डॉल्फिन बारुदी सुरंग को छूती नहीं है, पर उसके पास पहुँचकर उसके बारे में संकेत दे देती है. इस संकेत के माध्यम से सेना सुरंग का नाश कर देती है. डॉल्फिनों की मदद से ही अमेरिकी सेना ईराक के उम्रकश बंदरगाह तक पहुँची थी. अमेरिकी सेना तो पिछले 45 वर्षों से डॉल्फिनों का उपयोग कर रही है.
डॉल्फिन की सबसे बड़ी विशेषता यही है कि यह मानव की संवेदनशील मित्र है. इनके साथ यह हिलमिलकर रहती है. आश्चर्य की बात यह है कि उसके 250 दाँत होते हैं, फिर भी आज तक उसने इंसानों को कभी हानि नहीं पहुँचाई. प्राणी शास्त्री तो यहाँ तक कहते हैं कि डॉल्फिन पहली ही नजर में लोगों को भा जाती है. लेकिन आज इस प्यारी सी मददगार मछली को आवश्यकता है मदद की, क्योंकि इसका अवैध शिकार जारी है, कानून भी कुछ नहीं कर पा रहे हैं, इंसान अपने जैसे बुद्धिशाली प्राणी को खत्म कर आखिर क्या साबित करना चाहता है?
डा. महेश परिमल