डा. महेश परिमल
भला समय को कभी बोया भी जा सकता है? तो मेरा मानना यह है कि जब समय को काटा जा सकता है, तो बोया क्यों नहीं जा सकता? काटा तो उसे ही जाता है ना, जिसे बोया गया हो. यह सच है कि समय को बोया भी जा सकता है. यह बात अलग है कि समय को बोने के लिए न मिट्टी-पानी की आवश्यकता होती है, न खाद की. फिर भी समय को बोया जा सकता है.
हम सभी यह भलीभाँति जानते हैं कि किसी के पास चौबीस घंटे से ज्यादा समय नहीं है. चाहे वह कितना भी अमीर क्यों न हो, या फिर ंगरीब. सभी के हिस्से में केवल चौबीस घंटे का ही गणित आता है. जो समय की कीमत पहचानते हैं, वे एक-एक क्षण का सदुपयोग करते हैं, अर्थात समय भी खर्च करते हैं, तो सावधानी से. समय को सावधानी से खर्च करने की यही आदत जब लगती है, तो समझो समय बोने के लिए आपको बीज मिल गया.
इंसान जब धन खर्च करता है, तो एक-एक पैसे का हिसाब रखना चाहता है. बही-खाता मनुष्य की इसी प्रवृ?ाि की देन है. पर क्या कभी आपने समय का हिसाब लगाया है? नहीं ना! यह सच है कि समय खर्च करने के लिए ही होता है. यह अचल संप?ाि नहीं है, जिसे बचाकर रख दिया जाए तो समझो वह सुरक्षित है. संप?ाि भले ही सभी को बराबर न मिले, पर समय सबको बराबर मिलता है. इसे खर्च करना सबकी मंजबूरी है. इंसान लक्ष्मी याने धन को रोकने के सारे उपाय करता है, पर समय को रोक नहीं पाता. इसे खर्च तो करना ही है, पर कैसे? आज का दिन बीता हुआ कल बन जाए इसके पहले इसे खर्च करने में कंजूसी बरतें तो बेहतर होगा.
जो बात धन के साथ लागू होती है, वही समय के साथ भी. समय को व्यर्थ गवाँ देने वाले पछताते हैं. समय को कंजूसी के साथ खर्च करने वाले लोग जीवन में जो कुछ भी प्राप्त करना चाहते हैं, उसे प्राप्त कर ही लेते हैं, किंतु जो समय को बोते हैं, उन्हें कभी भी किसी बात का अफसोस नहीं होता. समय को बोने वाले किसी से शिकायत भी नहीं करते. उनका जीवन अधिक से अधिक उन्नतशील होता जाता है. ऐसे लोगों को ही सच्चा संतोष प्राप्त होता है. धन की अपेक्षा समय का मोल अधिक है. क्योंकि जो धन आज खर्च किया, उसे पुन: प्राप्त भी किया जा सकता है, पर जो समय आपने आज खर्च किया, उसे जीवन में कभी भी पुन: प्राप्त नहीं किया जा सकता.
इसे ही जार्ज बर्नाड शॉ ने लाक्षणिक भाषा में कुछ इस तरह व्यक्त किया है- यौवन अपरिपक्व मनुष्य के ऊपर इस तरह बैठ जाता है कि उसकी मति भ्रमित कर देता है. मनुष्य जब जवान होता है तब उसकी समझ का कैनवास छोटा होता है. समय को किस तरह खर्च किया जाए, उसे इसकी समझ नहीं होती. किंतु जब उसमें यह समझ आती है, तब तक समय चला गया होता है. किसी ने समय की तस्वीर देखी है भला. मेरे बच्चे की पाठय पुस्तक में एक पाठ था, जिसका शीर्षक समय था. उसमें समय की तस्वीर भी थी, तस्वीर में एक बच्चा था, जिसका चेहरा बालों से ढँका था और पीछे की तरफ पंख थे. इसका अर्थ यह हुआ कि समय को कोई आगे से देख नहीं पाता, वह पीछे से पंख लगाकर उड़ जाता है. अर्थात् जब तक हम उसे समझने की कोशिश करते हैं, तब तक समय चला गया होता है. ऐसा न हो, इसका कोई उपाय है? उपाय तो एक ही है. आज और अभी हमारे पास जो समय है, उसे इस ढंग से खर्च करें कि उसे खर्च करने का हमें ंजरा-सा भी अफसोस न हो. इसे इस तरह बोयें कि भविष्य में जिस तरह से वृक्ष पर फल आते रहते हैं, उसी तरह उस समय किया गया खर्च हमें सुखद परिणाम सुस्वादु फल के रूप में मिलते रहें. समय को तो खर्च होना ही है, तो क्यों न हम इसे हमारी इच्छा के मुताबिक खर्च करें.
विचारक मुलिगन ने कहा है कि आज के दिन मैं जो कुछ कर रहा हूँ, वह मेरे लिए अत्यावश्यक है, क्योंकि उसके बदले में मैं अपने जीवन का एक दिन खर्च कर रहा हूँ. यह विचार हमें कब आता है, कभी ध्यान दिया आपने? धन खर्च करके कोई वस्तु आपने खरीदी, पर वह अच्छी नहीं निकली. आप कहेंगे कि मेरा धन व्यर्थ हो गया. पर कभी जीवन का एक पूरा दिन बेकार में खर्च हो गया और हाथ में कुछ नहीं आया, तो इसका खयाल कभी आपने किया?
जीवन का एक मूल्यवान दिवस बीत गया, पर कैसे बीता? बेकार की बातें करते हुए, गप्पबाजी करते हुए, परंनिंदा करते हुए, षडयंत्र रचते हुए, तोड़फोड़ या फिर आलस करते हुए, सोकर बीताते हुए, क्या मिला इससे आपको? शायद थोड़ी-सी शांति, थोड़ी राहत, बैर का ंजहर या किसी की हाय. इन उपल?धियों से आखिर हमारा फायदा क्या हुआ? एक मूल्यवान दिवस के बदले में ये कचरा! इसे ख्ररीदकर आपने अपना ही बोझ बढ़ाया है. यही बोझ भविष्य में हमें कुचलते हुए आगे ही बढ़ जाएगा.
सूर्योदय हुूआ है तो सूर्यास्त होगा ही. इसी कीमती दिन को हम मित्रों का भला करने में, स्नेहीजनों के कामकाज में हाथ बँटाने में, किसी के लिए अच्छे श?दों का प्रयोग करने में, किसी को सांत्वना देने में, किसी को निराशा से बचाने में, अच्छी किताब पढ़ने में, ज्ञान इकट्ठा करने में, संगीत सुनने में भी बिता सकते हैं. किसी को हमने धन दिया, जिसे उसने वापस नहीं किया, यह हमें हमेशा याद रहता है, पर ढेर सारे काम होते हुए भी कोई आपसे मिलने आया और आपका समय ले गया, यह आपको याद नहीं रहता. जिसने आपसे समय माँगा, उसे आप यह कह सकते हैं कि मेरे पास इतना समय नहीं है कि आपको अपना समय दे सकूँ, इसलिए मुझे क्षमा करें. यह कहने का साहस आपको रखना होगा. क्योंकि जीवन में हमें जो भी उपल?धि प्राप्त होगी वह इसी समय को खर्च करने के बदले में मिलेगी. यही विचार है, जो समय को बोने का काम करते हैं. तो आओ चलें, समय को बोने का आवश्यक काम पूर्ण करें.
डा. महेश परिमल
मंगलवार, 30 अक्तूबर 2007
आओ समय को बोना सीखें
लेबल:
ललित निबंध
जीवन यात्रा जून 1957 से. भोपाल में रहने वाला, छत्तीसगढ़िया गुजराती. हिन्दी में एमए और भाषा विज्ञान में पीएच.डी. 1980 से पत्रकारिता और साहित्य से जुड़ाव. अब तक देश भर के समाचार पत्रों में करीब 2000 समसामयिक आलेखों व ललित निबंधों का प्रकाशन. आकाशवाणी से 50 फ़ीचर का प्रसारण जिसमें कुछ पुरस्कृत भी. शालेय और विश्वविद्यालय स्तर पर लेखन और अध्यापन. धारावाहिक ‘चाचा चौधरी’ के लिए अंशकालीन पटकथा लेखन. हिन्दी गुजराती के अलावा छत्तीसगढ़ी, उड़िया, बँगला और पंजाबी भाषा का ज्ञान. संप्रति स्वतंत्र पत्रकार।
संपर्क:
डॉ. महेश परिमल, टी-3, 204 सागर लेक व्यू होम्स, वृंदावन नगर, अयोघ्या बायपास, भोपाल. 462022.
ईमेल -
parimalmahesh@gmail.com
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