डा. महेश परिमल
ये प्रतिस्पर्धा का युग है. यहाँ हर पल जहाँ हैं, उससे आगे बढने की कवायद की जा रही है. हर कोई यही सोच रहा है कि किस तरह आगे बढ़ा जाए. हममें से न जाने कितने लोग ऐसे हैं, जो प्रतिभा सम्पन्न होने के बाद भी जहाँ हैं, वहाँ से एक इंच भी आगे नहीं बढ़ पाए हैं. पर कुछ ऐसे भी हैं, जिनमें प्रतिभा न होते हुए भी अपनी वाक् पटुता के कारण बहुत आगे हैं. कभी सोचा आपने कि ऐसे कैसे हो गया? आपको शायद समझ में न आए, पर यह सच है कि आज ऐसे व्यक्तियों की खोज लगातार जारी है, जो कंपनी को आगे बढ़ाने में अपना योगदान दें. इसके लिए विभिन्न कंपनियों की जासूसी निगाहें प्रतिभावान लोगों पर टिकी हैं. इसलिए जो प्रतिभावान हैं, वे कदापि निराश न हों, क्योंकि अब समय आ गया है कि उनकी प्रतिभा की कद्र होगी और वे भी आगे बढ़ने में सक्षम होंगे.
इन दिनों आधुनिक मैनेजमेंट की बड़ी चर्चा है. ये क्या होता है, आप जानते हैं? शायद नहीं. आइए आपको बताएँ कि ये क्या होता है. आधुनिक मैनेजमेंट याने ऐसे कर्मठ लोगों का समूह, जो निष्ठावान होकर कंपनी को आगे बढ़ाने में अपना अमूल्य योगदान दे. अब ऐसा समूह तैयार कैसे हो? तो ऐसे लोगों को खोज-खोजकर इकट्ठा किया जाता है, जो प्रतिभावान हैं, लेकिन उनकी प्रतिभा का सही मूल्यांकन नहीं हो रहा है. वे छटपटा रहे हैं अपनी प्रतिभा दिखाने के लिए. या फिर वे अपनी प्रतिभा का पूरा इस्तेमाल कर तो रहे हैं, लेकिन उसका पूरा प्रतिफल उन्हें नहीं मिल पा रहा है. सारा लाभ कंपनी को हो रहा है. ऐसे लोगों को इकट्ठा कर उनसे काम लेना ही आधुनिक मैनेजमेंट है. तो ऐसे प्रतिभावान लोगों के निराश होने के दिन लद गए, अब तो वे विभिन्न कंपनियों की जासूसी और खोजी निगाहों से बच नहीं सकते. उनकी प्रतिभा निश्चित ही रंग लाएगी.
उद्योग जगत में आजकल एक लतीफा विशेष रूप से प्रचलित है, जिसमें यह कहा जाता है कि यदि आपको रिलायंस में अच्छे पद पर नौकरी चाहिए, तो मुकेश या अनिल अंबानी के मित्रों का मित्र बनना होगा. इस पर यदि गहराई से विचार करें, तो यह केवल लतीफा ही नहीं, बल्कि एक सच्चाई है. आशय यह है कि अंबानी बंधुओं का एक विशाल मित्र समुदाय है. ये लोग लगातार अपने विविध क्षेत्रों के मित्रगणों से विभिन्न तरह की सलाह लेते रहते हैं. कई मामलों में उनसे मशविरा भी लेते हैं. इससे यह बात विशेष रूप से उभरकर आती है कि किस क्षेत्र में कौन व्यक्ति अधिक प्रतिभावान है. उसके बाद मशक्कत शुरू होती है, उस व्यक्ति को अपनी कंपनी से जोड़ने की. आपने साथियों को यह कह दिया जाता है कि उसकी चाहे जो भी कीमत हो, उसे हमारी कंपनी में होना चाहिए. इस तरह से शुरू होता है, प्रतिभा के सही मूल्यांकन का सिलसिला. आजकल रिलायंस और हिंदुस्तान लीवर का नाम इस क्षेत्र में विशेष रूप से लिया जा रहा है. यह कंपनियाँ अपनी कर्मचारी की क्षमता के विषय में अधिक चिंतित रहती है, क्योंकि ये जानती हैं कि इनकी क्षमता पर ही कंपनी की प्रगति टिकी हुई है. अतएव क्षमतावान व्यक्ति ही इस कंपनी को संभाल सकते हैं.
रिलायंस कंपनी का मापदंड व्यक्ति की दूरदर्श्ािता और जोखिम उठाने की उसकी दृढ़ इच्छा शक्ति है. ऐसे व्यक्ति किसी भी क्षेत्र में हों, उसे किसी भी हालत में अपने स्टॉफ में लेकर ही दम लेती है. दोनों ही कंपनियों की कार्यपद्यति अलग-अलग है. जहाँ एक ओर रिलायंस साहसिकता पर जोर देती है, वहीं हिंदुस्तान लीवर व्यावसायिकता पर. हिंदुस्तान लीवर भी प्रतिभावान कर्मचारियों को अपने यहाँ लाने में किसी भी हद तक जा सकती है, किंतु केवल शुरुआत में ही. क्योंकि वह उस कर्मचारी को अपने यहाँ लाकर ही संतुष्ट नहीं हो जाती, बल्कि उसे अपने यहाँ लंबे समय तक सेवाएँ लेने के लिए प्रशिक्षित करती है. ताकि उसकी प्रतिभा को और अधिक तराशा जा सके.
दुनिया में जिस कंपनी ने आधुनिक मैनेजमेंट की यह पद्यति अपनाई, उसे निश्चित रूप से सफलता मिली और उसने प्रगति के कई सोपान तय किए. ऐसा नहीं है कि इसका लाभ केवल कंपनी को ही मिला, बल्कि कर्मचारी वर्ग भी इस सफलता से अछूता नहीं रहा. यह वर्ग भी इतना बलशाली हो गया कि कंपनी कंपनी के शेयर लेने में भी पीछे नहीं रहा. आज सफलता का यही मूलमंत्र है. अच्छी कंपनी को अच्छे व्यक्ति चाहिए और निश्चित रूप से अच्छे व्यक्ति को अच्छी कंपनी की ही चाहत होती है. अब वह जमाना गया जब कोई व्यक्ति पीढ़ी दर पीढ़ी एक ही कंपनी से जुड़ा रहता था. अब तो घाट-घाट का पानी पीने वाला व्यक्ति अनुभवी माना जाता है.
प्रतिभावान व्यक्ति उस सूरज के समान है, जिसे हर हालत में अपनी रोशनी बिखेरनी ही है. उसे नौकरी खो जाने का दु:ख नहीं होता. वह निश्चिंत हो कर अपना काम करता रहता है. उसके लिए हर काम एक चुनौती है और हर रास्ता एक चौराहा है. प्रतिभा कहाँ खींच ले जाए, इसका उसे भी भान नहीं होता. ऐसे लोग तभी आगे बढ़ पाते हैं, जब उन्हें उनकी दृढ़ इच्छा शक्ति आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करती हो.
सवाल यह है कि आखिर ऐसी प्रतिभा आती कहाँ से है? और उसका विकास कैसे होता है? तो यह प्रतिभा शुरूआत में एक सद्गुण के रूप में व्यक्ति में मौंजूद रहती है, जो धीरे-धीरे पुष्पित और पल्लवित होती है. जो व्यक्ति छोटी-छोटी भूलों की ओर ध्यान दे कर उसे न दोहराने का संकल्प लेता है, वह प्रगति के पथ पर सबसे तेज कदमों से आगे बढ़ता है. केवल अपनी ही नहीं, बल्कि दूसरों की भूलों से भी सीखने वाला व्यक्ति और महान होता है. ऐसे लोगों के पास अनुभव का ंखजाना भरा होता है. ऐसे लोगों के पास केवल एक ही कमी होती है, वह है- खुद को प्रकाशित न कर पाना. अर्थात अपनी मार्केटिंग न कर पाना. ऐसे लोगों के जीवन में हताशा का दौर काफी लम्बा होता है. लेकिन पारखी निगाहें उन्हें ढूंढ ही लेती है.
हीरे का ही उदाहरण लें. जमीन के भीतर न जाने कितनी गहराई में कितने दबाव में वह पड़ा होता है. वर्षों तक उसी स्थिति में रहता है. एक घनघोर लम्बी प्रतीक्षा के बाद वह स्थिति आती है, जब उसकी पहचान होती है, उसका वजन होता है, उसका मूल्यांकन होता है, फिर शुरू होता है उसे तराशने का काम. यह काम इंसान के हाथों होता है और हीरा निखर उठता है. संघर्ष का एक लंबा दौर, जिसे गुमनामी का दौर भी कहा जा सकता है, हर किसी के जीवन में आता ही है, पर इस जीवन से न घबराकर यदि पूरे संयम के साथ अपने भीतर ऊर्जा समेट ली जाए, तो समय आने पर वही ऊर्जा काम आती है. धैर्य की कोई उम्र नहीं होती. यदि आपने यह तय कर ही लिया है कि पानी को काटना ही है, उसके बर्फ बनने तक तो प्रतीक्षा करनी ही होगी. हीरे को तो निकलना ही है, ठीक प्रतिभा की तरह. आज भले ही उसका न हो, पर कल निश्चित रूप से उसका होता है.
तो एक बार फिर उन साथियों को एक संदेश यही है कि प्रतिभा है तो निराश न हों. इसे तो उभरना ही है, पर थोड़े धैर्य के साथ उन क्षणों की प्रतीक्षा करें. क्योंकि खोजी निगाहों से वे बच नहीं सकते. अपने पर विश्वास रखें और पूरी ईमानदारी से अपना काम करते रहें, बस एक क्षण होगा और आप अपने को बहुत ही अच्छी स्थिति में पाएँगे.
डा. महेश परिमल