डॉ. महेश परिमल
रसखान ने इस पंक्ति के माध्यम से कागा को श्रेष्ठ पक्षी की उपमा दी है. लेकिन आज का मनुष्य जीव कितना स्वार्थी है, श्राध्द पक्ष में कौवों को ढँढ-ढूँढ कर खीर-पुड़ी खिलाने की चाहत रखने वाला यही मानव बाकी समय यदि अपने आसपास किसी कौवे को देख भी लेता है, तो उसे तुरंत भगाने से नहीं चूकता. इसे अपशकुनी माना जाता है. पर इसकी विशेषता से शायद हम अभी तक अनभिज्ञ हैं. आज भी यदि हमारी मुँडेर पर कौवा यदि काँव-काँव करे, तो घर के बड़े बुजुर्ग यही कहते हैं कि आज घर पर कोई चिट्ठी या मेहमान की आमद होने वाली है. आज ई-मेल के जमाने में यह बात हमें भेले ही नागवार गुजरती हो, पर यह सच है कि आगत परिस्थितियों को पहचानने में कौवे में अद्भुत क्षमता होती है. हमारे समाज के लिए यह कतई अपशकुनी नही है, अपशकुनी तो हम हैं कि इन्हें वर्ष में मात्र कुछ ही दिन याद करते हैं. बाकी दिनों में इसे भुला दिया जाता है. इसे यदि हम पर्यावरण के रक्षक के रूप में देखें, तो हम पाएँगे कि यह मानव जाति का सच्चा सेवक है.ं
एक समय था जब कौवे सभी जगह आसानी से दिखाई दे जाते थे, किंतु आज स्थिति यह है कि ये कौए बड़ी मुश्किल से कभी-कभी ही दिखाई देते हैं. इनकी तेजी से घटती संख्या के कारण ही आज इनकी गणना एक दुर्लभ पक्षी के रूप में की जा रही है. इसे प्रकृति की मार कहें या पर्यावरण में आया बदलाव कि आज कौए की आधी से अधिक प्रजातियाँ विलुप्त हो चुकी हैं. शेष बची प्रजातियों में से करीब 10 से 20 प्रतिशत कौए जंगलों में जाकर बस गए हैं. आज शहरी वातावरण में कौए बहुत कम पाए जाते हैं. ऊँची-ऊँची इमारतों की छत पर लगे टी.वी. एंटीना के कोने पर अब कौवे नहीं बैठते. उनकी काँव-काँव का शोर अब कानों को नहीं बेधता.
कौओं की लगातार कम होती संख्या के पीछे हमारी उपेक्षा ही जवाबदार है. हमने कभी कौओं के प्रति अपनी प्रीती दिखाई ही नहीं. कौओं के मामले में हमने यह बात सिध्द कर दी कि मानव स्वभाव स्वार्थी होता है. श्राध्द पक्ष के दिनों में जब हमें पितृओं की याद आती है, तो कौओं के माध्यम से हम अपनी श्रध्दा उन तक पहुँचाते हैं. बस तभी कागवास हेतु हमें कौए याद आते हैं, वरना तो कौए को देखते ही हम हाथों में लकड़ी लिए उसे उड़ाने का ही प्रयास करते हैं.
कौआ एक घरेलू पक्षी है, उसके बाद भी हम हमेशा उसकी उपेक्षा ही करते हैं. किंतु हकीकत यह है कि यह काली चमड़ी का कर्कश आवाज वाला कुरूप पक्षी चिड़िया से भी अधिक मिलनसार है. बार-बार यह हमारे ऑंगन में या छत पर बैठ कर काँव-काँव की आवाज के साथ अपने होने का परिचय देता है. न केवल परिचय देता है बल्कि हमारे द्वारा दुत्कारे जाने पर भी फिर से वह आता है और हमारी तरफ मित्रता का हाथ बढ़ाता है. इसे इसकी मिलनसारिता न कहें तो क्या कहे? ऑंगन में फुदकती चिड़िया तो दाना चुगकर अपने घोंसले में चली जाती है, पर यह पक्षी छोटे-मोटे कीड़े-मकोड़ों को अपना भोजन बना कर घर के आसपास की गंदगी को भी साफ करते हैं और हमें कई संक्रामक रोगों से भी बचाते हैं.
हमारे देश में यह मान्यता है कि कौए में कई विशेषताएँ हैं, जिस पर हमने ध्यान नहीं दिया, पर यह सच है कि कौए को यह आभास हो जाता है कि लोक और परलोक में क्या होने वाला है. इन कौवों की अपनी भाषा होती है. काग विज्ञान के प्राचीन लेखकों ने काग भाषा की 32 पध्दतियों का वर्णन किया है. शकुन-अपशकुन पर कौवे का बहुत महत्व है. कहा जाता है कि यदि कौवा दाहिनी तरफ से घूमते हुए चक्कर लगाए, तो इसे शुभ माना जाता है. यदि उसे किसी डाली या पत्थर पर सर रगड़ते हुए देखा जाए, तो इसे भी शुभ माना जाता है. कौवा यदि माथे पर या घोड़े पर बैठा दिखाई दे, तो तुरंत वाहन मिलने की संभावना रहती है. मंदिर के शिखर पर या अनाज के ढेर पर बैठा कौवा भी शुभ का संकेत देता है. युध्द में जाते हुए सैनिक को यदि सामने से आते हुए कौए दिखाई दें, तो यह समझा जाता है कि युध्द में उसे पराजय का सामना करना पड़ेगा. यदि घर के आसपास दिन भर कौवे की काँव-काँव सुनाई दे, तो समझो कोई विपत्ति आने वाली है. यदि कौवा बीट कर दे, तो बीमार पड़ने या मुसीबत में फँसने की संभावना हो सकती है.
पाश्चात्य देशों में यह मान्यता है कि यदि कौवा अकेले दिखाई दे, तो वह अशुभ है और यदि समूह में कौवे किसी एक व्यक्ति के आसपास उड़ते दिखाई दे, तो समझो उसका अंत समय निकट है. यदि कौवे सामूहिक रूप से जंगल से पलायन कर जाएँ, तो समझो अकाल की विभीषिका या कोई प्राकृतिक आपदा होने वाली है. भारतीय साहित्य मेें कहीं-कहीं कौवे के महत्व को दर्शाया गया है. तुलसी दास ने रामचरित मानस में श्री राम जी की बरात निकली, उस समय होने वाले शकुन का वर्णन करते हुए लिखा है-
दाहिन काग सुखेत सुहावा
राम चरित मानस के अनुसार राम की माता कौशल्या ने राम वन से सकुशल वापस आएँ, इसके लिए कौवे के मुँह में घी-शक्कर डालने की और कौवे की चोंच पर सोना चढ़ाने की इच्छा व्यक्त की थी.
कौवे को पक्षी जगत का सबसे चालाक पक्षी माना जाता है. इसे आसानी से नहीं पकड़ा जा सकता. ये दिन में हमें भले ही यदा-कदा दिखाई दे जाएँ, पर रात होते ही ये जंगल या उपवन में पेड़ पर अपना बसेरा कर लेते हैं. आजकल सिमटते जंगलों के कारण इनकी संख्या में लगातार कमी हो रही है.
डॉ. महेश परिमल
रसखान ने इस पंक्ति के माध्यम से कागा को श्रेष्ठ पक्षी की उपमा दी है. लेकिन आज का मनुष्य जीव कितना स्वार्थी है, श्राध्द पक्ष में कौवों को ढँढ-ढूँढ कर खीर-पुड़ी खिलाने की चाहत रखने वाला यही मानव बाकी समय यदि अपने आसपास किसी कौवे को देख भी लेता है, तो उसे तुरंत भगाने से नहीं चूकता. इसे अपशकुनी माना जाता है. पर इसकी विशेषता से शायद हम अभी तक अनभिज्ञ हैं. आज भी यदि हमारी मुँडेर पर कौवा यदि काँव-काँव करे, तो घर के बड़े बुजुर्ग यही कहते हैं कि आज घर पर कोई चिट्ठी या मेहमान की आमद होने वाली है. आज ई-मेल के जमाने में यह बात हमें भेले ही नागवार गुजरती हो, पर यह सच है कि आगत परिस्थितियों को पहचानने में कौवे में अद्भुत क्षमता होती है. हमारे समाज के लिए यह कतई अपशकुनी नही है, अपशकुनी तो हम हैं कि इन्हें वर्ष में मात्र कुछ ही दिन याद करते हैं. बाकी दिनों में इसे भुला दिया जाता है. इसे यदि हम पर्यावरण के रक्षक के रूप में देखें, तो हम पाएँगे कि यह मानव जाति का सच्चा सेवक है.ं
एक समय था जब कौवे सभी जगह आसानी से दिखाई दे जाते थे, किंतु आज स्थिति यह है कि ये कौए बड़ी मुश्किल से कभी-कभी ही दिखाई देते हैं. इनकी तेजी से घटती संख्या के कारण ही आज इनकी गणना एक दुर्लभ पक्षी के रूप में की जा रही है. इसे प्रकृति की मार कहें या पर्यावरण में आया बदलाव कि आज कौए की आधी से अधिक प्रजातियाँ विलुप्त हो चुकी हैं. शेष बची प्रजातियों में से करीब 10 से 20 प्रतिशत कौए जंगलों में जाकर बस गए हैं. आज शहरी वातावरण में कौए बहुत कम पाए जाते हैं. ऊँची-ऊँची इमारतों की छत पर लगे टी.वी. एंटीना के कोने पर अब कौवे नहीं बैठते. उनकी काँव-काँव का शोर अब कानों को नहीं बेधता.
कौओं की लगातार कम होती संख्या के पीछे हमारी उपेक्षा ही जवाबदार है. हमने कभी कौओं के प्रति अपनी प्रीती दिखाई ही नहीं. कौओं के मामले में हमने यह बात सिध्द कर दी कि मानव स्वभाव स्वार्थी होता है. श्राध्द पक्ष के दिनों में जब हमें पितृओं की याद आती है, तो कौओं के माध्यम से हम अपनी श्रध्दा उन तक पहुँचाते हैं. बस तभी कागवास हेतु हमें कौए याद आते हैं, वरना तो कौए को देखते ही हम हाथों में लकड़ी लिए उसे उड़ाने का ही प्रयास करते हैं.
कौआ एक घरेलू पक्षी है, उसके बाद भी हम हमेशा उसकी उपेक्षा ही करते हैं. किंतु हकीकत यह है कि यह काली चमड़ी का कर्कश आवाज वाला कुरूप पक्षी चिड़िया से भी अधिक मिलनसार है. बार-बार यह हमारे ऑंगन में या छत पर बैठ कर काँव-काँव की आवाज के साथ अपने होने का परिचय देता है. न केवल परिचय देता है बल्कि हमारे द्वारा दुत्कारे जाने पर भी फिर से वह आता है और हमारी तरफ मित्रता का हाथ बढ़ाता है. इसे इसकी मिलनसारिता न कहें तो क्या कहे? ऑंगन में फुदकती चिड़िया तो दाना चुगकर अपने घोंसले में चली जाती है, पर यह पक्षी छोटे-मोटे कीड़े-मकोड़ों को अपना भोजन बना कर घर के आसपास की गंदगी को भी साफ करते हैं और हमें कई संक्रामक रोगों से भी बचाते हैं.
हमारे देश में यह मान्यता है कि कौए में कई विशेषताएँ हैं, जिस पर हमने ध्यान नहीं दिया, पर यह सच है कि कौए को यह आभास हो जाता है कि लोक और परलोक में क्या होने वाला है. इन कौवों की अपनी भाषा होती है. काग विज्ञान के प्राचीन लेखकों ने काग भाषा की 32 पध्दतियों का वर्णन किया है. शकुन-अपशकुन पर कौवे का बहुत महत्व है. कहा जाता है कि यदि कौवा दाहिनी तरफ से घूमते हुए चक्कर लगाए, तो इसे शुभ माना जाता है. यदि उसे किसी डाली या पत्थर पर सर रगड़ते हुए देखा जाए, तो इसे भी शुभ माना जाता है. कौवा यदि माथे पर या घोड़े पर बैठा दिखाई दे, तो तुरंत वाहन मिलने की संभावना रहती है. मंदिर के शिखर पर या अनाज के ढेर पर बैठा कौवा भी शुभ का संकेत देता है. युध्द में जाते हुए सैनिक को यदि सामने से आते हुए कौए दिखाई दें, तो यह समझा जाता है कि युध्द में उसे पराजय का सामना करना पड़ेगा. यदि घर के आसपास दिन भर कौवे की काँव-काँव सुनाई दे, तो समझो कोई विपत्ति आने वाली है. यदि कौवा बीट कर दे, तो बीमार पड़ने या मुसीबत में फँसने की संभावना हो सकती है.
पाश्चात्य देशों में यह मान्यता है कि यदि कौवा अकेले दिखाई दे, तो वह अशुभ है और यदि समूह में कौवे किसी एक व्यक्ति के आसपास उड़ते दिखाई दे, तो समझो उसका अंत समय निकट है. यदि कौवे सामूहिक रूप से जंगल से पलायन कर जाएँ, तो समझो अकाल की विभीषिका या कोई प्राकृतिक आपदा होने वाली है. भारतीय साहित्य मेें कहीं-कहीं कौवे के महत्व को दर्शाया गया है. तुलसी दास ने रामचरित मानस में श्री राम जी की बरात निकली, उस समय होने वाले शकुन का वर्णन करते हुए लिखा है-
दाहिन काग सुखेत सुहावा
राम चरित मानस के अनुसार राम की माता कौशल्या ने राम वन से सकुशल वापस आएँ, इसके लिए कौवे के मुँह में घी-शक्कर डालने की और कौवे की चोंच पर सोना चढ़ाने की इच्छा व्यक्त की थी.
कौवे को पक्षी जगत का सबसे चालाक पक्षी माना जाता है. इसे आसानी से नहीं पकड़ा जा सकता. ये दिन में हमें भले ही यदा-कदा दिखाई दे जाएँ, पर रात होते ही ये जंगल या उपवन में पेड़ पर अपना बसेरा कर लेते हैं. आजकल सिमटते जंगलों के कारण इनकी संख्या में लगातार कमी हो रही है.
डॉ. महेश परिमल