बुधवार, 8 जून 2016
बाल कहानी - तीन सहेलियाँ - राहुल श्रीवास्तव
कहानी का अंश….
मिस्टर अलबर्ट मतारा को पसंद नहीं करते थे। उनकी पत्नी सारा भी उनके तरह के ही खयालों की महिला थी। उन दोनों के अलावा घर में दो गोरे-गोरे सुंदर बच्चे जूली और जेंटल थे, वे भी मतारा को पसंद नहीं करते थे। वे सभी मतारा को ऐसे देख रहे थे, जैसे उनके घर में कोई चुडैल आ गई हो।
मिस्टर अलबर्ट के मकान में एक बहुत बड़ा कमरा था। प्राय: वह खाली रहता था। कुछ समय पहले उसमें मिस्टर उरग्वे अपने परिवार के साथ रहते थे। उनके जाने के बाद से वह कमरा खाली ही था। मिस्टर अलबर्ट ने मतारा को उस कमरे में बंद कर दिया। मतारा को उनका यह व्यवहार समझ में नहीं आया। इतने बड़े कमरे में खुद को अकेला पाकर वह डरने लगी। उसने अलबर्ट दंपति से कहा भी कि मुझे यहाँ अकेला मत छोड़िए, लेकिन वे बोले - जब भूख लगे तो कमरे का दरवाजा थपथपा देना। हम खाना दे जाएँगे। मतारा उस कमरे में अकेले डरने लगी। मौसम भी ठंडा था। उसने पलंग में बिछी हुई चादर ओढ़ने के लिए उठाई तो उस पर रखी हुई तीन गुडिया गिर पड़ी। अचानक मतारा को लगा कि वे उससे बात कर रही हैं और उससे रोने का कारण पूछ रही है। देखा तो वहाँ उसकी ही उम्र की तीन लड़कियाँ खड़ी थी। कौन थी वो लड़कियाँ और वे मतारा से क्या बात करने लगी? उन्होंने मतारा का डर दूर किया या नहीं? वे कहाँ से आई थी? ये सारी बातें जानने के लिए ऑडियो की मदद लीजिए…
लेबल:
दिव्य दृष्टि,
बाल कहानी
जीवन यात्रा जून 1957 से. भोपाल में रहने वाला, छत्तीसगढ़िया गुजराती. हिन्दी में एमए और भाषा विज्ञान में पीएच.डी. 1980 से पत्रकारिता और साहित्य से जुड़ाव. अब तक देश भर के समाचार पत्रों में करीब 2000 समसामयिक आलेखों व ललित निबंधों का प्रकाशन. आकाशवाणी से 50 फ़ीचर का प्रसारण जिसमें कुछ पुरस्कृत भी. शालेय और विश्वविद्यालय स्तर पर लेखन और अध्यापन. धारावाहिक ‘चाचा चौधरी’ के लिए अंशकालीन पटकथा लेखन. हिन्दी गुजराती के अलावा छत्तीसगढ़ी, उड़िया, बँगला और पंजाबी भाषा का ज्ञान. संप्रति स्वतंत्र पत्रकार।
संपर्क:
डॉ. महेश परिमल, टी-3, 204 सागर लेक व्यू होम्स, वृंदावन नगर, अयोघ्या बायपास, भोपाल. 462022.
ईमेल -
parimalmahesh@gmail.com
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