बुधवार, 8 जून 2016

पंचतंत्र की कहानियाँ - 18 - बंदर का कलेजा

कहानी का अंश... एक नदी किनारे हरा-भरा विशाल पेड था। उस पर खूब स्वादिष्ट फल उगे रहते। उसी पेड पर एक बंदर रहता था। बडा मस्त कलंदर। जी भरकर फल खाता, डालियों पर झूलता और कूदता-फाँदता रहता। उस बंदर के जीवन में एक ही कमी थी कि उसका अपना कोई नहीं था। माँ-बाप के बारे में उसे कुछ याद नहीं था न उसके कोई भाई था और न कोई बहन, जिनके साथ वह खेलता। उस क्षेत्र में कोई और बंदर भी नहीं था जिससे वह दोस्ती कर पाता। एक दिन वह एक डाल पर बैठा नदी का नज़ारा देख रहा था कि उसे एक लंबा विशाल जीव उसी पेड की ओर तैरकर आता नजर आया। बंदर ने ऐसा जीव पहले कभी नहीं देखा था। उसने उस विचित्र जीव से पूछा 'अरे भाई, तुम क्या चीज़ हो?' विशाल जीव ने उत्तर दिया 'मैं एक मगरमच्छ हूँ। नदी में इस वर्ष मछलियों का अकाल पड गया है। बस, भोजन की तलाश में घूमता-घूमता इधर आ निकला हूँ।' बंदर दिल का अच्छा था। उसने सोचा कि पेड पर इतने फल हैं, इस बेचारे को भी उनका स्वाद चखना चाहिए। उसने एक फल तोडकर मगर की ओर फेंका। मगर ने फल खाया बहुत रसीला और स्वादिष्ट वह फटाफट फल खा गया और आशा से फिर बंदर की ओर देखने लगा। बंदर ने मुस्कराकर और फल फेंके। मगर सारे फल खा गया और अंत में उसने संतोष-भरी डकार ली और पेट थपथपाकर बोला 'धन्यवाद, बंदर भाई। खूब छक गया, अब चलता हूँ।' बंदर ने उसे दूसरे दिन भी आने का न्यौता दे दिया। मगर दूसरे दिन आया। बंदर ने उसे फिर फल खिलाए। इसी प्रकार बंदर और मगर में दोस्ती जमने लगी। मगर रोज आता दोनों फल खाते-खिलाते, गपशप मारते। बंदर तो वैसे भी अकेला रहता था। उसे मगर से दोस्ती करके बहुत प्रसन्नता हुई। उसका अकेलापन दूर हुआ। एक साथी मिला। दो मिलकर मौज-मस्ती करें तो दुगना आनन्द आता है। एक दिन बातों-बातों में पता लगा कि मगर का घर नदी के दूसरे तट पर है, जहाँ उसकी पत्नी भी रहती है। यह जानते ही बंदर ने उलाहन दिया 'मगर भाई, तुमने इतने दिन मुझे भाभीजी के बारे में नहीं बताया मैं अपनी भाभीजी के लिए रसीले फल देता। तुम भी अजीब निकट्टू हो अपना पेट भरते रहे और मेरी भाभी के लिए कभी फल लेकर नहीं गए। उस शाम बंदर ने मगर को जाते समय ढेर सारे फल चुन-चुनकर दिए। अपने घर पहुँचकर मगरमच्छ ने वह फल अपनी पत्नी मगरमच्छनी को दिए। मगरमच्छनी ने वह स्वाद भरे फल खाए और बहुत संतुष्ट हुई। मगर ने उसे अपने मित्र के बारे में बताया। पत्नी को विश्वास न हुआ। वह बोली 'जाओ, मुझे बना रहे हो। बंदर की कभी किसी मगर से दोस्ती हुई हैं?' आगे की कहानी जानने के लिए ऑडियो की मदद लीजिए...

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