गुरुवार, 16 जून 2016
पिता के पत्र पुत्री के नाम - 27
आर्यों का हिंदुस्तान में आना...
लेख के बारे में... अब तक हमने बहुत ही पुराने जमाने का हाल लिखा है। अब हम यह देखना चाहते हैं कि आदमी ने कैसे तरक्की की और क्या-क्या काम किए। उस पुराने जमाने को इतिहास के पहले का जमाना कहते हैं, क्योंकि उस जमाने का हमारे पास कोई सच्चा इतिहास नहीं है। हमें बहुत कुछ अंदाज से काम लेना पड़ता है। अब हम इतिहास के शुरू में पहुँच गए हैं।
पहले हम यह देखेंगे कि हिंदुस्तान में कौन-कौन-सी बातें हुईं। हम पहले ही देख चुके हैं कि बहुत पुराने जमाने में मिस्र की तरह हिंदुस्तान में भी सभ्यता फैली हुई थी। रोजगार होता था और यहाँ के जहाज हिंदुस्तानी चीजों को मिस्र, मेसोपोटैमिया और दूसरे देशों को ले जाते थे। उस जमाने में हिंदुस्तान के रहनेवाले द्रविड़ कहलाते थे। ये वही लोग हैं जिनकी संतान आजकल दक्षिणी हिंदुस्तान में मद्रास के आसपास रहती हैं।
उन द्रविड़ों पर आर्यों ने उत्तर से आ कर हमला किया, उस जमाने में मध्य एशिया में बेशुमार आर्य रहते होंगे। मगर वहाँ सब का गुजारा न हो सकता था इसलिए वे दूसरे मुल्कों में फैल गए। बहुत-से ईरान चले गए और बहुत-से यूनान तक और उससे भी बहुत पश्चिम तक निकल गए। हिंदुस्तान में भी उनके दल के दल कश्मीर के पहाड़ों को पार करके आए। आर्य एक मजबूत लड़नेवाली जाति थी और उसने द्रविड़ों को भगा दिया। आर्यों के रेले पर रेले उत्तर-पश्चिम से हिंदुस्तान में आए होंगे। पहले द्रविड़ों ने उन्हें रोका लेकिन जब उनकी तादाद बढ़ती ही गई तो वे द्रविड़ों के रोके न रुक सके। बहुत दिनों तक आर्य लोग उत्तर में सिर्फ अफगानिस्तान और पंजाब में रहे। तब वे और आगे बढ़े और उस हिस्से में आए जो अब संयुक्त प्रांत कहलाता है, जहाँ हम रहते हैं। वे इसी तरह बढ़ते-बढ़ते मध्य भारत के विंध्य पहाड़ तक चले गए। उस जमाने में इन पहाड़ों को पार करना मुश्किल था क्योंकि वहाँ घने जंगल थे। इसलिए एक मुद्दत तक आर्य लोग विंध्य पहाड़ के उत्तर तक ही रहे। बहुतों ने तो पहाड़ियों को पार कर लिया और दक्षिण में चले गए। लेकिन उनके झुंड के झुंड न जा सके इसलिए दक्षिण द्रविड़ों का ही देश बना रहा। आगे की जानकारी ऑडियो की मदद से प्राप्त कीजिए...
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दिव्य दृष्टि,
लेख
जीवन यात्रा जून 1957 से. भोपाल में रहने वाला, छत्तीसगढ़िया गुजराती. हिन्दी में एमए और भाषा विज्ञान में पीएच.डी. 1980 से पत्रकारिता और साहित्य से जुड़ाव. अब तक देश भर के समाचार पत्रों में करीब 2000 समसामयिक आलेखों व ललित निबंधों का प्रकाशन. आकाशवाणी से 50 फ़ीचर का प्रसारण जिसमें कुछ पुरस्कृत भी. शालेय और विश्वविद्यालय स्तर पर लेखन और अध्यापन. धारावाहिक ‘चाचा चौधरी’ के लिए अंशकालीन पटकथा लेखन. हिन्दी गुजराती के अलावा छत्तीसगढ़ी, उड़िया, बँगला और पंजाबी भाषा का ज्ञान. संप्रति स्वतंत्र पत्रकार।
संपर्क:
डॉ. महेश परिमल, टी-3, 204 सागर लेक व्यू होम्स, वृंदावन नगर, अयोघ्या बायपास, भोपाल. 462022.
ईमेल -
parimalmahesh@gmail.com
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