गुरुवार, 2 जून 2016
पिता के पत्र पुत्री के नाम - 18
पुरानी दुनिया के बड़े-बड़े शहर.... लेख के बारे में... मैं लिख चुका हूँ कि आदमियों ने पहले-पहल बड़ी-बड़ी नदियों के पास और उपजाऊ घाटियों में बस्तियाँ बनाईं जहाँ उन्हें खाने की चीजें और पानी बहुतायत से मिल सकता था। उनके बड़े-बड़े शहर नदियों के किनारे पर थे। तुमने इनमें से बाज मशहूर शहरों का नाम सुना होगा। मेसोपोटैमिया में बाबुल, नेनुवा, और असुर नाम के शहर थे। लेकिन इनमें से किसी शहर का अब पता नहीं है। हाँ, अगर बालू या मिट्टी में गहरी खुदाई होती है तो कभी-कभी उनके खंडहर मिल जाते हैं। इन हजारों बरसों में वे पूरी तरह मिट्टी और बालू से ढक गए और उनका कोई निशान भी नहीं मिलता। बाज जगहों में इन ढके हुए शहरों के ठीक ऊपर नए शहर बस गए। जो लोग इन पुराने शहरों की खोज कर रहे हैं उन्हें गहरी खुदाई करनी पड़ी है और कभी-कभी तले ऊपर कई शहर मिले हैं। यह बात नहीं है कि ये शहर एक साथ ही तले ऊपर रहे हों। एक शहर सैकड़ों वर्षों तक आबाद रहा होगा, लोग वहाँ पैदा हुए होंगे और मरे होंगे और कई पुश्तों तक यही सिलसिला जारी रहा होगा। धीरे-धीरे शहर की आबादी घटने लगी होगी और वह वीरान हो गया होगा। आखिर वहाँ कोई न रह गया होगा और शहर मलबे का एक ढेर बन गया होगा। तब उस पर बालू और गर्द जमने लगी होगी और यह शहर उसके नीचे ढक गए होंगे क्योंकि कोई आदमी सफाई करनेवाला न था। एक मुद्दत के बाद सारा शहर बालू और मिट्टी से ढक गया होगा और लोगों को इस बात की याद भी न रही होगी कि यहाँ कोई शहर था। सैकड़ों बरस गुजर गए होंगे तब नए आदमियों ने आ कर नया शहर बसाया होगा और यह नया शहर भी कुछ दिनों के बाद पुराना हो गया होगा। लोगों ने उसे छोड़ दिया होगा और वह भी वीरान हो गया होगा। एक जमाने के बाद वह भी बालू और धूल के नीचे गायब हो गया होगा। यही सबब है कि कभी-कभी हमें कई शहरों के खंडहर ऊपर-नीचे मिलते हैं। यह हालत खासकर बलुई जगहों में हुई होगी क्योंकि बालू हर एक चीज पर जल्दी जम जाती है। आगे की जानकारी ऑडियो की मदद से प्राप्त कीजिए....
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दिव्य दृष्टि,
लेख
जीवन यात्रा जून 1957 से. भोपाल में रहने वाला, छत्तीसगढ़िया गुजराती. हिन्दी में एमए और भाषा विज्ञान में पीएच.डी. 1980 से पत्रकारिता और साहित्य से जुड़ाव. अब तक देश भर के समाचार पत्रों में करीब 2000 समसामयिक आलेखों व ललित निबंधों का प्रकाशन. आकाशवाणी से 50 फ़ीचर का प्रसारण जिसमें कुछ पुरस्कृत भी. शालेय और विश्वविद्यालय स्तर पर लेखन और अध्यापन. धारावाहिक ‘चाचा चौधरी’ के लिए अंशकालीन पटकथा लेखन. हिन्दी गुजराती के अलावा छत्तीसगढ़ी, उड़िया, बँगला और पंजाबी भाषा का ज्ञान. संप्रति स्वतंत्र पत्रकार।
संपर्क:
डॉ. महेश परिमल, टी-3, 204 सागर लेक व्यू होम्स, वृंदावन नगर, अयोघ्या बायपास, भोपाल. 462022.
ईमेल -
parimalmahesh@gmail.com
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