शनिवार, 4 जून 2016
पिता के पत्र पुत्री के नाम - 20
चीन और हिंदुस्तान... लेख के बारे में... हिंदुस्तान में बहुत-सी पुराने जमाने की इमारतों के खंडहर शायद अभी तक जमीन में नीचे दबे पड़े हैं। जब तक उन्हें कोई खोद न निकाले तब तक हमें उनका पता नहीं चलता। लेकिन उत्तर में बाज बहुत पुराने खंडहरों की खुदाई हो चुकी है। यह तो हमें मालूम ही है कि बहुत पुराने जमाने में जब आर्य लोग हिंदुस्तान में आए तो यहाँ द्रविड़ जाति के लोग रहते थे। और उनकी सभ्यता भी ऊँचे दरजे की थी। वे दूसरे मुल्कवालों के साथ व्यापार करते थे। वे अपनी बनाई हुई बहुत-सी चीजें मेसोपोटैमिया और मिस्र में भेजा करते थे। समुद्री रास्ते से वे खासकर चावल और मसाले और साखू की इमारती लकड़ियाँ भी भेजा करते थे। कहा जाता है कि मैसोपोटैमिया के 'उर' नामी शहर के बहुत से पुराने महल दक्षिणी हिंदुस्तान से आई हुई साखू की लकड़ी के बने हुए थे। यह भी कहा जाता है कि सोना, मोती, हाथीदाँत, मोर और बंदर हिंदुस्तान से पश्चिम के मुल्कों को भेजे जाते थे। इससे मालूम होता है कि उस जमाने में हिंदुस्तान और दूसरे मुल्कों में बहुत व्यापार होता था। व्यापार तभी बढ़ता है जब लोग सभ्य होते हैं।
उस जमाने में हिंदुस्तान और चीन में छोटी-छोटी रियासतें या राज्य थे। इनमें से किसी मुल्क में भी एक राज्य न था। हर एक छोटा शहर, जिसमें कुछ गॉंव और खेत होते थे, एक अलग राज्य होता था। ये शहरी रियासतें कहलाती हैं। उस पुराने जमाने में भी इनमें से बहुत-सी रियासतों में पंचायती राज्य था। बादशाह न थे, राज्य का इंतजाम करने के लिए चुन हुए आदमियों की एक पंचायत होती थी। फिर भी बाज रियासतों में राजा का राज्य था। गोकि इन शहरी रियासतों की सरकारें अलग होती थी, लेकिन कभी-कभी वे एक दूसरे की मदद किया करती थीं, कभी-कभी एक बड़ी रियासत कई छोटी रियासतों की अगुआ बन जाती थी।
चीन में कुछ ही दिनों बाद इन छोटी-छोटी रियासतों की जगह एक बहुत बड़ा राज्य हो गया। इसी राज्य के जमाने में चीन की बड़ी दीवार बनाई गई थी। तुमने इस बड़ी दीवार का हाल पढ़ा है। वह कितनी अजीबोगरीब चीज है। वह समुद्र के किनारे से ऊँचे-ऊँचे पहाड़ों तक बनाई गई थी, ताकि मंगोल जाति के लोग चीन में घुस कर न आ सकें। यह दीवार चौदह सौ मील लंबी, बीस से तीस फुट तक ऊँची और पच्चीस फुट चौड़ी है। थोड़ी-थोड़ी दूर पर किले और बुर्ज हैं। अगर ऐसी दीवार हिंदुस्तान में बने तो वह उत्तर में लाहौर से लेकर दक्षिण में मद्रास तक चली जाएगी। वह दीवार अब भी मौजूद है और अगर तुम चीन जाओ तो उसे देख सकती हो। अन्य जानकारी ऑडियो की मदद से प्राप्त कीजिए...
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दिव्य दृष्टि,
लेख
जीवन यात्रा जून 1957 से. भोपाल में रहने वाला, छत्तीसगढ़िया गुजराती. हिन्दी में एमए और भाषा विज्ञान में पीएच.डी. 1980 से पत्रकारिता और साहित्य से जुड़ाव. अब तक देश भर के समाचार पत्रों में करीब 2000 समसामयिक आलेखों व ललित निबंधों का प्रकाशन. आकाशवाणी से 50 फ़ीचर का प्रसारण जिसमें कुछ पुरस्कृत भी. शालेय और विश्वविद्यालय स्तर पर लेखन और अध्यापन. धारावाहिक ‘चाचा चौधरी’ के लिए अंशकालीन पटकथा लेखन. हिन्दी गुजराती के अलावा छत्तीसगढ़ी, उड़िया, बँगला और पंजाबी भाषा का ज्ञान. संप्रति स्वतंत्र पत्रकार।
संपर्क:
डॉ. महेश परिमल, टी-3, 204 सागर लेक व्यू होम्स, वृंदावन नगर, अयोघ्या बायपास, भोपाल. 462022.
ईमेल -
parimalmahesh@gmail.com
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