शुक्रवार, 24 जून 2016
कविताएँ - अर्चना सिंह‘जया’
कविता का अंश...
वर्षा तू कितनी भोली है,
नहीं जानती कब आना है
और तुझे कब जाना है?
बादल तेरे संग मँडराता
हवा तुम्हें बहा ले जाती।
जहाँ चाहता रुक है जाता
और तुम्हें है फिर बरसाता।
धरती से तू दूर हो गई,
मानव से क्यों रूठ गई ?
अद््भुत तेरा रूप सुहाना
बारिश में भींग-भींग कर गाना।
कहाँ गया वह तेरा रिश्ता ?
बच्चों के संग धूम मचाना।
रौद्र रूप तुम दिखला कर
दुनिया को अचंभित कर देती।
कभी रुला देती मानव को,
बूँद-बूँद को भी तरसा है देती।
भू पर गिर जीवन देती तू
सभी प्राणी का चित हर लेती।
फिक्र औरों का तू करती।
वर्षा तू कितनी भोली है।
ऐसी ही अन्य कविताओं का आनंद ऑडियो की मदद से लीजिए...
लेबल:
कविता,
दिव्य दृष्टि
जीवन यात्रा जून 1957 से. भोपाल में रहने वाला, छत्तीसगढ़िया गुजराती. हिन्दी में एमए और भाषा विज्ञान में पीएच.डी. 1980 से पत्रकारिता और साहित्य से जुड़ाव. अब तक देश भर के समाचार पत्रों में करीब 2000 समसामयिक आलेखों व ललित निबंधों का प्रकाशन. आकाशवाणी से 50 फ़ीचर का प्रसारण जिसमें कुछ पुरस्कृत भी. शालेय और विश्वविद्यालय स्तर पर लेखन और अध्यापन. धारावाहिक ‘चाचा चौधरी’ के लिए अंशकालीन पटकथा लेखन. हिन्दी गुजराती के अलावा छत्तीसगढ़ी, उड़िया, बँगला और पंजाबी भाषा का ज्ञान. संप्रति स्वतंत्र पत्रकार।
संपर्क:
डॉ. महेश परिमल, टी-3, 204 सागर लेक व्यू होम्स, वृंदावन नगर, अयोघ्या बायपास, भोपाल. 462022.
ईमेल -
parimalmahesh@gmail.com
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भारती परिमल जी अाप की आवाज कर्ण प्रिय व भावपूर्ण भी है। आपका आभार प्रकट करना चाहती हूँ जो आपने मेरी कविता को अपना स्वर दिया।
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