शुक्रवार, 3 जून 2016
गढ़वाल की लक्ष्मीबाई - वीरांगना तीलू रौतेली
लेख के बारे में... उत्तराखंड की पावन धरती पर वैसे तो समय-समय पर अनेक वीरांगनाओं ने जन्म लिया है, लेकिन तीलू रौतेली ने छोटी-सी उम्र में जिस वीरता व साहस का परिचय दिया वह बिरले ही दे पाते हैं, इसलिए तो उन्हें गढ़वाल की लक्ष्मीबाई भी कहा जाता है। तीलू एक शरारती लड़की थी, जो अपनी सहेली बेल्लू और देवकी के साथ उछलकूद किया करती थी। उसकी माँ मैनावती कितना ही रोकती-टोकती पर तीलू कहाँ मानने वाली थी? पेड़ पर चढ़कर उसका फल तोड़कर खाना और अपने भाइयों के लिए लाना यह उसका पसंदीदा काम था। उसके भाई भी उसे बहुत प्यार करते थे। तीलू की हर जिद के आगे उन्हें झुकना पड़ता था। दस-बारह साल की तीलू को घोड़े दौड़ाने में बड़ा मजा आता था। कभी -कभी तो वह अपने भाइयों की तलवारोंं को भी चला लेती थी। उसके पिता ने उसके चौदह साल की होने पर एक घोड़ी भी खरीद कर दी साथ ही एक छोटी तलवार भी।
आइए एक झलक देखें इस वीरांगना का जीवन ऑडियो के माध्यम से, जिसे ऐतिहासिक झरोखे से हम तक पहुँचाया है, सुलोचना परमार ‘उत्तरांचली’ ने...
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दिव्य दृष्टि,
लेख
जीवन यात्रा जून 1957 से. भोपाल में रहने वाला, छत्तीसगढ़िया गुजराती. हिन्दी में एमए और भाषा विज्ञान में पीएच.डी. 1980 से पत्रकारिता और साहित्य से जुड़ाव. अब तक देश भर के समाचार पत्रों में करीब 2000 समसामयिक आलेखों व ललित निबंधों का प्रकाशन. आकाशवाणी से 50 फ़ीचर का प्रसारण जिसमें कुछ पुरस्कृत भी. शालेय और विश्वविद्यालय स्तर पर लेखन और अध्यापन. धारावाहिक ‘चाचा चौधरी’ के लिए अंशकालीन पटकथा लेखन. हिन्दी गुजराती के अलावा छत्तीसगढ़ी, उड़िया, बँगला और पंजाबी भाषा का ज्ञान. संप्रति स्वतंत्र पत्रकार।
संपर्क:
डॉ. महेश परिमल, टी-3, 204 सागर लेक व्यू होम्स, वृंदावन नगर, अयोघ्या बायपास, भोपाल. 462022.
ईमेल -
parimalmahesh@gmail.com
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