बुधवार, 22 जून 2016
बाल कहानी - छत्रपति का न्याय
कहानी का अंश...
छत्रपति शिवाजी बहुत ही न्यायप्रिय शासक थे। उनके राज्य में सुख-शांति थी और अपराधी को कड़ा दंड दिया जाता था। एक बार उनके सैनिकों ने एक आदमी को चोरी करते हुए पकड़ लिया और उसे दरबार में लाया गया। बहादुर सैनिकों ने उस आदमी को पकड़ने का कारण बताते हुए कहा कि महाराज, यह आदमी गोदाम से अनाज की चोरी कर रहा था। शिवाजी ने उस आदमी से पूछा - क्या सैनिकों द्वारा लगाया गया आरोप सही है? उस आदमी ने निडरतापूर्वक कहा - जी हाँ, महाराज। मैंने चोरी की है। शिवाजी ने अचंभे से पूछज्ञ - लेकिन क्यों? उस आदमी ने प्रश्न का उत्तर देते हुए कहा - महाराज, मैं कई दिनों से काम की तलाश में भटक रहा था लेकिन मुझे कहीं काम नहीं मिला। हम लोग बहुत गरीब हैं। हमारे पास खाने के लिए कुछ नहीं था। कई दिनों से अन्न का एक दाना भी हमारे मुँह में नहीं गया। महाराष्ट्र नरेश, इस संसार में मनुष्य सब कुछ सहन कर लेता है, परंतु पेट की ज्वाला को सहन करना बहुत कठिन काम है। मैं जानता था कि चोरी करना अपराध है लेकिन क्या करता? पेट की भूख मिटाने के लिए मैंने चोरी करने का निर्णय लिया। आप मुझे इसके लिए जो चाहे वो दंड दे सकते हैं। शिवाजी ने उस चोर को क्या दंड दिया होगा? क्या उसने चोरी करना छोड़ दिया होगा? ये जानने के लिए ऑडियो की मदद लीजिए…
लेबल:
दिव्य दृष्टि,
बाल कहानी
जीवन यात्रा जून 1957 से. भोपाल में रहने वाला, छत्तीसगढ़िया गुजराती. हिन्दी में एमए और भाषा विज्ञान में पीएच.डी. 1980 से पत्रकारिता और साहित्य से जुड़ाव. अब तक देश भर के समाचार पत्रों में करीब 2000 समसामयिक आलेखों व ललित निबंधों का प्रकाशन. आकाशवाणी से 50 फ़ीचर का प्रसारण जिसमें कुछ पुरस्कृत भी. शालेय और विश्वविद्यालय स्तर पर लेखन और अध्यापन. धारावाहिक ‘चाचा चौधरी’ के लिए अंशकालीन पटकथा लेखन. हिन्दी गुजराती के अलावा छत्तीसगढ़ी, उड़िया, बँगला और पंजाबी भाषा का ज्ञान. संप्रति स्वतंत्र पत्रकार।
संपर्क:
डॉ. महेश परिमल, टी-3, 204 सागर लेक व्यू होम्स, वृंदावन नगर, अयोघ्या बायपास, भोपाल. 462022.
ईमेल -
parimalmahesh@gmail.com
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