शनिवार, 1 अक्तूबर 2016
शिखण्डिनी का प्रतिशोध - 7 - राजेश्वर वशिष्ठ
कविता का अंश...
सृष्टि को चलाती हैं स्त्रियाँ,
पुरुष के अवदान से।
जैसे उपजते हैं अन्न, फलदार पेड़,
भूमि के गर्भ से।
पर किसान सदा चिन्तित रहता है,
अच्छे बीज के लिए।
वह अक्सर भूल जाता है उस धरती को,
जिस पर लहलहाती है फ़सल।
ऐसा ही होता है हमारे समाज में,
स्त्रियों के साथ !
वे बढ़ाती हैं हमारी वंश-बेल,
पर उनके जन्म की,
कोई नहीं करता कामना।
वे आती हैं अयाचित और विदा लेती हैं,
किसी भिक्षु की तरह;
भूमि का अंश,
अन्ततः मिल जाता है भूमि में ही,
मिट्टी होकर !
सन्तान पाने के लिए ही,
तपस्या करते हैं पांचाल देश के राजा द्रुपद।
और माँगते हैं शिव से एक पुत्र,
प्रसन्न होते हैं शिव और कहते हैं --
द्रुपद देता हूँ तुम्हें वरदान सन्तान प्राप्ति का,
पर होगी यह कन्या !
धर्म कहता है,
दूसरे का वंश चलाती हैं कन्याएँ।
कैसे सन्तुष्ट होते राजा द्रुपद,
पुनः प्रार्थना और अर्चना की जाती है पुत्र के लिए ।
मैं बदल नहीं सकता अपना वरदान,
पर देता हूँ यह वरदान भी,
कि दैव इच्छा से
एक दिन पुरुष बन जाएगी तेरी बेटी !
व्यथित राजा ने कन्या के जन्म को,
इस तरह प्रचारित किया लोक में,
मानो पुत्र ही जन्मा हो रानी के गर्भ से !
सुन्दर और सुशील थी,
राजा द्रुपद की ज्येष्ठ सन्तान।
उसके केश थे घने और बहुत लम्बे,
जिन्हें वह लपेटे रहती थी सिर के ऊपर।
इस शिखा के कारण ही,
वह कहलाई शिखण्डिनी !
पर राजा के छल ने,
लोक में उसका पुरुषवाची नामकरण किया
शिखण्डी – द्रुपद का कन्या-सा कोमल, पुत्र
जिसके पुरुष बन जाने की,
सदैव प्रतीक्षा थी राजा को।
झूठा तो नहीं होगा शिव का वरदान !
शिखण्डी करता रहा,
अनेक विद्याओं का अध्ययन।
आचार्य द्रोण तथा
अन्य गुरुओं के मार्गदर्शन में।
अग्नि-कुण्ड से मिले,
अपने भाई धृष्टद्युम्न
और बहन द्रौपदी के साथ !
कालान्तर में शिखण्डी का विवाह हुआ,
दशार्णराज हिरण्यवर्मा की
सुन्दरी कन्या अनामिका से।
जिसने सुहागरात में उत्पात मचा,
ले ली पितृगृह की राह।
और सूचित किया अपने पिता को
कि शिखण्डी स्त्री है।
और यह विवाह हुआ है धोखे से !
दशार्णराज हिरण्यवर्मा ने क्रुद्ध होकर,
सन्देश भेजा राजा द्रुपद को,
कि वह सप्ताह भर में करे,
इस कृत्य का निस्तारण।
अन्यथा पूरे दल-बल के साथ,
नष्ट-भ्रष्ट कर दिया जाएगा पांचाल देश !
यह अभूतपूर्व लज्जा का समय था,
शिखण्डिनी के लिए,
राजा द्रुपद के लिए,
और भगवान शिव के लिए भी !
इस अधूरी कविता को पूरा सुनने के लिए ऑडियो की मदद लीजिए...
लेबल:
कविता,
दिव्य दृष्टि
जीवन यात्रा जून 1957 से. भोपाल में रहने वाला, छत्तीसगढ़िया गुजराती. हिन्दी में एमए और भाषा विज्ञान में पीएच.डी. 1980 से पत्रकारिता और साहित्य से जुड़ाव. अब तक देश भर के समाचार पत्रों में करीब 2000 समसामयिक आलेखों व ललित निबंधों का प्रकाशन. आकाशवाणी से 50 फ़ीचर का प्रसारण जिसमें कुछ पुरस्कृत भी. शालेय और विश्वविद्यालय स्तर पर लेखन और अध्यापन. धारावाहिक ‘चाचा चौधरी’ के लिए अंशकालीन पटकथा लेखन. हिन्दी गुजराती के अलावा छत्तीसगढ़ी, उड़िया, बँगला और पंजाबी भाषा का ज्ञान. संप्रति स्वतंत्र पत्रकार।
संपर्क:
डॉ. महेश परिमल, टी-3, 204 सागर लेक व्यू होम्स, वृंदावन नगर, अयोघ्या बायपास, भोपाल. 462022.
ईमेल -
parimalmahesh@gmail.com
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