बुधवार, 19 अक्तूबर 2016
कविता - जिसका काम उसी को साजे : विवेक भटनागर
कविता का अंश...
एक गधा था चंपक वन में,
ढेंचू जिसका नाम।
सीधा-सादा, भोला-भाला,
करता था सब काम।
एक बार वह लगा सोचने,
मैं भी गाना गाऊँ।
जंगल के सब जानवरों पर,
अपनी धाक जमाऊँ।
लेकिन गधा अकेले कैसे,
अपना राग अलापे।
यही सोचकर गधा बेचारा,
मन ही मन में झेंपे।
कालू कौए को जब उसने,
मन की बात बताई।
कालू बोला- ढेंचू भाई,
इसमें कौन बुराई।
हम दोनों मिलकर गाएँगे,
अपना नाम करेंगे।
कोयल-मैना के गाने की,
हम छुट्टी कर देंगे।
मैं काँव-काँव का राग गढ़ूँ,
तुम ढेंचू राग बनाना।
डूब मरेगा चुल्लू भर में,
तानसेन का नाना।
इतने में आ गई लोमड़ी,
फिर उनको बहकाने।
बोली- तुम तो गा सकते हो,
अच्छे-अच्छे गाने।
शेर सिंह राजा को जाकर,
अपना राग सुनाओ।
उनको खुश कर राजसभा में,
मंत्रीपद पा जाओ।
अगले दिन था राजसभा में,
उन दोनों का गाना।
ढेंचू-ढेंचू-काँव-काँव का,
बजने लगा तराना।
वहाँ उपस्थित सब लोगों ने,
कान में उंगली डाली।
गाना खत्म हो गया लेकिन
बजी न एक भी ताली।
निर्णय दिया शेरसिंह ने तब,
कर्कश है यह गान।
इससे हो सकता है प्रदूषित,
हरा-भरा उद्यान।
जाकर इस जंगल के बाहर,
तुमको गाना होगा।
वरना इस गाने पर तुमको,
टैक्स चुकाना होगा।
सुनकर शेरसिंह का निर्णय,
हो गये दोनों दंग।
जैसे भरी सभा में दोनों,
हो गये नंग-धड़ंग।
शेर सिंह की बातें सुनकर,
सपने से वे जागे।
जिसका काम उसी को साजे,
और करे तो डंडा बाजे।
इस कविता का आनंद ऑडियो की मदद से लीजिए...
लेबल:
दिव्य दृष्टि,
बाल कविता
जीवन यात्रा जून 1957 से. भोपाल में रहने वाला, छत्तीसगढ़िया गुजराती. हिन्दी में एमए और भाषा विज्ञान में पीएच.डी. 1980 से पत्रकारिता और साहित्य से जुड़ाव. अब तक देश भर के समाचार पत्रों में करीब 2000 समसामयिक आलेखों व ललित निबंधों का प्रकाशन. आकाशवाणी से 50 फ़ीचर का प्रसारण जिसमें कुछ पुरस्कृत भी. शालेय और विश्वविद्यालय स्तर पर लेखन और अध्यापन. धारावाहिक ‘चाचा चौधरी’ के लिए अंशकालीन पटकथा लेखन. हिन्दी गुजराती के अलावा छत्तीसगढ़ी, उड़िया, बँगला और पंजाबी भाषा का ज्ञान. संप्रति स्वतंत्र पत्रकार।
संपर्क:
डॉ. महेश परिमल, टी-3, 204 सागर लेक व्यू होम्स, वृंदावन नगर, अयोघ्या बायपास, भोपाल. 462022.
ईमेल -
parimalmahesh@gmail.com
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