शनिवार, 8 अक्तूबर 2016
बाल कविताएँ - प्रभुदयाल श्रीवास्तव
कविता का अंश...
अब मत चला कुल्हाड़ी बंदे,
अब मत चला कुल्हाड़ी।
देख रहा तू कुल्हाड़ी ,
इसी ने काटे कई पेड़।
नहीं किसी को छोड़ा बंदे,
बूढ़े युवा अधेड़।
भूखी नदिया सूखे नाले,
नंगी हुई पहाड़ी बंदे,
अब मत चला कुल्हाड़ी।
कहाँ मकोरे कहाँ करोंदे,
झरबेरी की बाड़?
लुच, लुच लाल गुमचियाँ ओझल,
जंगल हुये उजाड़।
घूम रहे जंगल में आरे,
नहीं रुक रही गाड़ी बंदे,
अब मत चला कुल्हाड़ी।
बादल फटा जलजले जैसा,
पानी ढेरम ढेर।
एक दिवस में तीस इंच तक,
हुआ गजब अंधेर।
सूखा पसरा बाढ़ आ गई,
धरती बहुत दहाड़ी बंदे,
अब मत चला कुल्हाड़ी।
दो पहिया, मोटर, कारों के,
सड़कों पर अंबार।
आसमान में ईंधन छोड़ें,
विष से भरे गुबार।
कान फोड़ते कोलाहल ने,
भू की छाती फाड़ी बंदे,
अब मत चला कुल्हाड़ी।
पर्यावरण प्रदूषण की यूँ,
होती घर घर बात।
किंतु समस्या के निदान में,
नहीं किसी का साथ।
बना नहीं कोई भी पाया,
सबने बात बिगाड़ी बंदे,
अब मत चला कुल्हाड़ी।
अभी समय है अब भी चेतो,
दुनियाँ भर के देश।
चीन अमरिका ने ओढ़े हैं,
नकली झूठे वेश।
पर्यावरण प्रदूषण के ये,
सबसे बड़े खिलाड़ी बंदे,
अब मत चला कुल्हाड़ी।
ऐसी ही अन्य कविताओं को सुनने के लिए आॅडियो की मदद लीजिए...
लेबल:
दिव्य दृष्टि,
बाल कविता
जीवन यात्रा जून 1957 से. भोपाल में रहने वाला, छत्तीसगढ़िया गुजराती. हिन्दी में एमए और भाषा विज्ञान में पीएच.डी. 1980 से पत्रकारिता और साहित्य से जुड़ाव. अब तक देश भर के समाचार पत्रों में करीब 2000 समसामयिक आलेखों व ललित निबंधों का प्रकाशन. आकाशवाणी से 50 फ़ीचर का प्रसारण जिसमें कुछ पुरस्कृत भी. शालेय और विश्वविद्यालय स्तर पर लेखन और अध्यापन. धारावाहिक ‘चाचा चौधरी’ के लिए अंशकालीन पटकथा लेखन. हिन्दी गुजराती के अलावा छत्तीसगढ़ी, उड़िया, बँगला और पंजाबी भाषा का ज्ञान. संप्रति स्वतंत्र पत्रकार।
संपर्क:
डॉ. महेश परिमल, टी-3, 204 सागर लेक व्यू होम्स, वृंदावन नगर, अयोघ्या बायपास, भोपाल. 462022.
ईमेल -
parimalmahesh@gmail.com
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
Post Labels
- अतीत के झरोखे से
- अपनी खबर
- अभिमत
- आज का सच
- आलेख
- उपलब्धि
- कथा
- कविता
- कहानी
- गजल
- ग़ज़ल
- गीत
- चिंतन
- जिंदगी
- तिलक हॊली मनाएँ
- दिव्य दृष्टि
- दिव्य दृष्टि - कविता
- दिव्य दृष्टि - बाल रामकथा
- दीप पर्व
- दृष्टिकोण
- दोहे
- नाटक
- निबंध
- पर्यावरण
- प्रकृति
- प्रबंधन
- प्रेरक कथा
- प्रेरक कहानी
- प्रेरक प्रसंग
- फिल्म संसार
- फिल्मी गीत
- फीचर
- बच्चों का कोना
- बाल कहानी
- बाल कविता
- बाल कविताएँ
- बाल कहानी
- बालकविता
- भाषा की बात
- मानवता
- यात्रा वृतांत
- यात्रा संस्मरण
- रेडियो रूपक
- लघु कथा
- लघुकथा
- ललित निबंध
- लेख
- लोक कथा
- विज्ञान
- व्यंग्य
- व्यक्तित्व
- शब्द-यात्रा'
- श्रद्धांजलि
- संस्कृति
- सफलता का मार्ग
- साक्षात्कार
- सामयिक मुस्कान
- सिनेमा
- सियासत
- स्वास्थ्य
- हमारी भाषा
- हास्य व्यंग्य
- हिंदी दिवस विशेष
- हिंदी विशेष
Nice
जवाब देंहटाएंनीचे दिए अनुसार सुधार करें
जवाब देंहटाएंदेख रहा तू इसी कुल्हाड़ी ने काटे कई पेड़।
प्रभुदयाल श्रीवास्तव