बुधवार, 19 अक्तूबर 2016
कविता - माँ का मौन - विवेक भटनागर
कविता का अंश...
लीप दिया है चूल्हा, अम्मा मिट्टी वाला।
मांज दिया है तवा, हुआ था बेहद काला।
फिर भी कहती मत जा बाहर लुक्का-छिप्पी खेल खेलने…।
बड़े सबेरे उठकर मैंने,
सारे घर के कपड़े फींचे।
नहला-धुला कर लछमिनिया को,
उलझे बाल जतन से खींचे।
भूखी गइयों की नांदों में,
खली डाल कर सानी की है।
हुई मांजकर बरतन काली,
दी हुई अंगूठी नानी की है।
लगा दिया है बटन सुई से,
संजू के नेकर में काला….।
लीप दिया है चूल्हा अम्मा मिट्टी वाला….।
जब बाहर जाती तो कहती,
बेटी तू मत बाहर खेल।
तू लड़की है, कामकाज कर,
लड़कों के संग कैसा मेल।
क्या लड़कों के साथ खेलना,
कोई पाप हुआ करता है?
लड़की का क्या कद बढ़ जाना,
अम्मा पाप हुआ करता है?
फिर तो अम्मा चारदिवारी,
लगती है मकड़ी का जाला…।
लीप दिया है चूल्हा अम्मा मिट्टी वाला…।
लेकर कलम-बुदिक्का मैंने,
पाटी में था लिखा ककहरा।
पाठ याद किए थे सारे,
था जीवन में उन्हें उतारा…।
पांच पास करते ही तुमने,
मुझे मदरसा छुटा दिया है।
घर-गृहस्थी में क्यों अम्मा,
मुझको उलझा अभी दिया है।
जो कुछ पढ़ा, अभी तक उसका,
इन कामों में पड़ा न पाला….।
लीप दिया है चूल्हा अम्मा मिट्टी वाला…।
इस अधूरी कविता का पूरा आनंद लेने के लिए ऑडियो की मदद लीजिए...
लेबल:
कविता,
दिव्य दृष्टि
जीवन यात्रा जून 1957 से. भोपाल में रहने वाला, छत्तीसगढ़िया गुजराती. हिन्दी में एमए और भाषा विज्ञान में पीएच.डी. 1980 से पत्रकारिता और साहित्य से जुड़ाव. अब तक देश भर के समाचार पत्रों में करीब 2000 समसामयिक आलेखों व ललित निबंधों का प्रकाशन. आकाशवाणी से 50 फ़ीचर का प्रसारण जिसमें कुछ पुरस्कृत भी. शालेय और विश्वविद्यालय स्तर पर लेखन और अध्यापन. धारावाहिक ‘चाचा चौधरी’ के लिए अंशकालीन पटकथा लेखन. हिन्दी गुजराती के अलावा छत्तीसगढ़ी, उड़िया, बँगला और पंजाबी भाषा का ज्ञान. संप्रति स्वतंत्र पत्रकार।
संपर्क:
डॉ. महेश परिमल, टी-3, 204 सागर लेक व्यू होम्स, वृंदावन नगर, अयोघ्या बायपास, भोपाल. 462022.
ईमेल -
parimalmahesh@gmail.com
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