गुरुवार, 20 अक्तूबर 2016

लघुकथा – सौदागर – रमेश चन्द्र शर्मा ‘आचार्य’

कहानी का अंश... उसके पास-पड़ोस की सभी हमउम्र लड़कियाँ अपना-अपना घर बसा चुकी थीं। कई तो उसकी उम्र से चार-पाँच साल छोटी भी थी। वह विवाह के यर्थाथ से भलीभांति परिचित थी। कई बार स्त्री मुक्ति के बारे में अखबारों में पढ़ती तो उसे मन ही मन बड़ा क्रोध आता। उसकी तो बस एक ही इच्छा थी कि उसके माँ-बाबूजी सदा खुश रहें लेकिन जब भी वे उसे देखते उनके चेहरे पर विषाद की रेखाएँ उभरने लगतीं। और वे अपनी किस्मत को कोसने लगते थे। वह अच्छी तरह से जानती थी कि मध्यमवर्गीय परिवार की लड़कियाँ समाज द्वारा संचालित होती हैं और उनके माता-पिता भी समाज की रुढ़ियों से ग्रस्त होते हैं। वह हर बार सोचती कि बाबूजी से सीधे कहे कि बिना शादी के भी लोग जीते हैं और वे उसके विवाह को लेकर परेशान न हों। मगर वो कहाँ मानने वाले थे। कहीं भी, कोई भी मिलता तो बस वे उसे घर आने का न्योता दे डालते और उसे एक बार फिर सभी के सामने नुमाइश बनना पड़ता था। वह देखने में साँवली थी। नैन-नक्श भी अच्छे थे। एक कंपनी में अच्छी तनख्वाह से नौकरी भी कर रही थी।फिर क्या हुआ? क्यों विवाह में देर हो रही थी? आगे क्या हुआ? यह जानने के लिए ऑडियो की मदद लीजिए....

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