शुक्रवार, 14 अक्तूबर 2016
कहानी - सजनवा - 2 - डॉ. शरद ठाकर
डॉक्टर शरद ठाकर एक गायनेकोलॉजिस्ट होने के साथ-साथ कलम के धनी भी हैं। गुजरात के पत्र-पत्रिकाओं में उनकी कलम चलती है और क्या खूब चलती है। उन्हें एक साहित्यकार एवं कहानीकार के रूप में घर-घर में पहचाना जाता है। विशेषकर महिलाओं के तो वे प्रिय लेखक हैंं। उनकी इस कहानी को पढ़ते हुए हमें बेहद खुशी हो रही है। आप भी इनकी लेखनी से परिचित होकर प्रसन्नता अनुभव करेंगे। ऐसा मेरा विश्वास है। कहानी का कुछ अंश...
पूरे गाँव में हाहाकार मच गया, नगरसेठ तलकचंद की बेटी ऋता उनके नौकर खुशाल के साथ भाग गई! वैष्णव वणिक कुल में जन्मी कन्या एक आदिवासी ठाकुर के गले का हार बन गई! खबर फैलते देर नहीं लगी। वैसे भी कौन सा बड़ा गाँव था? सभी के मुँह पर एक ही बात थी- ऋता के बारे में तो ऐसा नहीं सोचा था!
लेकिन गाँव की हाईस्कूल के युवा आचार्य मूरत जोशीपुरा को यह खबर सुनकर जरा भी आश्चर्य नहीं हुआ। उनके मुख से पहला प्रतिभाव ये था - 'ऋता है ही सनकी। उसे जो अच्छा लगता है, वो वही करती है। आचार्य के इस वाक्य के पीछे ऋता से जुड़ा भूतकाल का अनुभव झाँक रहा था।
बारहवीं की वार्षिक परीक्षा थी। आचार्य मूरत जोशीपुरा स्वयं परीक्षाकक्ष में राउन्ड लेने के लिए आए। जैसे ही वे कक्ष में दाखिल हुए कि उन्हें देखकर आखरी बैंच पर बैठी साँवली सलोनी सत्रह वर्षीय ऋता खड़ी हो गई और चलते हुए ब्लैकबोर्ड की दीवार की तरफ आगे बढ़ी। वहाँ पर परीक्षार्थियों की पुस्तकें और गाईड रखी थी। ऋता ने उस ढेर में से एक गाईड उठा ली और बिना किसी संकोच या शर्म के गाईड खोलकर प्रश्नों के उत्तर लिखने लगी। सुपरवाइजर स्तब्ध! अन्य परीक्षार्थी भी सकपका गए। एक क्षण के लिए तो आचार्य भी विस्मित हो गए। 'ऋता...! व्हॉट इज़ दिस ? आचार्य की आवाज परीक्षा खंड को कंपकंपा गई। 'देख नहीं रहे हैं, सर? गाईड में से नकल कर रही हूँ। 'इसकी सजा क्या है, ये तुम्हें पता है? तीन साल के लिए स्कूल से तुम्हें निकाल दिया जाएगा।
'केवल मुझे ही? ये सभी कब से चीटिंग कर रहे हैं और छोटी-छोटी कतरनों में से देखकर लिख रहे हैं उन्हें कोई सजा नहीं मिलेगी? ऋता की आँख से चिंगारियाँ निकल रही थी। जोशीपुरा साहब सारा मामला समझ गए। अन्य विद्यार्थी नकल कर रहे थे, ये बात इस सत्यवादी लडक़ी से बर्दाश्त नहीं हुई। लेकिन किसी का नाम लेकर शिकायत करने के बदले ऋता ने ये मौलिक उपाय अपनाया था। आचार्य की एक फटकार और फटाफट सारी कतरनों का ढेर लग गया।
ऋता ने भी पुस्तक वहीं रख दी। साहब ने उसकी कॉपी में देखा तो उसने पुस्तक में से एक भी वाक्य नहीं चुराया था! इस घटना के दो वर्ष बाद आज ऋता ने आज फिर पूरे गाँव को हिलाकर रख दिया था।
आगे क्या हुआ? यह जानने के लिए ऑडियो की मदद लीजिए...
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दिव्य दृष्टि
जीवन यात्रा जून 1957 से. भोपाल में रहने वाला, छत्तीसगढ़िया गुजराती. हिन्दी में एमए और भाषा विज्ञान में पीएच.डी. 1980 से पत्रकारिता और साहित्य से जुड़ाव. अब तक देश भर के समाचार पत्रों में करीब 2000 समसामयिक आलेखों व ललित निबंधों का प्रकाशन. आकाशवाणी से 50 फ़ीचर का प्रसारण जिसमें कुछ पुरस्कृत भी. शालेय और विश्वविद्यालय स्तर पर लेखन और अध्यापन. धारावाहिक ‘चाचा चौधरी’ के लिए अंशकालीन पटकथा लेखन. हिन्दी गुजराती के अलावा छत्तीसगढ़ी, उड़िया, बँगला और पंजाबी भाषा का ज्ञान. संप्रति स्वतंत्र पत्रकार।
संपर्क:
डॉ. महेश परिमल, टी-3, 204 सागर लेक व्यू होम्स, वृंदावन नगर, अयोघ्या बायपास, भोपाल. 462022.
ईमेल -
parimalmahesh@gmail.com
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