बुधवार, 19 अक्टूबर 2016
कविताएँ - रामधारी सिंह ‘दिनकर’
कविता का अंश...
राजा वसन्त वर्षा ऋतुओं की रानी,
लेकिन दोनों की कितनी भिन्न कहानी।
राजा के मुख में हँसी कण्ठ में माला,
रानी का अन्तर द्रवित दृगों में पानी।
डोलती सुरभि राजा घर कोने कोने,
परियाँ सेवा में खड़ी सजा कर दोने।
खोले अंचल रानी व्याकुल सी आई,
उमड़ी जाने क्या व्यथा लगी वह रोने।
लेखनी लिखे मन में जो निहित व्यथा है,
रानी की निशि दिन गीली रही कथा है।
त्रेता के राजा क्षमा करें यदि बोलूँ,
राजा रानी की युग से यही प्रथा है।
नृप हुये राम तुमने विपदायें झेलीं,
थी कीर्ति उन्हें प्रिय तुम वन गयीं अकेली।
वैदेहि तुम्हें माना कलंकिनी प्रिय ने,
रानी करुणा की तुम भी विषम पहेली।
रो रो राजा की कीर्तिलता पनपाओ,
रानी आयसु है लिये गर्भ वन जाओ।
ऐसी ही अन्य कविताओं का आनंद ऑडियो की मदद से लीजिए...
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