मंगलवार, 4 अक्तूबर 2016
कविता - द्रौपदी - कुंती - रश्मि प्रभा
कविता का अंश...
कुंती
वाकई तुम माँ' कहलाने योग्य नहीं थी !!!
अरे जब तुमने समाज के नाम पर,
अपने मान के लिए,
कर्ण को प्रवाहित कर
दिया,
पुत्रो की बिना सुने मुझे विभाजित कर दिया,
तो तुम क्या मेरी रक्षा करती ?!
मन्त्रों का प्रयोग करनेवाली तुम,
तुम्हें क्या फर्क पड़ता था,
अगर तुम्हारे पुत्र मुझे हार गए
और दुःशासन मुझे घसीट लाया
....
दम्भ की गर्जना करता कौरव वंश
और दूसरी तरफ …
स्थिर धर्मराज के आगे स्थिर अर्जुन
भीम,नकुल-सहदेव …
भीष्म प्रतिज्ञा करनेवाले पितामह,
परम ज्ञानी विदुर
.... !!!
धृतराष्ट की चर्चा तो व्यर्थ ही है,
वह तो सम्पूर्णतः अँधा था,
पर जिनके पास आँखें थीं,
उन्होंने भी क्या किया ?
पलायन, सिर्फ पलायन ....
आज तक मेरी समझ में नहीं आया,
कि सबके सब असमर्थ कैसे थे ?
क्या मेरी इज़्ज़त से अधिक,
वचन और प्रतिज्ञा का अर्थ था ?
मैं मानती हूँ,
कि मैंने दुर्योधन से गलत मज़ाक किया,
अमर्यादित कदम थे मेरे,
पर उसकी यह सजा ?!!!
…
आह !!!
मैं यह प्रलाप तुम्हारे समक्ष कर ही क्यूँ रही हूँ !
कुंती,
तुम्हारा स्वार्थ तो बहुत प्रबल था,
अन्यथा -
तुम कर्ण की बजाय,
अपने पाँच पुत्रों को कर्ण का परिचय देती,
रोक लेती युद्ध से !
तुम ही बताओ,
कहाँ ? किस ओर सत्य खड़ा था ?
यदि कर्ण को उसका अधिकार नहीं मिला,
तो दुर्योधन को भी उसका अधिकार नहीं मिला।
कर्ण ने तुम्हारी भूल का परिणाम पाया,
तो दुर्योधन ने
अंधे पिता के पुत्र होने का परिणाम पाया।
.... कुंती इसमें मैं कहाँ थी ?
मुझे जीती जागती कुल वधु से,
एक वस्तु कैसे बना दिया तुम्हारे पराक्रमी पुत्रों ने ?
निरुत्तर खड़ी हो,
निरुत्तर ही खड़ी रहना।
तुम अहिल्या नहीं,
जिसके लिए कोई राम आएँगे,
और उद्धार होगा !
और मैं द्रौपदी,
तीनों लोक, दसों दिशाओं को साक्षी मानकर कहती हूँ -
कि भले ही महाभारत खत्म हो गया हो,
कौरवों का नाश हो गया हो,
लेकिन मैंने तुम्हें,
तुम्हारे पुत्रों को माफ़ नहीं किया है,
ना ही करुँगी।
जब भी कोई चीरहरण होगा,
कुंती,
ये द्रौपदी तुमसे सवाल करेगी....
इस अधूरी कविता को पूरा सुनने के लिए ऑडियो की मदद लीजिए...
लेबल:
कविता,
दिव्य दृष्टि
जीवन यात्रा जून 1957 से. भोपाल में रहने वाला, छत्तीसगढ़िया गुजराती. हिन्दी में एमए और भाषा विज्ञान में पीएच.डी. 1980 से पत्रकारिता और साहित्य से जुड़ाव. अब तक देश भर के समाचार पत्रों में करीब 2000 समसामयिक आलेखों व ललित निबंधों का प्रकाशन. आकाशवाणी से 50 फ़ीचर का प्रसारण जिसमें कुछ पुरस्कृत भी. शालेय और विश्वविद्यालय स्तर पर लेखन और अध्यापन. धारावाहिक ‘चाचा चौधरी’ के लिए अंशकालीन पटकथा लेखन. हिन्दी गुजराती के अलावा छत्तीसगढ़ी, उड़िया, बँगला और पंजाबी भाषा का ज्ञान. संप्रति स्वतंत्र पत्रकार।
संपर्क:
डॉ. महेश परिमल, टी-3, 204 सागर लेक व्यू होम्स, वृंदावन नगर, अयोघ्या बायपास, भोपाल. 462022.
ईमेल -
parimalmahesh@gmail.com
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