गुरुवार, 12 मई 2016
एन. रघुरामन - जीने की कला - 5
लेख का अंश... जिंदगी के खेल में सीटी बजने से पहले हार न मानें - यह जरूरी भी है, क्योंकि खेल चाहे फुटबॉॉल का हो या क्रिकेट का, या फिर कोई अन्य खेल हो, हमारे मन में अंतिम समय तक उम्मीद बनी रहती है। हर खिलाड़ी अंतिम क्षण तक खेल जीतने का प्रयास करता है और पूरी र्इमानदारी से करता है। जीवन का खेल भी ऐसा ही है, संघर्ष से भरा और सुख-दुख से पूरम्पूर। इसमें भी निराशा का त्याग कर आशा, साहस, आत्मविश्वास और दृढ निश्चय तथा दृढ़ इच्छाशक्ति का दामन थामना होता है। तभी हम सफलता का सही आकलन करते हुए उससे रू-ब-रू हो सकते हैं। जिसने खेल के मैदान में पहुँँचने से पहले ही निराशा को स्वीकार कर लिया, वो भला क्या खेल पाएगा, इसलिए हर पल, हर क्षण सकारात्मक ऊर्जा का होना अति आवश्यक है। जब तक ईश्वर द्वारा सीटी नहीं बजाई जाती तब तक हमें उम्मीद नहीं छोड़नी चाहिए और हर क्षण को भरपूर जीने का प्रयास करना चाहिए। कुछ इसी तरह की सकारात्मक सोच के साथ हमें बहुत कुछ सीखा जाता है, यह आलेख। तो फिर ऑडियो की मदद से इस लेख का आनंद लीजिए...
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दिव्य दृष्टि,
लेख
जीवन यात्रा जून 1957 से. भोपाल में रहने वाला, छत्तीसगढ़िया गुजराती. हिन्दी में एमए और भाषा विज्ञान में पीएच.डी. 1980 से पत्रकारिता और साहित्य से जुड़ाव. अब तक देश भर के समाचार पत्रों में करीब 2000 समसामयिक आलेखों व ललित निबंधों का प्रकाशन. आकाशवाणी से 50 फ़ीचर का प्रसारण जिसमें कुछ पुरस्कृत भी. शालेय और विश्वविद्यालय स्तर पर लेखन और अध्यापन. धारावाहिक ‘चाचा चौधरी’ के लिए अंशकालीन पटकथा लेखन. हिन्दी गुजराती के अलावा छत्तीसगढ़ी, उड़िया, बँगला और पंजाबी भाषा का ज्ञान. संप्रति स्वतंत्र पत्रकार।
संपर्क:
डॉ. महेश परिमल, टी-3, 204 सागर लेक व्यू होम्स, वृंदावन नगर, अयोघ्या बायपास, भोपाल. 462022.
ईमेल -
parimalmahesh@gmail.com
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