बुधवार, 18 मई 2016
बाल कहानी - दुष्ट कौआ - कौशल पाण्डेय
कहानी का अंश... नानी के घर आते ही सोनू और मोनू उन्हें घेर कर बैठ गये।नानी उनके इस घेराव का मतलब समझ रही थीं।
“हां,हां। जानती हूं तुम्हें क्या चाहिये। कहानी भी सुनाऊंगी,पहले चाय नाश्ता तो करो”।
“नानी,चाय भी पीते जायेंगे और कहानी भी सुनते रहेंगे ”-- दोनों एक साथ बोल पड़े।
तभी मुंडेर पर आकर एक कौआ कांव कांव करने लगा।
“नानी, लगता है इसे भी कहानी सुननी है”-- सोनू ने नमकीन के कुछ टुकड़े उस कौवे की ओर डालते हुए कहा।
“नहीं, नहीं। इसे मुंह लगाने की कतई ज़रूरत नहीं है। यह तो बहुत ही दुष्ट कौआ है। इसे अपने किये की काफ़ी सज़ा मिल चुकी है। देखते नहीं इसकी चोंच में घाव का कितना बड़ा निशान है”-- नानी ने बताया।
“इसके ये घाव कैसे हो गया नानी?”
मोनू ने कौतुहलवश पूछा।
आज मैं तुम दोनों को इसी दुष्ट कौवे की कहानी सुनाउंग़ी। पिछली बार गर्मी में जब तुम दोनों आये थे, उसके कुछ दिन बाद ही सामने वाले नीम के पेड़ पर एक घोंसले में गौरैय्या ने दो अंडे दिये। जब उन अंडों से प्यारे-प्यारे बच्चे निकले तो इस कौए की नीयत खराब हो गयी। सुबह-शाम वह यही सोचने लगा कि गौरैय्या के इन बच्चों को कैसे खाया जाये। कौआ गौरेय्या से कोई डरता तो था नहीं, अत: एक दिन गौरेय्या के घोंसले के पास वाली डाल पर जाकर बैठ गया और सीधे-सीधे बोल पड़ा- “गौरैय्या, मैं तेरे बच्चों को खाना चाहता हूं।”
गौरेय्या पहले तो बहुत डरी, पर उसने हिम्मत और दिमाग से काम लिया।
“ठीक है, खा लेना मेरे बच्चों को, पर यह भी तो देखो कि बच्चे कितने मुलायम हैं और तुम्हारी चोंच। न जाने कहां-कहां की गंदगी इस पर लगी हुई है। जाओ पहले तालाब में अपनी चोंच धोकर आओ।”
कौए को लगा, ये तो बड़ा आसान है। वह उड़कर तालाब के किनारे पहुंचा और अपनी चोंच पानी में डालकर धोने लगा। तभी तालाब ने उसे डांट दिया-“खबरदार, जो मेरे सारे पानी को अपनी गंदी चोंच से गंदा किया। जाओ पहले कोई बर्तन ले आओ। उसमें अलग से पानी लेकर तुम अपनी चोंच धो सकते हो।”
कौआ तुरंत उड़कर बर्तन के पास गया-
बर्तन बर्तन, आओ आओ
मेरे साथ चले तुम आओ
लाऊंगा मैं तुममें पानी
धोऊं अपनी चोंच
खाऊं कैसे गौरेय्या को
यही रहा मैं सोच।
बर्तन ने कहा,“कौए भाई मैं तो चलने को तैयार हूँ, पर मेरी तली में एक छेद है। उसे चिकनी मिट्टी से भर लो, तो मैं तुम्हारे काम आ सकता हूँ”।
कौआ दौड़ा दौड़ा मिट्टी के पास गया- वहाँँ जाकर कौए ने क्या किया, क्या उसे गौरेया के बच्चे मिले, क्या वह उन्हें खा पाया, यह सारी जिज्ञासा जानने के लिए आगे की कहानी आॅडियो के माध्यम से सुनिए...
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दिव्य दृष्टि,
बाल कहानी
जीवन यात्रा जून 1957 से. भोपाल में रहने वाला, छत्तीसगढ़िया गुजराती. हिन्दी में एमए और भाषा विज्ञान में पीएच.डी. 1980 से पत्रकारिता और साहित्य से जुड़ाव. अब तक देश भर के समाचार पत्रों में करीब 2000 समसामयिक आलेखों व ललित निबंधों का प्रकाशन. आकाशवाणी से 50 फ़ीचर का प्रसारण जिसमें कुछ पुरस्कृत भी. शालेय और विश्वविद्यालय स्तर पर लेखन और अध्यापन. धारावाहिक ‘चाचा चौधरी’ के लिए अंशकालीन पटकथा लेखन. हिन्दी गुजराती के अलावा छत्तीसगढ़ी, उड़िया, बँगला और पंजाबी भाषा का ज्ञान. संप्रति स्वतंत्र पत्रकार।
संपर्क:
डॉ. महेश परिमल, टी-3, 204 सागर लेक व्यू होम्स, वृंदावन नगर, अयोघ्या बायपास, भोपाल. 462022.
ईमेल -
parimalmahesh@gmail.com
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