शुक्रवार, 13 मई 2016
कहानी - तीन जोड़ी आँँखें - लक्ष्मी यादव
कहानी का अंश... उदास और सहमी हवाओं ने घर में एक बार फिर डेरा डाल दिया। घर में सन्नाटा है, तूफ़ान से मची तबाही के मंज़र बीती रात के बाद बासी होकर सुस्ताने लगे हैं ये तूफ़ान किसी प्राकृतिक आपदा का हिस्सा नहीं था ये तो मानवीय आपदा का हिस्सा था जिसमें सबसे ज्यादा नुकसान तो उन तीन जोड़ी आँखों का हुआ था जो रात से अब दोपहरी तक रो रोकर पथरा गयी थी , किसी डरावनी आशंका की छाप लिए तीन जोड़ी आँखें खिड़की झरोखों पर गड़ी हुई उम्मीद के एक टुकड़े को तलाश रही हैं। रात भर जागी आँखें, पलकें झपकती तो हैं लेकिन नींद का अंश मात्र भी पलक के किसी मुहाने को छूकर नहीं गुज़रता, अंजाना डर पल भर भी सुस्ताने नहीं देता। तीनों दिलों में कुछ सवाल धड़क रहे हैं .....माँ कहाँ होगी ? किस हाल में होगी ? रात को टूटी चूड़ियों से घायल उसके हाथों में किसी ने मरहम लगाया होगा या नहीं ? माँ वापस आएगी ? या फिर कही ....? कई सवालों से घिरी आँखें एक दूसरे की पुतलियों में झांककर आशा की बूँद खोजने लगती हैं और अपने मन चाहे प्रतिउत्तर न मिलने पर एक दूसरे से आँखें चुराने लगती हैं।
14 साल की बड़ी वाली कनिका की आँख से फिर एक बूंद बरसी और उसकी अंगुलिओं के पोरों पर गिर पड़ी, बूंद के नमक से घायल अंगुली सिहर उठी... उसे याद आया अभी अभी ही तो वो माँ के कमरे से उसकी टूटी चूड़ियाँ बुहार कर आई थी शायद माँ की उन लाल हरी चूड़ियों का कोई नन्हा टुकड़ा होगा जो ममता वश कनिका की अँगुलियों के पोरों में गड़ गया था और अब उसका अहसास उसे हुआ था। कनिका ने हाथ पानी से धोया और फिर आकर अपनी आंखें इंतजार करती दो जोड़ी आँखों में शामिल कर दी। 7 साल का बबलू इस बार अपने सब्र के बांध को टूटने से रोक नहीं पाया। रात और सुबह की तरह अब फिर से बबलू बिलख कर रो पड़ा,कनिका ने बबलू को सीने से लगा लिया जब बबलू की सिसकी बंद हुई तो 5 साल की पूर्वी ने रोना शुरू कर दिया कनिका ने उसको भी बड़ी मुश्किल से चुप कराया। बबलू ने इस बार आँखों से नहीं बल्कि कहकर साफ़ साफ़ अपनी दीदी से पूछ ही लिया .... बबलू – दीदी, माँ कब आएगी ? सुबह से दोपहर हो गयी अब शाम होने को आई,आखिर माँ आती क्यूँ नहीं? कहां गयी है माँ ?
भाई के सवालों पर पूर्वी के चेहरे के भाव ऐसे थे जैसे वो खुद भी कनिका से यही सवाल पूछ रही हो।
कनिका भाई के सवालों का क्या जवाब देती उसका मन तो खुद ही इन सवाल में खोया था और जवाब तो कही ढूँढने से भी नहीं मिल रहा था। जवाब की उम्मीद में तकते बबलू और पूर्वी को कनिका ने कह दिया कि “माँ बस आती होगी,गुस्से में बहुत दूर तक चली गयी थी न! बबलू तुमको तो याद है हम तुम उनके पीछे कितनी दूर तक गये थे, उनको मनाने .. बात बीच में काटते हुए बबलू बोला- लेकिन दीदी माँ ने तुमको और मुझे पत्थर दिखाकर क्यूँ भगाया ? अपने साथ चलने क्यूँ नहीं दिया ?अगर हम साथ जाते तो उनको मनाकर ले आते न ?मै उनको शक्तिमान के गंगाधर की एक्टिंग करके दिखाता और वो हंस देती अगर हंस देती तो मान जाती न ? हमारे साथ आ जाती माँ या हमको अपने साथ ले जाती, अब कहाँ जाकर ढूँढूं? आगे की कहानी ऑडियो की मदद से जानिए...
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दिव्य दृष्टि
जीवन यात्रा जून 1957 से. भोपाल में रहने वाला, छत्तीसगढ़िया गुजराती. हिन्दी में एमए और भाषा विज्ञान में पीएच.डी. 1980 से पत्रकारिता और साहित्य से जुड़ाव. अब तक देश भर के समाचार पत्रों में करीब 2000 समसामयिक आलेखों व ललित निबंधों का प्रकाशन. आकाशवाणी से 50 फ़ीचर का प्रसारण जिसमें कुछ पुरस्कृत भी. शालेय और विश्वविद्यालय स्तर पर लेखन और अध्यापन. धारावाहिक ‘चाचा चौधरी’ के लिए अंशकालीन पटकथा लेखन. हिन्दी गुजराती के अलावा छत्तीसगढ़ी, उड़िया, बँगला और पंजाबी भाषा का ज्ञान. संप्रति स्वतंत्र पत्रकार।
संपर्क:
डॉ. महेश परिमल, टी-3, 204 सागर लेक व्यू होम्स, वृंदावन नगर, अयोघ्या बायपास, भोपाल. 462022.
ईमेल -
parimalmahesh@gmail.com
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