सोमवार, 30 मई 2016
मौत के आगोश में एक कश जिंदगी का... डॉ. महेश परिमल
विश्व धूम्रपान निषेध दिवस / अंतर्राष्ट्रीय तंबाकू निषेध दिवस को तम्बाकू से होने वाले नुक़सान को देखते हुए साल 1987 में विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के सदस्य देशों ने एक प्रस्ताव द्वारा 7 अप्रैल 1988 से मनाने का फ़ैसला किया था। इसके बाद साल हर साल की 31 मई को तम्बाकू निषेध दिवस मनाने का फ़ैसला किया गया और तभी से 31 मई को तम्बाकू निषेध दिवस मनाया जाने लगा। इसी संदर्भ में डॉ. महेश परिमल का आलेख ‘मौत के आगोश में एक कश जिंदगी का’ यहाँ प्रस्तुत है। इसे आप ऑडियो की मदद से सुन सकते हैं। लेख के बारे में... देवानंद की एक फिल्म बरसों पहले आई थी, जिसमें वे गाते हुए कहते हैं... मैं हर फिक्र को धुएँ में उड़ाता चला गया...’ वह समय ऐसा था, जब हर फिक्र को धुएँ में उड़ाया जा सकता था, पर अब ऐसी स्थिति नहीं है, अब तो लोग इससे भी आगे बढ़कर न जाने किस-किस तरह के नशे का सेवन करने लगे हैं।हमारे समाज में पुरुष यदि धूम्रपान करे, तो उसे आजकल बुरा नहीं माना जाता, किंतु यदि महिलाओं के होठों पर सुलगती सिगरेट देखें, तो एक बार लगता है कि ये क्या हो रहा है। पर सच यही है कि पूरे विश्व में धूम्रपान से हर साल करीब ५० लाख मौतें होती हैं, उसमें से ८ से ९ लाख लोग भारतीय होते हैं। इसके बाद भी हमारे देश में धूम्रपान करने वाली महिलाओं की संख्या में लगातर वृद्धि हो रही है।वे भी अब हर फिक्र को धुएँ में उड़ा रही हैं। कार्यालयों में ऊँचा पद सँभालने वाली महिलाओं, क्लब-पार्टी में युवतियों के मुँह से निकलने वाले धुएँ के छलले अब आम होने लगे हैं।यह उनके लिए स्टाइल स्टेटमेंट बन गया है। इसके पीछे होने को तो बहुत से कारण हो सकते हैं, पर सबसे उभरकर आने वाला कारण है काम का दबाव।आपाधापी और प्रतिस्पर्धा के इस युग में आजकल महिलाओं पर भी काम का दबाव बढ़ गया है। घर और ऑफिस दोनों जिम्मेदारी निभाते हुए वह इतनी थक जाती है कि शरीर को ऊर्जावान बनाने के लिए वह न चाहते हुए भी धूम्रपान का सहारा लेने लगी है। महानगर में रहने वाली युवतियाँ तो काम के दबाव में ऐसा कर रही हैं, यह समझ में आता है। इसके अलावा ऐसी युवतियों की संख्या भी बहुत अधिक है, जिन्होंने इसे केवल शौक के तौर पर अपनाया। पहले तो स्कूल-कॉलेज में मित्रों के बीच साथ देने के लिए एक सुट्टा लगा लिया, फिर धीरे-धीरे यह उनकी आदत में मिल हो गया।उधर पार्टियों में मिल होने वाली महिलाएँ एक-दूसरे की देखा-देखी में या फिर अपनी मित्र का साथ देने के लिए या फिर गँवार होने के आरोप से बचने के लिए केवल ''ट्राय`` के लिए अपने होठों के बीच सिगरेट रखती हैं, धीरे-धीरे यह नशा छाने लगता है। अपनी पसंदीदा अभिनेत्रियों को टीवी या फिल्म में जब युवतियाँ देखती हैं कि वे भी तनाव के क्षणों में किस तरह से सिगरेट के कश लगाती हैं, तब हम भी क्यों न तनाव में ऐसा करें? आज तो हालात और भी अधिक बुरे हैं। धूम्रपान से जुड़ी इन्हीं बुराइयों पर प्रकाश डालता है यह आलेख। आगे का लेख ऑडियो की मदद से सुनिए...
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दिव्य दृष्टि,
लेख
जीवन यात्रा जून 1957 से. भोपाल में रहने वाला, छत्तीसगढ़िया गुजराती. हिन्दी में एमए और भाषा विज्ञान में पीएच.डी. 1980 से पत्रकारिता और साहित्य से जुड़ाव. अब तक देश भर के समाचार पत्रों में करीब 2000 समसामयिक आलेखों व ललित निबंधों का प्रकाशन. आकाशवाणी से 50 फ़ीचर का प्रसारण जिसमें कुछ पुरस्कृत भी. शालेय और विश्वविद्यालय स्तर पर लेखन और अध्यापन. धारावाहिक ‘चाचा चौधरी’ के लिए अंशकालीन पटकथा लेखन. हिन्दी गुजराती के अलावा छत्तीसगढ़ी, उड़िया, बँगला और पंजाबी भाषा का ज्ञान. संप्रति स्वतंत्र पत्रकार।
संपर्क:
डॉ. महेश परिमल, टी-3, 204 सागर लेक व्यू होम्स, वृंदावन नगर, अयोघ्या बायपास, भोपाल. 462022.
ईमेल -
parimalmahesh@gmail.com
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