रविवार, 15 मई 2016
बाल कहानी - बादल परी का जन्मदिवस
कहानी का अंश... आओ बच्चो आज मैं तुम्हें सुनाती हूँ, तारों की कहानी, अंबर के प्यारों की कहानी। चंदामामा के दुलारों की कहानी, चाँदनी के गाँव में रहते सितारों की कहानी। शाम गहरा रही थी, हवा लहरा रही थी। पंछी पर फैलाए दूर गगन में उड़ रहे थे, जानवर भी अपने घर की ओर मुड़ रहे थे। ऐसे में चमका था एक तारा। अपनी आँखें खोलकर टिमटिम करता था वो प्यारा। दूर-दूर तक देखा गगन में, नजर न आया कोई दूसरा तारा गगन में। ओह… बड़ी जल्दी मैं तो आया, घर में रहना मुझको न भाया। पर यहाँ आकर भी मैं तो पछताया, साथी कोई मैंने न पाया। इतने में उड़ता-उड़ता बादल आया, हवा के झौंके से तारे से जा टकराया। टकराया तो भले टकराया, पर बादल ने तो तारे को अपने अंदर छिपाया।
उफ… कैसा है ये पगला बादल, अभी कर देता मुझको घायल। हवा ने भी दिया इसका साथ, दोनों ने थामा एक-दूजे का हाथ। तभी तो मुझ पर हमला बोला है, दोनों ने मिलकर दुश्मनी का द्वार खोला है। ठहर जाओ, ठहर जाओ… कुछ देर… साथी मुझको भी मिल जाएगा, फिर लड़ने में मजा आ जाएगा। नन्हा टिमटिम करता था दूसरे तारों का इंतजार, चाँदनी के गाँव में झाँकता था बार-बार। कोई तारा नजर न आया, दुख और गुस्से के मारे उसको रोना आया।
इंतजार में हुई बहुत ही देर, हवा के संग बादल भी गया मुँह फेर। रह गया वो बिलकुल अकेला, न था आसपास कोई मेला। बोरियत से भरी थी शाम पलकें मूँद-मूँद जाती थी, कभी बादलों के झरोखों से बूँद-बूँद आती थी। तभी झाँकने लगा एक और तारा, देख उसे खुश हुआ टिमटिम तारा। रंगबिरंगी टोपी से सजा हुआ था वो दुलारा, टिमटिम ने आवाज देकर उसे पुकारा।
उसके पास आते ही टिमटिम ने लगाई सवालों की झड़ियाँ, खोलना चाहता था वो देर से आने की सारी कड़ियाँ। कहाँ थे अब तक? क्यों नहीं आए थे अब तक? बोलो टोपी कहाँ से पाई, इसे पहनते हुए क्या याद न मेरी आई? और तारों की फौज कहाँ हैं? बिना उनके मस्ती और मौज कहाँ है? जल्दी बताओ, जल्दी से बताओ, चुप रहकर मुझको न गुस्सा दिलाओ।
लो भला? मैं क्यों गुस्सा तुम्हें दिलाने आया, मैं तो अच्छी खबर हूँ लाया। बादल नगर में तारों की महफिल सजी है, ढोल-नगाड़े और शहनाई बजी है। गप्पम-शप्पम, धूम-धड़क्कम, उमड़म-घुमड़म, शोर-बकोर, हँसी-ठिठोली, आँख-मिचौली का चल रहा है दौर, खुशियाँ ही खुशियाँ छाई है ठौर-ठौर। सभी खुश होकर झूमते-नाचते-गाते हैं, बस तुमको ही वहाँ नहीं पाते हैं। खेलते-खेलते मैं पहुँचा था बादल महल की छत पर, ऐसे में दूर से तुम्हें देखा पथ पर। झट नीचे उतर आया, दौड़ता-दौड़ता तुम तक आया। भला आज यहाँ अकेले-अकेले क्या करते हो? क्या हम सभी के बीच आने से डरते हो? बादल नगर में सभी कर रहे हैं तुम्हारा इंतजार ओर तुमने सजाया है यहाँ एकांत का संसार? आगे की कहानी जानिए ऑडियो की मदद से...
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दिव्य दृष्टि,
बाल कहानी
जीवन यात्रा जून 1957 से. भोपाल में रहने वाला, छत्तीसगढ़िया गुजराती. हिन्दी में एमए और भाषा विज्ञान में पीएच.डी. 1980 से पत्रकारिता और साहित्य से जुड़ाव. अब तक देश भर के समाचार पत्रों में करीब 2000 समसामयिक आलेखों व ललित निबंधों का प्रकाशन. आकाशवाणी से 50 फ़ीचर का प्रसारण जिसमें कुछ पुरस्कृत भी. शालेय और विश्वविद्यालय स्तर पर लेखन और अध्यापन. धारावाहिक ‘चाचा चौधरी’ के लिए अंशकालीन पटकथा लेखन. हिन्दी गुजराती के अलावा छत्तीसगढ़ी, उड़िया, बँगला और पंजाबी भाषा का ज्ञान. संप्रति स्वतंत्र पत्रकार।
संपर्क:
डॉ. महेश परिमल, टी-3, 204 सागर लेक व्यू होम्स, वृंदावन नगर, अयोघ्या बायपास, भोपाल. 462022.
ईमेल -
parimalmahesh@gmail.com
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