शनिवार, 28 मई 2016

पिता के पत्र पुत्री के नाम - 14

लेख के बारे में... मुझे भय है कि मेरे खत कुछ पेचीदा होते जा रहे हैं। लेकिन अब जिंदगी भी तो पेचीदा हो गई है। पुराने जमाने में लोगों की जिंदगी बहुत सादी थी और अब हम उस जमाने पर आ गए हैं जब जिंदगी पेचीदा होनी शुरू हुई। अगर हम पुरानी बातों को जरा सावधानी के साथ जाँचें और उन तब्दीलियों को समझने की कोशिश करें जो आदमी की जिंदगी और समाज में पैदा होती गईं, तो हमारी समझ में बहुत-सी बातें आ जाएँगी। अगर हम ऐसा न करेंगे तो हम उन बातों को कभी न समझ सकेंगे जो आज दुनिया में हो रही हैं। हमारी हालत उन बच्चों की-सी होगी जो किसी जंगल में रास्ता भूल गए हों। यही सबब है कि मैं तुम्हें ठीक जंगल के किनारे पर लिए चलता हूँ ताकि हम इसमें से अपना रास्ता ढूँढ़ निकालें। तुम्हें याद होगा कि तुमने मुझसे मसूरी में पूछा था कि बादशाह क्या हैं और वह कैसे बादशाह हो गए। इसलिए हम उस पुराने जमाने पर एक नजर डालेंगे जब राजा बनने शुरू हुए। पहले-पहल वह राजा न कहलाते थे। अगर उनके बारे में कुछ मालूम करना है तो हमें यह देखना होगा कि वे शुरू कैसे हुए। मैं जातियों के बनने का हाल तुम्हें बतला चुका हूँ। जब खेती-बारी शुरू हुई और लोगों के काम अलग-अलग हो गए तो यह जरूरी हो गया कि जाति का कोई बड़ा-बूढ़ा काम को आपस में बाँट दे। इसके पहले भी जातियों में ऐसे आदमी की जरूरत होती थी जो उन्हें दूसरी जातियों से लड़ने के लिए तैयार करे। अक्सर जाति का सबसे बूढ़ा आदमी सरगना होता था। वह जाति का बुजुर्ग कहलाता था। सबसे बूढ़ा होने की वजह से यह समझा जाता था कि वह सबसे ज्यादा तजरबेदार और होशियार है। यह बुजुर्ग जाति के और आदमियों की ही तरह होता था। वह दूसरों के साथ काम करता था और जितनी खाने की चीजें पैदा होती थीं वे जाति के सब आदमियों में बाँट दी जाती थीं। हर एक चीज जाति की होती थी। आजकल की तरह ऐसा न होता था कि हर एक आदमी का अपना मकान और दूसरी चीजें हों और आदमी जो कुछ कमाता था वह आपस में बाँट लिया जाता था क्योंकि वह सब जाति का समझा जाता था। जाति का बुजुर्ग या सरगना इस बाँट-बखरे का इंतजाम करता था। आगे की जानकारी ऑडियो की मदद से प्राप्त कीजिए...

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