शनिवार, 21 मई 2016
कहानी - रोटियाँ - उर्मिला शिरीष
कहानी का अंश...
यह तीसरा दिन था जब वह रोटियाँ वापस ले जा रही थी। रोटियाँ बैग में थीं... जिन्हें वह कभी अलमारी में रख चुकी थी तो कभी टेबल पर तो कभी हाथ में, लेकिन हर बार कोई आ जाता और वह पैकेट छुपा लेती। उसे अफसोस हो रहा था कि रोटियाँ सामने रखी हैं और वह रोटियों के लिए उसके आसपास मँडरा रहा है। यहाँ तक कि उसकी क्लास में आकर बार-बार झाँकता। कभी किसी की फटकार पड़ती और वह दुम दबाकर भाग जाता। उसका आना हवा की तरह होता बिना किसी आहट के... आवाज के। कई बार तो वह लहर की तरह दिखाई देता... उठी और छपाक से विलीन हो गई। उसका यूँ बार-बार आना सबको झुँझलाहट से भर रहा था... इतना गंदा... मरियल... बीमार, हड़ीला कुत्ता पढ़े-लिखे, साफ-सुथरे, सुंदर, सजे-धजे, खिलखिलाते, इठलाते अपने-अपने स्टेट्स में जीते प्रदर्शित करते, ज्योतिष के अनुसार प्रतिक्षण 'कलर कांबीनेशन' की वाहवाही लूटते अभिजात्य समाज के बीच क्या कर रहा है।
'पता नहीं ये चपरासी क्या करते रहते हैं। इनसे कुत्ते भी नहीं भगाए जाते... बस अपना-अपना ग्रुप बनाकर गप्पें लगाते रहते हैं। कामचोर कहीं के। पूरा बरामदा पॉटी और पेशाब से भरा पड़ा है। एक बार तो वे सब स्टाफ रूप में बंद हो गए थे और इतनी गंदगी मचा दी थी कि घर से फिनायल और अगरबत्ती लानी पड़ी थी।' नगमा ने गुस्से में होठ बिचकाते हुए कहा।
'वो ऐसे ही थोड़ी न आता है।' रंजना ने रहस्य खोलते हुए कहा।
'तोऽऽ...।'
'वो किसी से कुछ माँगने आता है।'
'क्या? ...क्या माँगने आता है।'
'रोटियाँ।'
'किससे... कौन ये पुण्य कमाने का नाटक दिखाता है यहाँ पर! मैं भी तो सुनूँ।'
'मैडम वर्मा! मैडम वर्मा रोज उसके लिए रोटियाँ लाती हैं। अब उसको आदत जो पड़ गई है बैठे-बैठाए खाने की। कामचारे, अलाल कहीं का'
'बैठे-बैठाए क्या केवल कुत्ता खा रहा है।' मुझे लगता है।
'यही तो मैं सोचूँ कि वह यहाँ क्यों मँडराता रहता है। हम लोग तो कभी घास डालते नहीं।' मिसेज सक्सेना ने लिपस्टिक लगे होठों को मरोड़ते हुए कहा।
'बेचारा भूखा रहता है। देखती नहीं उसकी हालत।' मिसेज भंडारी ने चिच्च... चिच्च करते हुए सहानुभूति दिखाने का अवसर न जाने दिया। आगे की कहानी जानिए ऑडियो की मदद से...
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कहानी,
दिव्य दृष्टि
जीवन यात्रा जून 1957 से. भोपाल में रहने वाला, छत्तीसगढ़िया गुजराती. हिन्दी में एमए और भाषा विज्ञान में पीएच.डी. 1980 से पत्रकारिता और साहित्य से जुड़ाव. अब तक देश भर के समाचार पत्रों में करीब 2000 समसामयिक आलेखों व ललित निबंधों का प्रकाशन. आकाशवाणी से 50 फ़ीचर का प्रसारण जिसमें कुछ पुरस्कृत भी. शालेय और विश्वविद्यालय स्तर पर लेखन और अध्यापन. धारावाहिक ‘चाचा चौधरी’ के लिए अंशकालीन पटकथा लेखन. हिन्दी गुजराती के अलावा छत्तीसगढ़ी, उड़िया, बँगला और पंजाबी भाषा का ज्ञान. संप्रति स्वतंत्र पत्रकार।
संपर्क:
डॉ. महेश परिमल, टी-3, 204 सागर लेक व्यू होम्स, वृंदावन नगर, अयोघ्या बायपास, भोपाल. 462022.
ईमेल -
parimalmahesh@gmail.com
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Nice one.
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