बुधवार, 25 मई 2016
लघुकथाएँ - मनोज चौहान
शहर का डॉक्टर...लघुकथा का अंश..
राजवीर की प्रमोशन हुई तो उसे मैनेजमेंट ट्रेनिंग के लिए कंपनी की ओर से शहर भेज दिया गया। वो पेशे से एक इलेक्ट्रिकल इंजिनियर था। पहाड़ी प्रदेश में ही पले – बढे राजवीर को शहर का गर्म और प्रदूषित बातावरण रास नहीं आया और उसे सांस से सम्बंधित कुछ समस्या हो गई। ट्रेनिंग इंस्टीटूट से एक दिन की छुट्टी लेकर वो एक डॉक्टर की क्लिनिक पर चेक - अप करवाने गया। उसके दो सहकर्मी साथी भी उसके साथ थे।
अभी वो क्लिनिक में प्रविष्ट हुए ही थे कि इतने में एक देहाती सी दिखने वाली घरेलु महिला अपने खून से लथपथ बच्चे को उठाकर अन्दर आई। वो एकदम डरी और सहमी हुई सी थी। उसका करीब 2 साल का बच्चा अचेत अवस्था में था। राजवीर, उसके दोस्त और क्लिनिक का स्टाफ सभी उस औरत और बच्चे की तरफ देखने लगे। उस महिला के साथ एक व्यक्ति भी आया था जिसने बताया कि ये महिला सड़क के किनारे अपने बच्चे को उठाये रो रही थी। सड़क क्रॉस करने की कोशिश में किसी मोटरसाइकिल वाले ने टक्कर मार दी और वो भाग खड़ा हुआ। महिला बच्चे समेत नीचे गिर गई थी और बच्चे के सिर पर गंभीर चोट आ गई थी।
डॉक्टर ने बच्चे को हिलाया – डुलाया और उसके दिल की धड़कन चैक की। एक क्षण के लिए तो लग रहा था की जैसे उसमें जान ही नहीं है। महिला का रुदन जैसे राजवीर के हृदय को चीरता सा जा रहा था। डॉक्टर ने बच्चे का घाव देखा और उसे साफ़ किया। इतने में बच्चा होश में आकर रोने लगा तो महिला की जान में जान आई। डॉक्टर ने उसके सिर पर तीन टांके लगाये।
बच्चे की मरहम पट्टी कर डॉक्टर ने बिल उस महिला के हाथ में थमा दिया। जिसे देखकर वो देहाती महिला अव्वाक रह गई। महिला के साथ आया हुआ व्यक्ति कुछ पैसे देने लग गया। राजवीर और उसके दोस्त पहले ही डॉक्टर का बिल चुकाने का मन बना चुके थे। सबने मिलकर बिल चुका दिया। मगर उस शहर के डॉक्टर में इतनी भी करुणा नहीं थी की वो कम से कम अपनी फीस ही छोड़ देता, मरहम – पट्टी और दवा की बात तो और थी। राजवीर सोच रहा था क्या इसी को शहर कहते है उसके भीतर विचारों का एक असीम सागर हिलोरे ले रहा था। विचारों की इसी उहा – पोह में कब उसकी टर्न आ गई , उसे पता ही नहीं चला। डॉक्टर से बैठने का संकेत पाकर वो रोगी कुर्सी पर बैठ गया। डॉक्टर ने चैक – अप शुरू कर दिया था। ऐसी ही अन्य लघुकथा का आनंद ऑडियो की मदद से लीजिए... यदि आपको लघुकथाएँ पसंद आती हैं, तो आप सीधे लेखक को ही दूरभाष के माध्यम से बधाई प्रेषित कर सकते हैं। संपर्क - 09418036526
लेबल:
दिव्य दृष्टि,
लघुकथा
जीवन यात्रा जून 1957 से. भोपाल में रहने वाला, छत्तीसगढ़िया गुजराती. हिन्दी में एमए और भाषा विज्ञान में पीएच.डी. 1980 से पत्रकारिता और साहित्य से जुड़ाव. अब तक देश भर के समाचार पत्रों में करीब 2000 समसामयिक आलेखों व ललित निबंधों का प्रकाशन. आकाशवाणी से 50 फ़ीचर का प्रसारण जिसमें कुछ पुरस्कृत भी. शालेय और विश्वविद्यालय स्तर पर लेखन और अध्यापन. धारावाहिक ‘चाचा चौधरी’ के लिए अंशकालीन पटकथा लेखन. हिन्दी गुजराती के अलावा छत्तीसगढ़ी, उड़िया, बँगला और पंजाबी भाषा का ज्ञान. संप्रति स्वतंत्र पत्रकार।
संपर्क:
डॉ. महेश परिमल, टी-3, 204 सागर लेक व्यू होम्स, वृंदावन नगर, अयोघ्या बायपास, भोपाल. 462022.
ईमेल -
parimalmahesh@gmail.com
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