सोमवार, 2 मई 2016
गिजुभाई की बाल कहानी - 4
टिड्डा जोशी - कहानी का अंश...
एक थे जोशी। वे ज्योतिष तो जानते नहीं थे, फिर भी दिखावा करके कमाते और खाते थे। एक दिन वे अपने गांव से दूसरे गांव जाने के लिए रवाना हुए। रास्ते में उन्होंने देखा कि दो सफेद बैल एक खेत में चर रहे हैं। उन्होंने यह बात अपने ध्यान में रख ली।
जोशीजी गांव में पहुंचे और एक पटेल के घर ठहरे। वहां उनसे मिलने एक किसान आया। उसके साथ ही उसकी घरवाली भी आई। किसान ने जाशीजी से कहा, "जोशी महाराज! हमारे दो सफ़ेद बैल खो गए हैं। क्या आप अपना पोथी-पत्रा देखकर हमको बता सकेंगे कि वे किस तरफ गए हैं?"
जोशीजी कुछ बुदबुदाए। फिर एक बहुत पुराना सड़ा-सा पंचांग निकालकर देखा और कहा, "पटेल! तुम्हारे बैल पश्चिमी सिवान वाले फलां खेत में हैं। वहां जाकर उनको ले आओ।" जब पटेल उस खेत में पहुंचा, तो वहां उसे अपने बैल मिल गए। पटेल बहुत खुश हुआ और उसने जोशीजी को भी खुश कर दिया।
दूसरे दिन जोशीजी की परीक्षा करने के लिए मकान-मालिक ने उनसे पूछा, "महाराज" अगर आपकी ज्योतिष विद्या सच्ची है, तो बजाइए कि आज हमारे घर में कितनी रोटियां बनी थीं? जोशीजी के पास कोई काम तो था नहीं, इसलिए तबे पर डाली जाने वाली रोटियों को वे गिनते रहे थे। गिनती तेरह तक पहुंची थी। इसलिए अपनी विद्या का थोड़ा दिखावा करने के बादउन्होंने कहा, "पटेल! आज तो आपके घर में तेरह रोटियां बनी थीं।" सुनकर पटेल को बड़ा अचरज हुआ।
इन दो घटनाओं से जोशी महाराज को नाम सारे गांव में फैल गया, और गांव के लोग उनके पास ज्योतिष-संबंधी बातें पूछने के लिए आने लगे। उन्हीं दिनों राजा की रानी का नौलखा हार खो गया। जब राजा ने जोशीजी की कीर्ति सुनी,तो उन्होंने उनको बुलवाया।
राजा ने जोशी से कहा, "सुनो, टिड्डा महाराज! अपने पोथी-पत्र में देखकर बताओ कि रानी का हार कहां है या उसको कौन ले गया है? अगर हार मिल गया तो हम आपको निहाल कर देंगे।"
जोशीजी घबराए। गहरे सोच में पड़ गए। राजा ने कहा, "आज की रात आप यहां रहिए। और सारी रात सोच-समझकर सुबह बताइए। याद रखिए कि अगर आपकी बात गलत निकली, तो आपको कोल्हु में पेरकर आपका तेल निकलवा लूंगा।"
रात ब्यालू करने के बाद टिड्डा जोशी तो बिस्तर में लेट गए। लेकिन उन्हें नहीं आई। मन में डर था कि सबेरा होते ही राजा कोल्हु में पेराकर तेल निकालेगा। वह पड़े-पड़े नींद को बुला रहे थे। कह रहे थे, "ओ नींद रानी आओ! ओ, नींद रानी आओ!"
बात यह थी कि राजा की रानी के पास नींद रानी नाम की एक दासी रहती थी। और उसी ने रानी का हार चुराया था। जब उस दासी ने टिड्डा जोशी को नींद रानी आओ, नींद रानी आओ’ कहते सुना, तो वह एकदम घबरा गई। उसे लगा कि अपनी विघा कि बल से ही डिड्डा जोशी को उसका नाम मालूम हो गया है।
बच निकलने के विचार से नींदरानी ने हार टिड्डा जोशीजी को सौंप देने का निश्चय कर लिया। वह हार लेकर जोशीजी के पास पहुंची और बोली, "महाराज! यह चुराना हुआ हार आप संभालिए। अब मेरा नाम किसी को मत बताइए। हार का जो करना हो, कीजिए।"
टिड्डा जोशी मन-ही-मन खुश हो गए। और बोले, "यह अच्छा हुआ। फिर टिड्डा जोशी ने नींद रानी से कहा, "सुनो यह हार अपनी रानीजी के कमरे में पलंग के नीचे रख आओ।"
कहानी में आगे क्या हुआ, ये जानने के लिए ऑडियो की मदद लीजिए...
लेबल:
दिव्य दृष्टि,
बाल कहानी
जीवन यात्रा जून 1957 से. भोपाल में रहने वाला, छत्तीसगढ़िया गुजराती. हिन्दी में एमए और भाषा विज्ञान में पीएच.डी. 1980 से पत्रकारिता और साहित्य से जुड़ाव. अब तक देश भर के समाचार पत्रों में करीब 2000 समसामयिक आलेखों व ललित निबंधों का प्रकाशन. आकाशवाणी से 50 फ़ीचर का प्रसारण जिसमें कुछ पुरस्कृत भी. शालेय और विश्वविद्यालय स्तर पर लेखन और अध्यापन. धारावाहिक ‘चाचा चौधरी’ के लिए अंशकालीन पटकथा लेखन. हिन्दी गुजराती के अलावा छत्तीसगढ़ी, उड़िया, बँगला और पंजाबी भाषा का ज्ञान. संप्रति स्वतंत्र पत्रकार।
संपर्क:
डॉ. महेश परिमल, टी-3, 204 सागर लेक व्यू होम्स, वृंदावन नगर, अयोघ्या बायपास, भोपाल. 462022.
ईमेल -
parimalmahesh@gmail.com
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