शनिवार, 14 मई 2016
पिता के पत्र पुत्री के नाम - 5
लेख के बारे में... मैंने तुम्हें पिछले खत में बतलाया था कि पहले दुनिया में बहुत नीचे दरजे के जानवर पैदा हुए और धीरे-धीरे तरक्की करते हुए लाखों बरस में उस सूरत में आए जो हम आज देखते हैं। हमें एक बड़ी दिलचस्प और जरूरी बात यह भी मालूम हुई कि जानदार हमेशा अपने को आसपास की चीजों से मिलाने की कोशिश करते गए। इस कोशिश में उनमें नई आदतें पैदा होती गईं और वे ज्यादा ऊँचे दरजे के जानवर होते गए। हमें यह तब्दीली या तरक्की कई तरह दिखाई देती है। इसकी मिसाल यह है कि शुरू-शुरू के जानवरों में हड्डियाँ न थीं लेकिन हड्डियों के बगैर वे बहुत दिनों तक जीवित न रह सकते थे इसलिए उनमें हड्डियाँ पैदा हो गईं। सबसे पहले रीढ़ की हड्डी पैदा हुई। इस तरह दो किस्म के जानवर हो गए हड्डीवाले और बेहड्डीवाले। जिन आदमियों या जानवरों को तुम देखती हो वे सब हड्डीवाले हैं!
एक और मिसाल लो। नीचे दरजे के जानवरों में मछलियाँ अंडे दे कर उन्हें छोड़ देती हैं। वे एक साथ हजारों अंडे देती हैं लेकिन उनकी बिल्कुल परवाह नहीं करतीं। माँ बच्चों की बिल्कुल खबर नहीं लेती। वह अंडों को छोड़ देती है और उनके पास कभी नहीं आती। इन अंडों की हिफाजत तो कोई करता नहीं, इसलिए ज्यादातर मर जाते हैं। बहुत थोड़े से अंडों से मछलियाँ निकलती हैं। कितनी जानें बरबाद जाती हैं! लेकिन ऊँचे दरजे के जानवरों को देखो तो मालूम होगा कि उनके अंडे या बच्चे कम होते हैं लेकिन वे उनकी खूब हिफाजत करते हैं। मुर्गी भी अंडे देती है लेकिन वह उन पर बैठती है और उन्हें सेती है। जब बच्चे निकल आते हैं तो वह कई दिन तक उन्हें चुगाती है। जब बच्चे बड़े हो जाते हैं तब माँ उनकी फिक्र छोड़ देती है।
इन जानवरों में और उन जानवरों में जो बच्चे को दूध पिलाते हैं बड़ा फर्क है। यह जानवर अंडे नहीं देते। माँ अंडे को अपने अंदर लिए रहती है और पूरे तौर पर बने हुए बच्चे जनती है। जैसे कुत्ता, बिल्ली या खरगोश। इसके बाद माँ अपने बच्चे को दूध पिलाती है, लेकिन इन जानवरों में भी बहुत-से बच्चे बरबाद हो जाते हैं। खरगोश के कई-कई महीनों के बाद बहुत-से बच्चे पैदा होते हैं लेकिन इनमें से ज्यादातर मर जाते हैं। लेकिन ऊँचे दरजे के जानवर एक ही बच्चा देते हैं और बच्चे को अच्छी तरह पालते-पोसते हैं जैसे हाथी। आगे की कहानी जानिए, ऑडियो के माध्यम से...
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दिव्य दृष्टि,
लेख
जीवन यात्रा जून 1957 से. भोपाल में रहने वाला, छत्तीसगढ़िया गुजराती. हिन्दी में एमए और भाषा विज्ञान में पीएच.डी. 1980 से पत्रकारिता और साहित्य से जुड़ाव. अब तक देश भर के समाचार पत्रों में करीब 2000 समसामयिक आलेखों व ललित निबंधों का प्रकाशन. आकाशवाणी से 50 फ़ीचर का प्रसारण जिसमें कुछ पुरस्कृत भी. शालेय और विश्वविद्यालय स्तर पर लेखन और अध्यापन. धारावाहिक ‘चाचा चौधरी’ के लिए अंशकालीन पटकथा लेखन. हिन्दी गुजराती के अलावा छत्तीसगढ़ी, उड़िया, बँगला और पंजाबी भाषा का ज्ञान. संप्रति स्वतंत्र पत्रकार।
संपर्क:
डॉ. महेश परिमल, टी-3, 204 सागर लेक व्यू होम्स, वृंदावन नगर, अयोघ्या बायपास, भोपाल. 462022.
ईमेल -
parimalmahesh@gmail.com
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