शनिवार, 21 मई 2016
पिता के पत्र पुत्री के नाम - 9
जबानों का आपस में रिश्ता...
लेख के बारे में... हम बतला चुके हैं कि आर्य बहुत-से मुल्कों में फैल गए और जो कुछ भी उनकी जबान थी उसे अपने साथ लेते गए। लेकिन तरह-तरह की आबोहवा और तरह-तरह की हालतों ने आर्यों की बड़ी-बड़ी जातियों में बहुत फर्क पैदा कर दिया। हर एक जाति अपने ही ढंग पर बदलती गई और उसकी आदतें और रस्में भी बदलती गईं। वे दूसरे मुल्कों में दूसरी जातियों से न मिल सकते थे, क्योंकि उस जमाने में सफर करना बहुत मुश्किल था, एक गिरोह दूसरे से अलग होता था। अगर एक मुल्क के आदमियों को कोई नई बात मालूम हो जाती, तो वे उसे दूसरे मुल्कवालों को न बतला सकते। इस तरह तब्दीलियाँ होती गई और कई पुश्तों के बाद एक आर्य जाति के बहुत-से टुकड़े हो गए। शायद वे यह भी भूल गए कि हम एक ही बड़े खानदान से हैं। उनकी एक जबान से बहुत-सी जबानें पैदा हो गईं जो आपस में बहुत कम मिलती-जुलती थीं।
लेकिन उनमें इतना फर्क मालूम होता था, उनमें बहुत से शब्द एक ही थे, और कई दूसरी बातें भी मिलती-जुलती थीं। आज हजारों साल के बाद भी हमें तरह-तरह की भाषाओं में एक ही शब्द मिलते हैं। इससे मालूम होता है कि किसी जमाने में ये भाषाएँ एक ही रही होंगी। तुम्हें मालूम है कि फ्रांसीसी और अंग्रेजी में बहुत-से एक जैसे शब्द हैं। दो बहुत घरेलू और मामूली शब्द ले लो, 'फादर' और 'मदर', हिंदी और संस्कृत में यह शब्द 'पिता' और 'माता' हैं। लैटिन में वे 'पेटर' और 'मेटर' हैं; यूनान में 'पेटर' और 'मीटर'; जर्मन में 'फाटेर' और 'मुत्तार'; फ्रांसीसी में 'पेर' और 'मेर' और इसी तरह और जबानों में भी। ये शब्द आपस में कितने मिलते-जुलते हैं! भाई बहनों की तरह उनकी सूरतें कितनी समान हैं! यह सच है कि बहुत-से शब्द एक भाषा से दूसरी भाषा में आ गए होंगे। हिंदी ने बहुत से शब्द अंग्रेजी से लिए हैं और अंग्रेज़ी ने भी कुछ शब्द हिंदी से लिए हैं। लेकिन 'फादर' और 'मदर' इस तरह कभी न लिये गए होंगे। ये नए शब्द नहीं हो सकते। शुरू-शुरू में जब लोगों ने एक दूसरे से बात करनी सीखी तो उस वक्त माँ-बाप तो थे ही, उनके लिए शब्द भी बन गए। इसलिए हम कह सकते हैं कि ये शब्द बाहर से नहीं आए। वे एक ही पुरखे या एक ही खानदान से निकले होंगे। और इससे हमें मालूम हो सकता है कि जो कौमें आज दूर-दूर के मुल्कों में रहती हैं और भिन्न-भिन्न भाषाएँ बोलती हैं वे सब किसी जमाने में एक ही बड़े खानदान की रही होंगी। तुमने देख लिया न कि जबानों का सीखना कितना दिलचस्प है और उससे हमें कितनी बातें मालूम होती हैं। अगर हम तीन-चार जबानें जान जाएँ तो और जबानों का सीखना आसान हो जाता है। आगे की जानकारी ऑडियो के माध्यम से प्राप्त कीजिए...
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दिव्य दृष्टि,
लेख
जीवन यात्रा जून 1957 से. भोपाल में रहने वाला, छत्तीसगढ़िया गुजराती. हिन्दी में एमए और भाषा विज्ञान में पीएच.डी. 1980 से पत्रकारिता और साहित्य से जुड़ाव. अब तक देश भर के समाचार पत्रों में करीब 2000 समसामयिक आलेखों व ललित निबंधों का प्रकाशन. आकाशवाणी से 50 फ़ीचर का प्रसारण जिसमें कुछ पुरस्कृत भी. शालेय और विश्वविद्यालय स्तर पर लेखन और अध्यापन. धारावाहिक ‘चाचा चौधरी’ के लिए अंशकालीन पटकथा लेखन. हिन्दी गुजराती के अलावा छत्तीसगढ़ी, उड़िया, बँगला और पंजाबी भाषा का ज्ञान. संप्रति स्वतंत्र पत्रकार।
संपर्क:
डॉ. महेश परिमल, टी-3, 204 सागर लेक व्यू होम्स, वृंदावन नगर, अयोघ्या बायपास, भोपाल. 462022.
ईमेल -
parimalmahesh@gmail.com
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