शनिवार, 21 मई 2016
कविताएँँ - जया जादवानी
जया जादवानी की ये कविताएँँ स्त्री के विविध आयाम के शाब्दिक चित्र प्रस्तुत करती हैं।
कविता का अंश... स्त्री - 1
तहखानों में तहखाने
सुरंगों में सुरंगें
ये देह भी अजब ताबूत है
ढूँढ़ लेती हूँ जब ऊपर आने के रास्ते
ये फिर वापस खींच लेती है
स्त्री - 2
ले कर अँजुरी में पानी
खुद को देखो तो दिखता है
उसका चेहरा
यूँ मैं अपनी अँजुरी छोड़ती हूँ
वापस नदी में
खुद को ढूँढ़ती हूँ
बह कर बहुत दूर नहीं गई हूँगी
अभी घड़ी भर पहले जरा-सा
घूँट पिया
अपना मुँह धोया था
स्त्री - 3
पढ़ते हैं खुद
खुद नतीजे निकालते हैं
मेरी दीवारों पर क्या कुछ
लिख गए लोग
स्त्री - 4
वे हर बार छोड़ आती हैं
अपना चेहरा
उनके बिस्तर पर
सारा दिन बिताती हैं
जिसे ढूँढ़ने में
रात खो आती हैं
स्त्री - 5
जैसे हाशिए पर लिख देते हैं
बहुत फालतू शब्द और
कभी नहीं पढ़ते उन्हें
ऐसे ही वह लिखी गई और
पढ़ी नहीं गई कभी
जबकि उसी से शुरू हुई थी
पूरी एक किताब । स्त्री के अन्य आयाम जानने के लिए ऑडियो की मदद लीजिए...
लेबल:
कविता,
दिव्य दृष्टि
जीवन यात्रा जून 1957 से. भोपाल में रहने वाला, छत्तीसगढ़िया गुजराती. हिन्दी में एमए और भाषा विज्ञान में पीएच.डी. 1980 से पत्रकारिता और साहित्य से जुड़ाव. अब तक देश भर के समाचार पत्रों में करीब 2000 समसामयिक आलेखों व ललित निबंधों का प्रकाशन. आकाशवाणी से 50 फ़ीचर का प्रसारण जिसमें कुछ पुरस्कृत भी. शालेय और विश्वविद्यालय स्तर पर लेखन और अध्यापन. धारावाहिक ‘चाचा चौधरी’ के लिए अंशकालीन पटकथा लेखन. हिन्दी गुजराती के अलावा छत्तीसगढ़ी, उड़िया, बँगला और पंजाबी भाषा का ज्ञान. संप्रति स्वतंत्र पत्रकार।
संपर्क:
डॉ. महेश परिमल, टी-3, 204 सागर लेक व्यू होम्स, वृंदावन नगर, अयोघ्या बायपास, भोपाल. 462022.
ईमेल -
parimalmahesh@gmail.com
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