गुरुवार, 12 मई 2016
पिता के पत्र पुत्री के नाम - 3
जमीन कैसे बनी - लेख का अंश... तुम जानती हो कि जमीन सूरज के चारों तरफ घूमती है और चाँद जमीन के चारों तरफ घूमता है। शायद तुम्हें यह भी याद है कि ऐसे और भी कई गोले हैं, जो जमीन की तरह सूरज का चक्कर लगाते हैं। ये सब, हमारी जमीन को मिला कर, सूरज के ग्रह कहलाते हैं। चाँद जमीन का उपग्रह कहलाता है; इसलिए कि वह जमीन के ही आसपास रहता है। दूसरे ग्रहों के भी अपने-अपने उपग्रह हैं। सूरज, उसके ग्रह और ग्रहों के उपग्रह मिल कर मानो एक सुखी परिवार बन जाता है। इस परिवार को सौर जगत कहते हैं। सौर का अर्थ है सूरज का। सूरज ही सब ग्रहों और उपग्रहों का बाबा है। इसीलिए इस परिवार को सौर-जगत कहते हैं।
रात को तुम आसमान में हजारों सितारे देखती हो। इनमें से थोड़े-से ही ग्रह हैं और बाकी सितारे हैं। क्या तुम बता सकती हो कि ग्रह और तारे में क्या फर्क है? ग्रह हमारी जमीन की तरह सितारों से बहुत छोटे होते हैं लेकिन आसमान में वे बड़े नजर आते हैं, क्योंकि जमीन से उनका फासला कम है। ठीक ऐसा ही समझो जैसे चाँद, जो बिल्कुल बच्चे की तरह है, हमारे नजदीक होने की वजह से इतना बड़ा मालूम होता है। लेकिन सितारों और ग्रहों के पहचानने का असली तरीका यह है कि वे जगमगाते हैं या नहीं। सितारे जगमगाते हैं, ग्रह नहीं जगमगाते। इसका सबब यह है कि ग्रह सूर्य की रोशनी से चमकते हैं। चाँद और ग्रहों में जो चमक हम देखते हैं वह धूप की है। असली सितारे बिल्कुल सूरज की तरह हैं, वे बहुत गर्म जलते हुए गोले हैं जो आप ही आप चमकते हैं। दरअसल, सूरज खुद एक सितारा है। हमें यह बड़ा आग का गोला-सा मालूम होता है, इसलिए कि जमीन से उसकी दूरी और सितारों से कम है।
इससे अब तुम्हें मालूम हो गया कि हमारी जमीन भी सूरज के परिवार में सौर जगत में है। हम समझते हैं कि जमीन बहुत बड़ी है और हमारे जैसी छोटी-सी चीज को देखते हुए वह है भी बहुत बड़ी। अगर किसी तेज गाड़ी या जहाज पर बैठो तो इसके एक हिस्से से दूसरे हिस्से तक जाने में हफ्तों और महीनों लग जाते हैं। लेकिन हमें चाहे यह कितनी ही बड़ी दिखाई दे, असल में यह धूल के एक कण की तरह हवा में लटकी हुई है। सूरज जमीन से करोड़ों मील दूर है और दूसरे सितारे इससे भी ज्यादा दूर हैं।
ज्योतिषी या वे लोग जो सितारों के बारे में बहुत-सी बातें जानते हैं हमें बतलाते हैं कि बहुत दिन पहले हमारी जमीन और सारे ग्रह सूर्य ही में मिले हुए थे। आजकल की तरह उस समय भी सूरज जलती हुई धातु का निहायत गर्म गोला था। किसी वजह से सूरज के छोटे-छोटे टुकड़े उससे टूट कर हवा में निकल पड़े। लेकिन वे अपने पिता सूर्य से बिल्कुल अलग न हो सके। वे इस तरह सूर्य के इर्द-गिर्द चक्कर लगाने लगे, जैसे उनको किसी ने रस्सी से बाँध कर रखा हो। यह विचित्र शक्ति जिसकी मैंने रस्सी से मिसाल दी है, एक ऐसी ताकत है जो छोटी चीजों को बड़ी चीजों की तरफ खींचती है। यह वही ताकत है, जो वजनदार चीजों को जमीन पर गिरा देती है। हमारे पास जमीन ही सबसे भारी चीज है, इसी से वह हर एक चीज को अपनी तरफ खींच लेती है।
इस तरह हमारी जमीन भी सूरज से निकल भागी थी। उस जमाने में यह बहुत गर्म रही होगी; इसके चारों तरफ की हवा भी बहुत गर्म रही होगी लेकिन सूरज से बहुत ही छोटी होने के कारण वह जल्द ठंडी होने लगी। सूरज की गर्मी भी दिन-दिन कम होती जा रही है लेकिन उसे बिल्कुल ठंडे हो जाने में लाखों बरस लगेंगे। जमीन के ठंडे होने में बहुत थोड़े दिन लगे। जब यह गर्म थी तब इस पर कोई जानदार चीज जैसे आदमी, जानवर, पौधा या पेड़ न रह सकते थे। सब चीजें जल जातीं।
जैसे सूरज का एक टुकड़ा टूट कर जमीन हो गया इसी तरह जमीन का एक टुकड़ा टूट कर निकल भागा और चाँद हो गया। बहुत-से लोगों का खयाल है कि चाँद के निकलने से जो गड्ढा हो गया वह अमरीका और जापान के बीच का प्रशांत सागर है। मगर जमीन को ठंडे होने में भी बहुत दिन लग गए। धीरे-धीरे जमीन की ऊपरी तह तो ज्यादा ठंडी हो गई लेकिन उसका भीतरी हिस्सा गर्म बना रहा। अब भी अगर तुम किसी कोयले की खान में घुसो, तो ज्यों-ज्यों तुम नीचे उतरोगी गर्मी बढ़ती जायगी। शायद अगर तुम बहुत दूर नीचे चली जाओ तो तुम्हें जमीन अंगारे की तरह मिलेगी। चाँद भी ठंडा होने लगा। वह जमीन से भी ज्यादा छोटा था इसलिए उसके ठंडे होने में जमीन से भी कम दिन लगे! तुम्हें उसकी ठंडक कितनी प्यारी मालूम होती है। उसे ठंडा चाँद ही कहते हैं। शायद वह बर्फ क़े पहाड़ों और बर्फ से ढके हुए मैदानों से भरा हुआ है।
जब जमीन ठंडी हो गई तो हवा में जितनी भाप थी वह जम कर पानी बन गई और शायद मेंघ बन कर बरस पड़ी। उस जमाने में बहुत ही ज्यादा पानी बरसा होगा। यह सब पानी जमीन के बड़े-बड़े गङ्ढों में भर गया और इस तरह बड़े-बड़े समुद्र और सागर बन गए।
ज्यों-ज्यों जमीन ठंडी होती गई और समुद्र भी ठंडे होते गए त्यों-त्यों दोनों जानदार चीजों के रहने लायक होते गए। आगे की कहानी ऑडियो की मदद से जानिए...
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दिव्य दृष्टि,
लेख
जीवन यात्रा जून 1957 से. भोपाल में रहने वाला, छत्तीसगढ़िया गुजराती. हिन्दी में एमए और भाषा विज्ञान में पीएच.डी. 1980 से पत्रकारिता और साहित्य से जुड़ाव. अब तक देश भर के समाचार पत्रों में करीब 2000 समसामयिक आलेखों व ललित निबंधों का प्रकाशन. आकाशवाणी से 50 फ़ीचर का प्रसारण जिसमें कुछ पुरस्कृत भी. शालेय और विश्वविद्यालय स्तर पर लेखन और अध्यापन. धारावाहिक ‘चाचा चौधरी’ के लिए अंशकालीन पटकथा लेखन. हिन्दी गुजराती के अलावा छत्तीसगढ़ी, उड़िया, बँगला और पंजाबी भाषा का ज्ञान. संप्रति स्वतंत्र पत्रकार।
संपर्क:
डॉ. महेश परिमल, टी-3, 204 सागर लेक व्यू होम्स, वृंदावन नगर, अयोघ्या बायपास, भोपाल. 462022.
ईमेल -
parimalmahesh@gmail.com
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