शुक्रवार, 27 मई 2016
बाल कविता - चिड़ियों ने बाज़ार लगाया - उषा बंसल
कविता का अंश... चिड़ियों ने बाज़ार लगाया एक कुंज को ख़ूब सजाया
तितली लाई सुंदर पत्ते, मकड़ी लाई कपड़े-लत्ते
बुलबुल लाई फूल रँगीले, रंग -बिरंगे पीले-नीले
तोता तूत और झरबेरी, भर कर लाया कई चँगेरी
पंख सजीले लाया मोर, अंडे लाया अंडे चोर
गौरैया ले आई दाने, बत्तख सजाए ताल-मखाने
कोयल और कबूतर कौआ, ले कर अपना झोला झउआ
करने को निकले बाज़ार, ठेले पर बिक रहे अनार
कोयल ने कुछ आम खरीदे, कौए ने बादाम खरीदे,
गौरैया से ले कर दाने, गुटर कबूतर बैठा खाने .
करे सभी जन अपना काम, करते सौदा, देते दाम
कौए को कुछ और न धंधा, उसने देखा दिन का अंधा,
बैठा है अंडे रख आगे, तब उसके औगुन झट जागे
उसने सबकी नज़र बचा कर, उसके अंडे चुरा-चुरा कर
कोयल की जाली में जा कर, डाल दिये चुपचाप छिपा कर
फिर वह उल्लू से यों बोला, 'क्या बैठ रख खाली झोला'
उल्लू ने जब यह सुन पाया 'चोर-चोर' कह के चिल्लाया
हल्ला गुल्ला मचा वहाँ तो, किससे पूछें बता सके जो
कौन ले गया मेरे अंडे, पीटो उसको ले कर डंडे
बोला ले लो नंगा-झोरी, अभी निकल आयेगी चोरी। आगे की कविता का आनंद ऑडियो की मदद से लीजिए...
लेबल:
दिव्य दृष्टि,
बाल कविता
जीवन यात्रा जून 1957 से. भोपाल में रहने वाला, छत्तीसगढ़िया गुजराती. हिन्दी में एमए और भाषा विज्ञान में पीएच.डी. 1980 से पत्रकारिता और साहित्य से जुड़ाव. अब तक देश भर के समाचार पत्रों में करीब 2000 समसामयिक आलेखों व ललित निबंधों का प्रकाशन. आकाशवाणी से 50 फ़ीचर का प्रसारण जिसमें कुछ पुरस्कृत भी. शालेय और विश्वविद्यालय स्तर पर लेखन और अध्यापन. धारावाहिक ‘चाचा चौधरी’ के लिए अंशकालीन पटकथा लेखन. हिन्दी गुजराती के अलावा छत्तीसगढ़ी, उड़िया, बँगला और पंजाबी भाषा का ज्ञान. संप्रति स्वतंत्र पत्रकार।
संपर्क:
डॉ. महेश परिमल, टी-3, 204 सागर लेक व्यू होम्स, वृंदावन नगर, अयोघ्या बायपास, भोपाल. 462022.
ईमेल -
parimalmahesh@gmail.com
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