डॉ. महेश परिमल
तमिलनाड़ु में जयललिता की वापसी ने देश की राजनीति में कई समीकरण बदलकर रख दिए। पहला तो सभी चुनावी दिग्गजों की भविष्यवाणी पर करारा प्रहार कर दिया। दूसरा तमिलनाड़ु में करुणानिधि नाम के सूर्य को अस्ताचल में जाने को विवश कर दिया। तीसरी सबसे बड़ी बात, उन्होंने यह बता दिया कि राजनीति में नारेबाजी से ही काम नहीं चलता, कुछ करके भी दिखाना होता है। जयललिता ने जो कहा उसे करने में अपनी जान लगा दी। यही नहीं, वे जो कुछ कर रही थी, उसकी पूरी मानिटरिंग भी की। इसे अंजाम दिया, उस ईमानदार टीम ने, जो गांव-गांव ही नहीं, बल्कि शहर-शहर में खुले अम्मा इडली की छोटी-छोटी दुकानों की देखरेख करती थी। जयललिता को भले ही शहरों में अच्छी नजर से न देखा जाता हो, पर गांव में उनकी पकड़ आज भी है। उसने न केवल महिलाओं को रिझाया, बल्कि बच्चों के माध्यम से उनके पालकों को भी अपनी तमाम योजनाओं का लाभ दिलाया। अभी तक वहां दो प्रमुख दलों में एक के बाद एक का शासन आता था। लेकिन इस बार जयललिता ने अपनी पुनर्वापसी से कई लोगों की सोच पर तुषारापात ही कर दिया है।
तमिलनाड़ु का पिछले 25 वर्षों का इतिहास कहता है कि वहां कोई भी पार्टी दूसरी बार सत्ता पर काबिज नहीं होती। 1991 और 2016 के बीच जयललिता जयरामन ने तीन बार और करुणानिधि ने दो बार मुख्यमंत्री पद संभाला। परंपरा के अनुसार इस बार तो करुणानिधि को आना था, पर उनकी पार्टी की करारी हार ने सभी को चारों खाने चित्त कर दिया। पिछले कई महीनों से पूरे राज्य में सत्तारुढ़ दल के खिलाफ लहरें उठती दिखाई दे रही थी। करुणानिधि की सभाओं में भी काफी भीड़ दिखाई देती थी। इससे लोगों को लग गया था कि इस बार लोग जयललिता को वोट नहीं देंगे। वे लगातार दूसरी बार मुख्यमंत्री नहीं बन पाएंगी। इसके बाद भी जया अम्मा ने चमत्कार कर बहुमत हासिल कर लिया। इससे तमिलनाड़ु का इतिहास ही बदल गया। तमिलनाड़ु में मतदान के पहले और बाद में जो भी सर्वेक्षण किए गए, उसमें से अधिकांश सर्वे की रिपोर्ट यही थी कि करुणानिधि जीतकर सरकार बनाएंगे। सोशल मीडिया का ट्रेंड स्पष्ट बता रहा था कि मतदाता जयललिता दोबारा मुख्यमंत्री पद पर नहीं देखना चाहते। पर जयललिता के जो समर्थक थे, वे गांव के गरीब लोग थे, ऑटो ड्राइवर थे और चायवाले थे। उन्हें फेसबुक, ट्विटर या व्हाट्स एप का उपयोग करने की आदत नहीं थी। जयललिता ने उन्हें ढेर सारी सौगातें देने का प्रलोभन देकर अपने पक्ष में माहौल बना लिया। सोशल मीडिया को बैरोमीटर मानने वाले पोल पंडित गोपनीय प्रवाह का आकलन करने में धोखा खा गए। इस चुनाव में डीएमके और अन्ना डीएमके के बीच कांटे की टक्कर दिखाई दे रही थी। करुणानिधि का बेटा स्टॉलिन ने पिछले 9 महीनों के दौरान ऐसा चक्रव्यूह रचा, जिससे उसकी जीत आसान हो जाए। उसने जयललिता को भ्रष्ट बताने के लिए क्या-क्या नहीं किया। उसने तो यह भी वादा कर रखा था कि उसकी सरकार आएगी, तो जयललिता को जेल होगी ही। इस संभावित जेल यात्रा का उसने खूब प्रचार किया। दूसरी ओर जयललिता ने पिछले 5 वर्षों में उन लोगों की सचमुच सहायता की, जिन्हें वास्तव में सहायता की आवश्यकता थी। उस कानून-व्यवस्था को तो सुधारा ही, साथ ही साथ प्रजा की परेशानियों को दूर करने की पूरी कोशिश की। खासकर बिजली की समस्या को दूर करने के लिए उसने एड़ी-चोटी का जोर लगा दिया। अब प्रजा को बिजली की परेशानी से मुक्ति मिल गई।
करुणानिधि की चुनावी सभा में तमिलनाड़ु की जनता ने उनके साथ ए. राजा, दयानिधि मारन जैसे नेताओं को देखा। इससे लोगों को उनके घोटाले याद आ गए। जो उन्होंने 2 जी के नाम पर किए थे। जयललिता ने 2011 में सत्ता पर काबिज होने के बाद डीएमके के नेताओं के खिलाफ जमीन लूटने के 62,000 शिकायतें दर्ज कर करुणानिधि के साथियों का भ्रष्टाचारी चेहरा ही उजागर कर दिया। इसका सीधा असर मतदाताओं पर पड़ा। अपने 5 साल के शासन में उन्होंने मध्यम वर्ग और गरीबों का विशेष ध्यान रखा। उन्हें कई सौगातें देने की घोषणा की। इन घोषणाओं की राजनीतिक पंडित मजाक उड़ाते थे। पर उसे बाजी अपनी तरफ करना अच्छी तरह से आता था। उसने गरीबी रेखा से नीचे जीने वाले सभी परिवारों को चार बकरे और एक गाय के अलावा एक मिक्चर ग्राइंडर और पंखा देने की घोषणा की, और उसे पूरा भी किया। सरकारी स्कू में पढ़ने वाले बच्चों को तीन जोड़ी यूनिफार्म, स्कूल बेग, कॉपी-किताबें आदि मुफ्त में दिए। कक्षा 11 वीं और 12 वीं में पढ़ने वाले विद्यार्थियों को सरकार की तरफ से मुफ्त में लेपटॉप दिए। तमिलनाड़ु की 50 प्रतिशत महिलाओं को जयललिता ने अपना मुख्य फोकस बनाया। अपने कार्यकाल में उसने लाखों युवतियों को उनकी शादी के समय 4 ग्राम सोना और 50 हजार रुपए नकद सहायता राशि के रूप में दी। अब अगले 5 वर्षों में 4 के बजाए 8 ग्राम सोना देने की घोषणा की है। यही नहीं, महिलाओं को सेनेटरी नेपकिन्स, फ्री अम्मा बेबी केयर किट्स आदि की सौगात दी। राज्य के कई स्थानों पर ऐसे शेल्टर होम तैयार किए गए, जहां माताएं अपने बच्चों को स्तनपान करा सके। एक रुपए में इडली और दो रुपए में दही-भात मिलने के सैकड़ों सेंटर तैयार किए। सभी सरकारी योजनाओं का लाभ लोगों तक पहुंचे, इसके लिए चुस्त प्रशासनिक व्यवस्था की गई। वह अच्छी तरह से जानती हैं कि गरीब आदमी का पेट भाषण या फिर आश्वासन से नहीं भरता। इसलिए उसने सीधे गरीबों का पेट भर जाए, इसकी व्यवस्था की। उसकी यह चाल कामयाब रही, जिसने उसे फिर से गद्दीनशीन कर दिया।
जयललिता ने कल्याणकारी योजनाओं का वादा कर मतदाताओं की नब्ज़ पर हाथ रख दिया। इसमें एक चतुराई उन्होंने यह की कि अपनी रैलियों में उन्होंने क्षेत्र विशेष की योजनाओं पर ध्यान केंद्रित किया। कोयंबटूर में उन्होंने नहर योजना का वादा किया, जो वहां के किसानों की पुरानी मांग है। यह भी दावा कर दिया कि सरकार ने सलाहकार की सेवाएं ले भी ली हैं। धरमपुरी में उन्होंने कहा कि वह गैस अथॉरिटी ऑफ इंडिया से कहेंगी कि वे सात जिलों के किसानों की जमीन पर गैस पाइपलाइन लाइन न बिछाए। फिर जयललिता ने द्रमुक नेता करुणानिधि
व उनके परिवार को सच्ची-झूठी बातों से बदनाम करने में कोई कसर नहीं छोड़ी। द्रमुक ने 2006 में लोगों को टीवी सेट बांटे थे। जयललिता ने कहा कि टीवी तो मुफ्त बांटे और कैबल कनेक्शन के तीन हजार रुपए ले लिए और इससे द्रमुक नेताओं ने 25,000 करोड़ रुपए कमा लिए। अपने दावे के लिए उन्होंने कोई सबूत नहीं दिया। कहतीं कि वे सत्ता के लिए चाहे वादे कर रहे हों, लेकिन वे पूरे तभी होंगे जब करुणानिधि के परिवार को इससे फायदा हो। इस प्रकार चौतरफा चतुर रणनीति से जयललिता ने सत्ता में लगातार दूसरी बार लौटने का चमत्कार कर दिखाया।
अंत में यही कि इस चुनाव द्वारा तमिलनाड़ु की राजनीति में करुणानिधि नाम का सितारा डूब गया है। उनके बेटे स्टालिन नामक नए सितारे का जन्म हुआ है। 2021 के चुनाव में करुणानिधि जीवित होंगे, तो वे मुख्यमंत्री बनने की स्थिति में नहीं होंगे। अब यदि स्टालिन विपक्षी नेता की भूमिका में होते हैं, तो यह उनके भविष्य के लिए अच्छा अवसर होगा।
डॉ. महेश परिमल
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