बुधवार, 4 मई 2016
बेटियों पर केंद्रित अर्चना सिंह 'जया' की कविताएँँ...
कविता का अंश...
बेटी की पीड़ा
साँस अभी थमी नहीं ,रात अभी ढली नहीं
पथभ्रष्ट हो रहे सभी ,माँ चल दूर कहीं।
नन्ही परी पुकारती ,घर संसार वो सँवारती
फिर क्यों हमीं से ,जीवन की भीख माँगती?
देवता से भी अधिक, देवियाँ पूजी जाती जहाँ,
क्यों बेटियाँ ? जन्म से पहले ही, विदा होती वहाँ।
अपराधिन हँू मैं नहीं, बेटी हँू मैं माँ तुम्हारी ,
बताओ माँ! धरती पर,मेरा आना क्यों हुआ भारी?
पुत्र ही क्यों है हर सम्मान का अधिकारी?
पुत्री भी नाम रौषन कर सकती है तुम्हारी।
गर मैं नहीं तोे भूमि, रह जायेगी वंषों से खाली,
बेटी हँू मैं ,मुझसे ही सजती है जीवन की क्यारी।
नया सूर्योदय का है इंतजार,जब बेटी का हो सम्मान
धरा भी माँ कहलाने का सर्वस्व कर सकेगी अभिमान।
आने वाली पीढ़ी में,रह न जाए वसुधा हमसे खाली
बेटी को बचाओ! वरना अभागिन रहेगी माँ हमारी। कविता का आनंद ऑडियो की मदद से लीजिए...
लेबल:
कविता,
दिव्य दृष्टि
जीवन यात्रा जून 1957 से. भोपाल में रहने वाला, छत्तीसगढ़िया गुजराती. हिन्दी में एमए और भाषा विज्ञान में पीएच.डी. 1980 से पत्रकारिता और साहित्य से जुड़ाव. अब तक देश भर के समाचार पत्रों में करीब 2000 समसामयिक आलेखों व ललित निबंधों का प्रकाशन. आकाशवाणी से 50 फ़ीचर का प्रसारण जिसमें कुछ पुरस्कृत भी. शालेय और विश्वविद्यालय स्तर पर लेखन और अध्यापन. धारावाहिक ‘चाचा चौधरी’ के लिए अंशकालीन पटकथा लेखन. हिन्दी गुजराती के अलावा छत्तीसगढ़ी, उड़िया, बँगला और पंजाबी भाषा का ज्ञान. संप्रति स्वतंत्र पत्रकार।
संपर्क:
डॉ. महेश परिमल, टी-3, 204 सागर लेक व्यू होम्स, वृंदावन नगर, अयोघ्या बायपास, भोपाल. 462022.
ईमेल -
parimalmahesh@gmail.com
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संवेदनाओं के पंख ,दिव्य दृष्टि की मैं सदैव आभारी रहूँगी। साथ ही भारती परिमल जी की जिनकी स्वर ने कविता में जान डाल दी।
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