बुधवार, 4 मई 2016
कविताएँँ - मनोज चौहान
कविता का अंश... क्यों टूटते हैं रिश्ते
पतझड. के पतों के समान
क्यों नहीं समझ पाता
आज इन्सान को इन्सान l
पैदा हुआ है इन्सान
प्यार बांटने के लिए
फिर ये नफरत फैलाना
कहां से सीख गया इन्सान l
हर कोई चूर है यहां
अपने ही अभिमान में
कोई मुझे बताए आकर
कहां खो गया है इन्सान l
इन्सान को दिल दिया
ताकि समझ सके
वो दर्द दुसरे का
दिमाग दिया इन्सान को
ताकि स्वर्ग बना दे
इसी धरा को l
जो उठे इन्सान
तो देवता बन जाए
और गिरे तो दानव को भी
पीछे छोड. जाए l
भगवान ने रचा प्रकृति को
बनाए चांद तारे
सुरज और आसमान l
फिर बनाई उसने
अपनी सर्वोतम रचना
दी उसने सज्ञां उसको इन्सान
पछता रहा होगा भगवान भी देखकर
आखिर क्यों पैदा कर दिया
उसने इन्सान ।
ऐसी ही अन्य मर्मस्पर्शी कविताओं का आनंद ऑडियो की मदद से लीजिए...
लेबल:
कविता,
दिव्य दृष्टि
जीवन यात्रा जून 1957 से. भोपाल में रहने वाला, छत्तीसगढ़िया गुजराती. हिन्दी में एमए और भाषा विज्ञान में पीएच.डी. 1980 से पत्रकारिता और साहित्य से जुड़ाव. अब तक देश भर के समाचार पत्रों में करीब 2000 समसामयिक आलेखों व ललित निबंधों का प्रकाशन. आकाशवाणी से 50 फ़ीचर का प्रसारण जिसमें कुछ पुरस्कृत भी. शालेय और विश्वविद्यालय स्तर पर लेखन और अध्यापन. धारावाहिक ‘चाचा चौधरी’ के लिए अंशकालीन पटकथा लेखन. हिन्दी गुजराती के अलावा छत्तीसगढ़ी, उड़िया, बँगला और पंजाबी भाषा का ज्ञान. संप्रति स्वतंत्र पत्रकार।
संपर्क:
डॉ. महेश परिमल, टी-3, 204 सागर लेक व्यू होम्स, वृंदावन नगर, अयोघ्या बायपास, भोपाल. 462022.
ईमेल -
parimalmahesh@gmail.com
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